सरकारी आंकड़ों के अनुसार आज उत्तर प्रदेश में लगभग 69000 शिक्षकों की वैकेंसी उपलब्ध है परंतु शिक्षकों की भर्ती तो एक तरफ है, जिन शिक्षकों ने महामारी के दौरान बच्चों को शिक्षित किया या यह कह सकते हैं कि उनकी शिक्षा को जारी रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो कि प्राइवेट स्कूलों में शिक्षक के तौर पर नौकरी करके ना सिर्फ विद्यार्थियों का सिलेबस कंप्लीट करवाया बल्कि कम सैलरी में काम करके भी किसी तरीके से अपने घर के पालन पोषण का कार्य भी किया, आज वह शिक्षक अत्यंत ही दयनीय अवस्था में अपनी जिंदगी बिता रहे हैं, या यह कह सकते हैं कि वह प्राइवेट स्कूलों में काम करके मेहनत करने के बावजूद पाई पाई को मोहताज हो गए हैं। लगातार दो वर्ष से प्राइवेट स्कूल के शिक्षक आंशिक वेतन से संतोष करके इस उम्मीद में सक्रियता बनाए हुए थे कि कभी तो यह संकट मिटेगा और उन्हें वापस पहले की तरह सैलरी मिलेगी और वह फिर से सामान्य जीवन यापन कर सकेंगे परंतु कोविड-19 एक तरह का ग्रहण बन करके प्राइवेट स्कूल के शिक्षकों के ऊपर टूट पड़ा है। एक तरफ जहां स्कूल प्रबंधन ने उनकी सैलरी 30 से 50% तक कम कर दी है तो वही कई स्कूलों में शिक्षकों की संख्या कम कर दी गई है, कई विद्यालयों में एक ही शिक्षक से 3-3 शिक्षकों का कार्य कराया जा रहा है और वेतनमान भी कम कर दिया गया है, शिक्षक सिर्फ इस उम्मीद पर कार्य कर रहे हैं कि कभी तो यह दौर समाप्त होगा और उनकी सैलरी और उनका सम्मान दोनों उन्हें वापस मिलेगा।
जैसा कि सबको पता है कि करोना कॉल में अन्य कर्मचारियों की तरह शिक्षकों की भी सैलरी में कटौती की गई थी और बहुत सारे शिक्षकों को कार्यमुक्त भी कर दिया गया था। इस वजह से जो बचे हुए शिक्षक थे उनके ऊपर कार्य का बोझ भी बढ़ गया था। लगभग सभी प्राइवेट विद्यालयों में शिक्षकों की सैलरी में 30 से 50% तक की कटौती की गई थी और इसके साथ ही हर साल मिलने वाला इंक्रीमेंट भी रोक दिया गया था। परंतु अब जब की स्थिति सामान्य होने की तरफ बढ़ चली है इसके बावजूद भी इन शिक्षकों की सुध लेने वाला कोई नहीं है स्कूल प्रबंधन नौकरी का भय दिखा कर के इन शिक्षकों का शोषण करता है, अभी भी अधिकतर विद्यालय ऐसे हैं जिन्होंने अपने शिक्षकों को पूरा वेतन देना आरंभ नहीं किया है यहां तक कि उनको मिलने वाली छुट्टियों में भी कटौती कर दी गई है और यह सब कुछ कोविड-19 के नाम पर हो रहा है। करोना काल के दौरान जब ऑनलाइन क्लासों का दौर शुरू हुआ तो अधिकतर शिक्षक जोकि इस पद्धति से पढ़ाने से अनभिज्ञ थे वह भी मेहनत करके इस पद्धति में ना सिर्फ खुद पारंगत हुए बल्कि बहुत ही कुशलता से उन्होंने विद्यार्थियों को पढ़ाया उनका सिलेबस कंप्लीट करवाया और उन्हें परीक्षा के काबिल बनाया।
Report Suspected Fraud Communication Visit CHAKSHU
Know Your Mobile Connections Visit TAFCOP
