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आर्सेनिक पर आप शांत क्यों, चुनाव में कितना बड़ा मुद्दा ?

विवेक पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार

बलिया /नई दिल्ली : वैसे तो पुरानी कहावत चली आ रही है कि अगर कभी तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो उसका कारण पानी ही होगा. बहरहाल, पानी की समस्या तो पिछले दिनों में देश के कई इलाकों में देखने को मिली हैं. बैंगलौर से जो खबरें आईं थीं वो दिल दहला देने वाली हैं. लेकिन, इन सब के बीच जहां पानी उपलब्ध है. वहां इससे भी बड़ा संकट मुंह बाए खड़ा है. वह है आर्सेनिक का राक्षस, यह धीरे-धीरे कर के अपनी चपेट में लोगों को ले रहा है. सरकारों का तो क्या कहें, लोगों में भी इसे लेकर कोई खास परेशानी या बेचैनी नहीं है. कहीं से कोई आवाज नहीं. इंटरनेट पर कंटेंट खोजने बैठिए तो पता चलता है कि कुछ एक जानकारी ही उपलब्ध है और उससे भी कोई खास तथ्य पता नहीं चलते हैं.

Block Your Lost / Stolen Mobile Phone Visit CEIR
Report Suspected Fraud Communication Visit CHAKSHU
Know Your Mobile Connections Visit TAFCOP

बता दें कि बीते ढाई दशक पहले कलकत्ता के जादवपुर मेडिकल कालेज टीम ने इस आर्सेनिक वाले पानी पर काफ़ी शोध किया. लेकिन शोध में दिए गए सुझाव पर न तो कोई ठोस कदम उठाया गया न तो इसके लिए कोई योजना ही मूर्त रूप ले सका. पानी में मात्र से अधिक जहर यानी आर्सेनिक को कभी चुनाव में मुद्दा भी नहीं बनाया गया. जिसके लिए कहीं न कहीं अपने जनप्रतिनिधि भी जिम्मेदार हैं.

गांव के लोगों को वर्ष 2000 में आर्सेनिक की जानकारी हुई। यादवपुर मेडिकल कॉलेज कोलकाता की टीम पहुंची थी। टीम चौबे छपरा के पेयजल की जांच तो भूजल में मानक से ज्यादा आर्सेनिक की पुष्टि की। चंडीगढ़ विश्वविद्यालय व आगरा विश्वविद्यालय की मेडिकल टीम, बीएचयू के छात्र और नई दिल्ली से पर्यावरणविद सुनीता नारायण की टीम आदि ने भी जांच के उपरांत पाया कि यहां की स्थिति अत्यधिक खराब है.

बलिया जिले में आर्सेनिक कि समस्या काफी बढ़ रही है. सरकार ने दिसंबर, 2021 में संसद में माना कि यूपी के बलिया में ही कम से कम 74 बसावटें आर्सेनिक के प्रदूषण से प्रभावित हैं. यह सरकारी आंकड़ा है, आप असलियत का अंदाजा लगा सकते हैं. आर्सेनिक एक जियोजेनिक यानी भूजन्य समस्या है,यह जमीन के अंदर से हमारे खाने और पीने में पहुंच रही है. यूपी या भारत ही नहीं दुनिया के 100 से अधिक देशों के भूजल में आर्सेनिक प्रदूषण की समस्या है.

कुछ आंकड़ों की माने तो विश्व में लगभग 23 करोड़ लोग इस कैमिकल के शिकार हैं. एक जानकारी के अनुसार सन 1970 के आसपास जब डायरिया जैसी बीमारी बढ़ने लगी थी तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ जैसे संगठनों की ओर से एक एडवाइजरी जारी की गई थी. बस यहीं से समस्या की शुरूआत हो गई थी. इस एडवाइजरी में भारत समेत कई विकासशील देशों को कहा गया था कि वो नदियों, तालाबों और कुंओं के पानी की जगह भूजल का प्रयोग करें.

भूजल पर निर्भरता बढ़ती चली गई और इसने पूरी पारिस्थितिकी को बदलना शुरू कर दिया. जो जहर जमीन के अंदर दबा हुआ था उसे बाहर निकाल दिया गया. ऐसे समझिए कोई राक्षस सो रहा था और उसे जगा दिया गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक 10 माइक्रोग्राम प्रतिलीटर या 10 पीपीबी (पार्ट्स पर बिलियन) से अधिक नहीं होना चाहिए. लेकिन, भारत में भूजल में आर्सेनिक 100 या 200 गुना से ज्यादा पाया जाता है.

सरकार ने 22 मार्च, 2021 को संसद में एक सवाल के जवाब में माना कि देश के 21 राज्यों के कुल 150 जिलों में कई जगह आर्सेनिक सुरक्षित सीमा से अधिक है. यूपी के 75 में से 28 जिले, बिहार के 38 में से 22 जिले, असम के 33 में से 18 और पश्चिम बंगाल के 23 में से 9 जिलों में आर्सेनिक सुरक्षित मानक से अधिक है.अब ऐसे में सवाल है कि क्या बलिया और ऐसे जिलों में हम और हमारे बच्चे जो जहर पी रहे हैं उसे लेकर हम गंभीर होंगे ? युवाओं की होती मौत और कैंसर जैसी बीमारियों में बढ़त इस आर्सेनिक के कारण ही हो रहा है. आइए मिलकर आवाज उठाएं और आर्सेनिक का समाधान खोजें !

आर्सेनिक पानी पीने से होती हैं ये बीमारियां
आर्सेनिक का पानी सेवन करने वालों के शरीर पर काले चकत्ते, खुजली, स्किन से जुड़ी बीमारी को अपने चपेट में ले लेती है। ज्यादातर लोग जानलेवा बीमारी कैंसर के भी शिकार हो जाते हैं। आर्सेनिक से प्रभावित लोगों का स्किन फटने लगती है। शरीर में मांस निकल के बाहर आ जाना, चर्म रोग जैसी बीमारियां होने लगती है। बलिया में कुल 13 ब्लाक के 417 गावं आर्सेनिक से प्रभावित है।

बलिया में 13 ब्लाक के 417 गांव आर्सेनिक कि जद में


बलिया में कुल 13 ब्लाक के 417 गावं आर्सेनिक से प्रभावित है। जिसके वजह दुसरे जगह के लोग शादी विवाह करने से काफी बचते है। आर्सेनिक का पानी स्लो पोवाइजन और ज़हरीला हो जाता हैं यह शरीर में जाकर धीरे- धीरे शरीर को नष्ट और खोखला कर देता है। आर्सेनिक से प्रभावित लोगों के अंदर मौत का भय बना रहता है।


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