29 जनवरी को गणेश चतुर्थी पर विशेष –
डा०गणेशकुमार पाठक
विघ्नहर्ता गणेश की पूजा भारत सहित विश्व के अनेक देशों में की जाती है। इन देशों में गणेश की तरह- तरह की प्राचीन मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। गणेश एकमात्र ऐसे देवता हैं ,जिनकी पूजा हिन्दुओं के अतिरिक्त बौद्ध एवं जैन धर्म को मानने वाले भी करते हैं। गणेश अन्तर्राष्ट्रीय देव के रूप में प्रतिष्ठापित हो गए हैं।
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नेपाल में गणेश पूजा –
नेपाल में गणेश का अस्तित्व 10 वीं शताब्दी से ही मिलता है। किंतु 15 वीं शताब्दी में सर्व प्रथम गणेश का चित्रांकन एक पाण्डुलिपि में मिला है। नेपाल में गणेश को सूर्य गणेश अर्थात् सूर्यवंशी माना जाता है। वैसे नेपाल में नृत गणेश की प्रतिमा अधिक देखने को मिलती है, जिससे यह सिद्ध होता है कि नृत गणेश नेपाल में अधिक लोकप्रिय हैं। नेपाल में गणेश के सिर पर सर्प को दिखाया गया है और सर्प के सिर को दाहिने हाथ में एवं पूंछ को बाएं हाथ में पकड़ा हुआ दिखाया गया है। गणेश का ऐसा स्वरूप सिर्फ नेपाल में ही देखने को मिलता है।
तिब्बत में गणेश पूजा –
तिब्बत में गणेश का चित्रांकन पूज्य देवता के रूप में कम मिलता है। बेलुप्पा के विहार में गणेश को द्वारपालक के रूप में चित्रित किया गया है। इसके साथ ही तिब्बत में ही अनेक स्थानों पर गणेश को हिन्दू राक्षस विनायक के रूप में दर्शाया गया है तथा महाकाल उन्हें अपने पैरों के नीचे दबाए हुए हैं। एक अन्य स्थान पर अपराजिता देवी द्वारा गणेश की पिटाई करते हुए दिखाया गया है और उन्हें ‘गणपति समाक्रांता’ कहा गया है।
मलेशिया में गणेश पूजा –
मलाया द्वीप समूह,खासतौर से जावा,बाली एवं बोर्नियो में गणेश को मनुष्य की खोपड़ियों की माला पहने हुए प्रदर्शित किया गया है। जावा के ‘परकरा’ नामक स्थान पर एक लेख युक्त 2239 ई० की पत्थर की मूर्ति प्राप्त हुई है,जिसमें गणेश को मुण्डमालाधारी निर्मित किया गया है। यह भी विश्व में अपने तरह की गणेश की एक अनोखी प्रतिमा है। वैसे इन द्वीपों में गणेश की अधिकांश मूर्तियां बैठी हुई अवस्था में चित्रित हैं। मात्र पश्चिम जावा के ‘करंग काटेश’ नामक स्थान से प्राप्त प्रस्तर मूर्ति खड़ी अवस्था में है। जावा में गणेश की कांसे की मूर्तियां कम प्राप्त हुई हैं,किंतु जो भी प्राप्त हुईं हैं,वो अत्यन्त ही दुर्लभ एवं अतीव सुन्दर हैं।
म्यांनमार में गणेश पूजा-
म्यांनमार में बौद्ध एवं हिन्दू दोनों धर्मावलंबियों में गणेश समान रूप में लोकप्रिय देवता हैं। यहां पर भी कांसे से बनी गणेश की अनेक लोकप्रिय प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। म्यांनमार में गणेश अत्यन्त ही पूज्य देवता रहे हैं।
थाईलैण्ड,कम्बोडिया एवं इण्डोनेशिया में गणेश पूजा-
