Suggestion आगे ही नही पीछे भी

आगे ही नहीं पीछे भी…यीशु को क्यों न जाना जाय ?

यीशु का जन्म 25 दिसम्बर को यदि नहीं भी है तब भी यीशु जन्म मानवता के कल्याण के लिए हुआ था।जिनके विचारों में विश्व कल्याण छिपा हुआ है।

भारतीय पुराणों की कथाओं और वर्तालापों की शैली में यीशु मसीह के प्रादुर्भाव से पूर्व को कथाएं और बाद की कथाएं अलग-अलग संतो द्वारा रचित सन्निहित है। वाइबिल संतों को प्राप्त दिव्य ज्ञान की छत्तीस पुस्तकों का समूह है। यीशु के प्रादुर्भाव से पहले उनके जन्म लेने की दिव्य वाणियाँ संतों को सुनाई देने लगी थी। वे दिव्य वाणियों ओल्ड टेस्टामेंट में है और उन भविष्य वाणियों को उस समय मूर्त रूप दिया गया। जब यीशु चालन में जन्म लेकर माता मरियम को प्राप्त हो गये। यीशु परमेश्वर के एकलौते पुत्र माने गये। जिन्हें, उन्होंने धरती पर आकर इर्ष्या पीड़ा और प्रतिहिंसा को मिटाकर प्रेम, करुणा और क्षमा का दिव्य प्रकाशमय एवं आनन्दमय जीवन के लिए जीने का विश्वास प्रगट करने के लिए अपनी सहज कृपा की परमेश्वर दिव्य प्रकाश और आनन्द स्वरूप है। जो धरती के कण-कण से बहुत प्रेम करते हैं। वे चाहते हैं कि सभी में वैसी ही सम्वेदना और भावना हो जैसी परमेश्वर में है। किसी के दुःख में दुःखी हो जाना किसी की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझना किसी के दर्द को अपना दर्द मानना करुणा है। परमेश्वर दयावान और परम कृपावान है। इसलिए कि धरती पर करुणा सब में हो करुणा होने पर प्रेम जागृत होता है जो सेवा प्रेरित करता है सेवा परमेश्वर के लिए उन्हीं को सर्वत्र स्वीकार करते हुए उनके प्रति आभारी होते हुए कृतज्ञता भाव से होनी चाहिए। अभाव पीड़ा और दुर्भावना से ग्रस्त मानवता उस समय परमेश की ओर चल पड़ती है जो उसमें करुणा जागृत हो जाती है। करुणा से पवित्रता आती है और पवित्र जीवन प्रेम का आधार बनता है। प्रेम, परमेश्वर का ही स्वरूप है इसलिए दिव्य वाइबिल के अनुसार ईश्वर प्रेम नहीं अपितु प्रेम ही ईश्वर है। हम करुणा से जब ओत-प्रोत होते हैं तो उसके प्रति प्रेम जागृत होता है जो सहानुभूति और सहयोग के माध्यम से प्रगट होकर दुःखी मानवता को आस्तित्व प्रदान करता है। यीशु ने कहा कि दुनिया के थके मादे लोगों, मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। अनंत जीवन, दिव्य जीवन प्रकाशमय जीवन और आनन्दमय जीवन प्रदान करने की आस्तित्व के साथ मुक्तिदाता (देवदूत) शरीर, मन और बुद्धि में विकार, ईष्यों और कुविवार पालते रहने से हम अपने को खाली नहीं कर पाते निर्विकारता, करुणा और प्रकाश को जीवन में प्रगटोकों लिए अपने को खाली करना होगा जैसे गोबर से बारे मटके में दूध नहीं भरा जा सकता दूध भरने के लिए को से खाली करना पड़ेगा यीशु ने कहा अपने को खाली करो और प्रतिक्षा करो और देखो में तुम्हें भर दूंगा। प्रकाशमय, आनन्दमय और दिव्य जीवन प्राप्त करने के लिए परमेश्वर की और उन्मुखता और शेष के प्रति विमुखता आवश्यक है।
प्रभु यीशु मसीह ने यह भी आश्वासन दिया कि परमेश्वर पाप मुक्त कर देते हैं। परमेश्वर न्यायकर्ता है, कर्मों का उचित फल देते हैं। लेकिन ये परम कृपालु और दयालु भी है। जो अपनी शरण में आये पापियों को अपनी सहज क्षमा शक्ति द्वारा मुक्त कर देते हैं। विश्वासी जब अपने कुकमों और पापों की स्वीकारोक्ति करता है और प्रायश्चित के लिए तैयार होता है। प्रभु यीशु मसीह की शरण में जाता है तो पापमुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। परमेश्वर उस शरणागत विश्वास के सभी पापों को करके नया दिव्य जीवन प्रदान कर देते हैं। परमेश्वर प्रभु यीशु के माध्यम से यह चाहते हैं कि मानव भी जो उनकी श्रेष्ठ कल्पनाओं की उपज है, उन्हीं की तरह क्षमा शील हो उपकारी के प्रति उपकार करना स्वभाविक है। किन्तु अपकारी के प्रति उदारता स्नेह, आदर और प्रेम रखना दिव्य जीवन है। शरीर सम्पत्ति और सम्मान को क्षति पहुंचाने वालों के प्रति आदर का भाव रखना तथा उनके मृत कार्यों को क्षमा कर देना दिव्य जीवन है। क्षमा अशक्तों का उपकरण नहीं अपितु सशक्त मानव का दिव्य गुण है। क्षमा कर देने से शांति और सुख प्राप्त होता है। जो स्वयं में दिव्य अनुभूतियाँ है ये अनुभूतियाँ इसलिए दिव्य है क्योंकि ये किसी वस्तु काल अथवा व्यक्ति से प्राप्त नहीं हो सकती। क्षमा का कोई विकल्प नहीं क्षमा परमेश्वर को सबसे अधिक प्रिय है। जब परमेश्वर हमारे पापों को क्षमा कर सकते है तो हम दूसरों को क्षमा क्यों नहीं कर सकते। जगामय जीवन परमेश्वर को सर्वाधिक प्रिय है। क्षमा में संतोष, अहिंसा, अनुराग, स्वतः पैदा होते हैं। बैर भाव को निर्मूल करने का सर्वाधिक सशक्त विद्या क्षमा ही है।
प्रेम, करुणा और क्षमा जैसे परमेश्वर के दिव्य भाव को घर पर यीशु मसीह को प्रष्ट करने का श्रेय 2021 वर्ष पूर्व प्राप्त हुआ। ऐसा कहा जाता है। 25 दिसम्बर की तिथि यीशु मसीह के जन्म की वास्तविक तिथि नहीं है फिर भी बड़ा दिन के रूप में इसे मनाया जाता है। प्राकृतिक घटना सूर्य का उत्तरी गोलार्द्ध की ओर दृष्टि होना 25 दिसम्बर से आरम्भ हो जाता है। इसराइल के येरुसशलम क्षेत्र से भिन्न स्थिति भारत की है, जहां पर सूर्य के इस पर्व को मकर संक्रांति के रूप मनाने की परम्परा है।