स्कूल प्रबंधन ने परीक्षा का भय दिखा कर के अभिभावकों से पूरी फीस वसूली, ऑनलाइन क्लासेज के इस दौर में स्कूल प्रशासन ने खूब कमाई की, स्कूल की फीस तो मिलती ही थी साथ ही कई तरह के बचत भी होते थे जिनमें प्रमुख थे स्कूल वाहनों का ना चलना, कक्षा न चलने की वजह से बिजली के बिल में बचत होना, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की छटनी कर देने की वजह से बचत होना, अध्यापकों की छटनी करने की वजह से बचत होना, लाइब्रेरी और लैब इत्यादि का इस्तेमाल नहीं होने से होने वाली बचत आदि, इन सब माध्यमों से स्कूल प्रशासन ने कमाई तो खूब की परंतु इन शिक्षकों का सुध लेने वाला कोई नहीं था, सरकार भी आंखें बंद किए बैठी थी। आज भी तमाम प्राइवेट विद्यालयों में शिक्षक 30 से 50 परसेंट कम सैलरी पर अतिरिक्त कार्य भी कर रहे हैं। यह सब करने के पीछे दूसरी नौकरी ना मिलने की मजबूरी है, स्कूल प्रशासन भी इस मजबूरी को अच्छी तरह समझता है और इसी का फायदा उठाकर शिक्षकों का ना सिर्फ शोषण करता है बल्कि उनके आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचाता है।
संक्रमण काल के इस दौर में आम जनमानस में कोविड-19 जहां परेशानियों का सबब बना हुआ है वहीं भावी पीढ़ी के भविष्य को संवारने वाले प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों के परिवार के लोग पाई पाई को मोहताज हो चलें है। प्राइवेट स्कूलों में सबसे दयनीय स्थिति प्राइमरी और मिडिल स्तर के संचालित विद्यालयों के शिक्षकों की हो चुकी है। पिछले 2 सालों से अथक मेहनत करने के बावजूद ना तो उन्हें अपनी पूरी सैलरी मिल पा रही है और ना ही सम्मान मिल पा रहा है। करोना काल में सरकार ने इन शिक्षकों को छोड़कर हर वर्ग की सुधि ली शिक्षकों के संगठन ने मांग किया था कि सभी शिक्षकों को कम से कम ₹15000/- में खाते में भेजा जाए जिससे कम से कम एक परिवार का भरण पोषण हो सके लेकिन ऐसा नहीं हो सका है।
आज प्राइवेट स्कूलों में प्राइमरी और मिडिल स्तर के शिक्षक 5000 से 6000 प्रति महीने की सैलरी पर कार्य कर रहे हैं। अगर ध्यान से सोचा जाए तो इनकी स्थिति पढ़े-लिखे मजदूरों से भी बदतर है, आज जहां एक मजदूर भी प्रतिदिन ₹400 कि दर से कमाई करता है वही ये शिक्षक मात्र 200 से ₹300 प्रतिदिन के हिसाब से कार्य कर रहे हैं। बहुत सारे सीटेट और यूपीटेट कंप्लीट किए हुए लोग भी आज ई-रिक्शा और ऑटो रिक्शा चालक बन कर अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं, उनसे पूछने पर उनका जवाब यही होता है कि प्राइवेट स्कूलों में शिक्षक की नौकरी करके ना तो इज्जत मिलता है और ना ही पैसा, कम से कम ऑटो रिक्शा चलाकर पैसे तो कमा सकते हैं और अपना घर परिवार को पाल सकते हैं।
ऐसे में अगर देखा जाए तो करोना संक्रमण का सबसे अधिक प्रभाव शिक्षा पर ही पड़ा है। स्कूल के शिक्षकों की स्थिति अत्यंत दयनीय है उनकी रोजी-रोटी का संकट होने के साथ-साथ उनका परिवार चलाना भी मुश्किल हो गया है। सरकार को निश्चित रूप से इनकी मदद करनी चाहिए और प्राइवेट स्कूल के प्रबंधकों को और स्कूल प्रशासन को जोकि इन शिक्षकों का शोषण कर रहे हैं के ऊपर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। दरअसल प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक आज भी अपने अच्छे दिनों के लिए तरस रहे हैं, देखते हैं उनके अच्छे दिन कब आएंगे।
अमित कुमार श्रीवास्तव
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