थाईलैण्ड एवं हिन्दचीन में भी गणेश बौद्ध एवं हिन्दू दोनों के प्रिय देवता रहे हैं। बैंकाक के एक मन्दिर में कांसे की बनी गणेश की एक प्रतिमा है,जो खम्भएर शैली में बनी है।यह प्रतिमा 10 वीं शदी की बनी है एवं इसमें यह दिखाया गया है कि गणेश अपने एक दांत को उखाड़ कर महाभारत लिखने जा रहे हैं।
कम्बोडिया में भी गणेश अत्यन्त लोकप्रिय रहे हैं। यहां यह मान्यता है कि वहां का लोकप्रिय ‘गायत्री मंत्र’ स्वयं गणेश द्वारा शिव की आज्ञा से खासतौर से कम्बोडियाई वासियों के लिए बनाया गया है। वहां पर प्राप्त मूर्तियों में गणेश के तीन एवं चार हाथी के दांत दर्शाए गए हैं।
चीन में गणेश पूजा –
चीन में गणेश के दो स्वरूप प्राप्त होते हैं – पहला स्वरूप है ‘विनायक’ रूप में जो बिल्कुल भारतीय गणेश के रूप में हैं और दूसरा स स्वरूप है ‘कांतिगेन’ रूप में। यह ‘कांतिगेन’ रूप केवल विश्व में चीन एवं जापान में ही मिलता है। ‘कांतिगेन’ रूप में दो गणेश एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनके दो पैर, दो धड़ एवं दो सिर इस तरह से जुड़े हुए हैं,जैसे कोई जुड़वां बच्चा हो। वैसे यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है कि विश्व में तिथि युक्त पहली गणेश प्रतिमा चीन से ही प्राप्त हुई हैं।चीन में ‘कुंगाडीसिन’ नामक स्थान पर स्थित बौद्ध मंदिर में पत्थर के पैनल पर चित्रित लेख युक्त गणेश प्रतिमा 531ई०की हैं।
इसी तरह की एक तिथि युक्त गणेश प्रतिमा 543 ई० की प्राप्त हुई हैं। यह प्रतिमा भी पत्थर की बनी हुई है और वर्तमान समय में अमेरिका सके बोस्टन संग्रहालय की शोभा बढ़ा रही है। वैसे 7 वीं एवं 8 वीं सदी तक चीन में गणेश पूजा की प्रथा प्रचलित नहीं थी। हां यह जरूर था कि 5 वीं सदी में फाह्यान जब भारत यात्रा के बाद चीन वापस गया तो बुद्ध की मूर्ति के साथ गणेश की एक कांस्य की बनी प्रतिमा भी ले गया था। किंतु 9 वीं सदी तक चीन में गणेश एक लोकप्रिय देवता बन गए थे और जो लोग बौद्ध धर्म को मानने वाले थे, वे सभी गणेश की भी पूजा करने लगे।
जापान में गणेश पूजा –
जापान में गणेश पूजा का प्रचलन चीन के जरिए ही हुआ माना जाता है। 9 वीं सदी में जापान के एक विद्वान ‘कोबी-टाईशी’ को चीनी भाषा में लिखित “महाबैरोचन सूत्र” की एक विचित्र एवं दुर्लभ पाण्डुलिपि प्राप्त हुई,किंतु टोबी-टाईशी इसको समझने में असमर्थ रहा। फलत: इसको समझने के लिए टोबी – टाईशी ने जापान के सम्राट से चीन जाने हेतु आज्ञा मांगी।उसे आज्ञा मिल गयी और वह चीन जाकर बौद्ध धर्म के सभी रहस्यों को जाना समझा और पुनः जापान आकर जापान में बौद्ध धर्म का प्रचार – प्रसार किया। टोबी – टाईशी ने बुद्ध के साथ उनके अनुचर के रूप में गणेश की प्रतिमा को भीअपने साथ ले गया और इस तरह जापान में भी बुद्ध के साथ – साथ गणेश की भी पूजा होने लगी।
