नगर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के विभिन्न घाटों पर व्रती महिलाओं ने दिया अर्ध्य
घाटों पर सतर्क रहे पुलिस के जवान, नदियों में गोताखोरों को किया गया था तैनात
बलिया। उदीयमान सूर्य को अर्ध्य के साथ शुक्रवार को लोक आस्था का चार दिनी महापर्व डाला छठ संपन्न हुआ। उदित होते ही भगवान भास्कर को नदी, तालाब, सरोवर के पानी में लाखों व्रती महिलाओं ने अर्ध्य देकर पुत्र के दीर्घायु व परिवार के मंगलमय की कामना की। नगर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के विभिन्न घाटों पर सूर्य को अर्ध्य देने के बाद व्रती महिलाओं ने घाट व घर पर अपने से बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पारण किया। सुरक्षा के मद्देनजर पुलिसकर्मी के साथ ही गोताखोरों को भी नदियों के पास तैनात किया गया था।
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कार्तिक मास में सूर्य षष्ठी व्रत पर्व को लेकर नगर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में काफी उत्साह दिखा। बृहस्पतिवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती महिलाओं ने शुक्रवार की भोर में स्नान करने के बाद नदी, तालाब व सरोवर पर पारम्परिक गीत कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय…गीत गाती हुई विभिन्न टोलियों में घाटों पर पहुंची। जहां भगवान भास्कर का पूजन-अर्चन किया। तत्पश्चात उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर परिवार के सुख-समृद्घि की कामना की। इस दौरान कुछ व्रती महिलाएं पानी में घंटों खड़ी रही तो कुछ मन्नत पूरी होने पर घर से घाट तक सोकर पहुंची.
इस दौरान सबसे अधिक भीड़ नगर के टाउन हाल, रामलीला मैदान, शनिचरी मंदिर, महावीर घाट, लाल घाट, हाइड्रिल कालोनी, हरपुर, मिड्ढी, बिचलाघाट, बेदुआ, राजपूत नेउरी, मिश्र नेउरी, गौशालारोड, भृगु आश्रम, आनंदनगर, संकटमोचन कालोनी, बहादुरपुर, नगर से सटे पौहाड़ीपुर, निधरिया काली मंदिर व शिव मंदिर , अगरसंडा, मिड्ढा, भगवानपुर, देवरिया के घाटों पर देखने को मिला। उधर, भरौली, उजियार घाट, मझौवा, पचरूखिया गंगा घाट पर भीड़ उमड़ी रही। आलम यह रहा कि तीन बजे भोर से ही व्रती महिलाएं घाटों पर पहुंचने लगी। इस दौरान बच्चों ने घाटों के पास जमकर पटाखे छोड़े।
आग से बचाव के लिए विभिन्न समितियों द्वारा ड्रम में पानी तथा बोरियों में बालू भरकर रखा गया था। इसके अलावा ध्वनि यंत्र से समितियों द्वारा बार-बार सुरक्षा की चेतावनी दी जा रही थी तथा समिति के सदस्य एवं पुलिसकर्मी चक्रमण करते रहे।
मन्नत पूरी होने पर व्रती महिलाओं ने भरी कोसी
बलिया। मन्नत पूरी होने पर व्रती महिलाओं ने छठ घाट एवं अपने अपने घरों पर को कोसी भरा। इस दौरान व्रती एवं पड़ोसी महिलाओं ने पारंपरिक छठ गीत भी गाए।छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान कोसी भरने की भी रस्म होती है। यह वह लोग करते हैं, जिन्होंने कोई मनोकामना मांगी हो और वह पूरी हो गई हो। कोसी मिट्टी के बड़े दीये को कहते हैं, इसके भीतर पांच छोटे दीये होते हैं। जिन्हें पांच गन्ने खड़े करके उसके बीच में रखा जाता है। गन्नों के चारो ओर साड़ी भी बांधी जाती है। सुबह सूर्योदय से पहले गन्ने हटा लिए जाते हैं। गन्ने के नीचे रखे गए फल आदि को सूर्योदय के समय अर्घ्य देने जाते समय साथ लेकर जाया जाता है। कोसी की प्रक्रिया के दौरान महिलाएं छठी मैया चलली ससुरवा रोये नइहर के लोग.., कोसी-कोसी बोलीले छठीय मैया.., हमरा गोदीया में भइले ललनवा हमहु कोशीया भरायब.., गाय के गोबरा से अंगना लीपवनी कोसीया भरइनी आदि गीत भी गाती हैं.
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