प्रभु यीशु मसीह के इसाई धर्म से पूर्व यहूदी धर्म (इम्ब्राहिमी) धर्म प्रचलित था। अपनी कट्टरवादी प्रवृत्ति के चलते यहूदी धर्म अपने आरम्भ से लगभग पांच सौ वर्ष के भीतर ही दो फाँक हो गया। मिश्र से हजरत मूसा ने इस धर्म का पुनः प्रतिपादन किया। यरुशलम और उसके क्षेत्र के आस पास तीन धर्मो की नींव पड़ी, जिनमें सबसे पुराना इम्ब्राहिमी यहूदी धर्म है। इस धर्म की विशेषता यह है कि धर्म साध्य है। साधन नहीं अर्थात् मनुष्य धर्म के लिए है। इसलिए धर्म द्वारा निर्धारित नियमों का शत-प्रतिशत पालन होना चाहिए। यहूदी धर्म यह मान्यता है कि कोई मसीहा आयेगा जो हमारे कष्ट हरेगा। यहूदी लोग यीशु को मसीह नहीं मानते और आज भी मशीह के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस धर्म में प्रेम करुणा और क्षमा जैसे गुणों का कोई स्थान नहीं यीशु ने यहूदियों की कट्टरवादिता से अस्त मानवता को अपने प्रेम, करुणा और क्षमा के संदेश द्वारा प्राण त्याग दिया। जिसे विश्व पैमाने पर स्वीकार्यता मिली परिणाम यह हुआ कि यहूदी धर्म सिकुड़ता गया और उदारता सहिष्णुता, करुणा एवं प्रेम के चलते विस्तार पाता गया। यीशु का जन्म यरूशलम के वेटिकन सिटी में माना जाता है। यहूदी धर्म के धार्मिक कट्टरवाद से क्षुब्ध इस्लाम धर्म आया, जिसने दिव्य कुरान के बल पर विश्व में भाईचारे का संदेश दिया। यीशु यहूदियों के लिए मसीहा नहीं किन्तु इस्लाम धर्म उन्हें और इब्राहिम तथा मूसा को भी पैगम्बर मांगता है। ईसाई धर्म भी दो फॉक हो गया एक कैथोलिक और दूसरा प्रोटेस्ट कहलाया। इस्लाम में भी दो फॉक सिया और सून्नी में हो गया। भारत में पुराणों की रचना से बहुत बाद में वाइबिल का दिव्य ज्ञान मिला। जिसपर भारतीय
भक्तियोग और गीता के शरणागत योग की स्पष्ट छाया दिखती है। यीशु सबके लिए सर्व सुलभ, भेद-भाव रहित, समाज की सरचना के प्रतीक है, और प्रेम, करुणा और क्षमा की प्रतिमूर्ति भी।

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-शिवजी पाण्डेय रसराज’


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