जापान में गणेश के साथ एक विचित्र बात यह देखने को मिलती है कि यहां गणेश अपने हाथों में मूली लिए हुए हैं,जबकि उनका प्रिय भोजन लड्डू है। वैसे जापान में गणेश के हाथों में मूली धारण करने के संबंध में यह धारणा प्रचलित है कि जापान में एक राक्षस था, जिसका नाम ‘मटरूरत्सु’ था। वह मांसाहार के साथ मूली भी अधिक खाता था और जब मूली नहीं मिलती थी तो वह मानव को ही मूली- गाजर की तरह का जाता था। जापानी इस राक्षस से बहुत ही परेशान थे। जब 9 वीं सदी में हिन्दू राक्षस विनायक ‘गणेश’ जापान पहुंचे तो उन्हें मटरूरत्सु के साथ ललकारा गया। इस तरह जापानी राक्षस मटरूरत्सु एवं हिन्दुस्तानी राक्षस विनायक में घमासान युद्ध हुआ और विनायक के हाथों मटरूरत्सु मारा गया। इस घटना के बाद जापान में बुद्ध अनुयायियों ने काफी राहत महसूस किया और प्रसन्न होकर एहसान वश गणेश को देवता के रूप में मानकर इस घटना की याद में मटरूरत्सु वाली मूली गणेश के हाथों में पकड़ा दिया। आज भी जापान में गणेश की जो भी प्रतिमा प्राप्त होती है,उनके हाथ में मूली अवश्य ही बनी रहती है।
जापान में भी गणेश प्रतिमा के दो स्वरूप प्राप्त होते हैं – पहला हिन्दू राक्षस विनायक के रूप में एवं दूसरा कआंगईतएन के रूप में। किंतु कांगीतेन वाला रूप अधिक देखने को मिलता है। जापान में प्राप्त गणेश का स्वरूप मानवीय अधिक लगता है। यद्यपि के यहां के गणेश के भी सूंड़ है, फिर भी उनमें मानवीय रूप झलकता है। जापान में प्राप्त गणेश की प्रतिमा ही विश्व में एकमात्र ऐसी प्रतिमा है, जिसके चार हाथ एवं चार पैर हैं तथा बज्र धारण किए हुए हैं। जापान में आज भी गणेश की पूजा अत्यन्त ही धूम- नाम से की जाती है।
उपर्युक्त देशों के अतिरिक्त श्रीलंका, मारीशस,फिजी, सूरीनाम एवं गुयाना आदि देशों में भी गणेश की प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं और आज भी इन सभी देशों में गणेश पूजा धूम-धाम से की जाती है।चूंकि इन देशों में भारतीय मूल के लोग अधिक रहते हैं , इसलिए यहां प्राप्त गणेश की मूर्तियां भारतीय गणेश की तरह ही हैं एवं इनकी पूजा भी भारतीय रीति – रिवाज के अनुसार ही की जाती है। उपर्युक्त देशों के अतिरिक्त वर्तमान समय में विश्व के अनेक देशों में भारतीय लोग बहुतायत से रहने लगे हैं, अंत: जिन – जिन देशों में भारतीय मूल के लोग अधिक संख्या में रहते हैं,उन सभी देशों में भारतीय देवी- देवताओं की पूजा की जाती है,जिनमें गणेश की पूजा अवश्य की जाती है। इस तरह वर्तमान समय में गणेश एक अन्तर्राष्ट्रीय देवता के रूप में प्रतिष्ठापित हो गए हैं।
डा०गणेशकुमार पाठक
पूर्व प्राचार्य एवं पूर्व शैक्षिक निदेशक
लोकपाल
जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय,
बलिया, उ० प्र०
सम्पर्क सूत्र-
श्रीराम विहार कालोनी बलिया,
उ० प्र०,पिनकोड – 277001
मो० 8887785152
Email- drgkpathakgeo@gmail.com
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