ट्रामा सेंटर का भवन शुरू से ही बना रहा ड्रामा का शिकार
बलिया। प्रदेश सरकार के फरमान पर सुबे में बंद पड़े ट्रामा सेंटरों को चालू करने की कवायद भले ही शुरू कर दी गई है, लेकिन जिले में जो स्थिति है। उसे देख कर ऐसा नहीं लग रहा है कि ट्रामा सेंटर आसानी से चालू हो सकेगा। बलिया जिला अस्पताल में बने ट्रामा सेंटर में मात्र एक अस्थि सर्जन की तैनाती कर ट्रामा सेंटर को चालू करने की बात काफी हास्यास्पद प्रतीत हो रही है। अब देखना यह है कि ट्रामा सेंटर के नाम पर चुनावी मौसम में सत्ता पक्ष का उम्मीदवार कितना वोट बना पाता है।
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बता दें कि करोड़ों की लागत से ट्रामा सेंटर के लिए बिल्डिंग बनाई गई थी, जिसका तामझाम के साथ उद्घाटन हुआ। लेकिन संसाधनों और सुविधाओं के अभाव में ट्रामा सेंटर चालू नहीं किया जा सका। हालात ये हैं कि अब यहां की खिड़कियां टूट चुकी हैं, कीमती सामान चोरी हो रहे हैं। बता दें कि लंबे इंतजार के बाद जिला अस्पताल परिसर में ट्रामा सेंटर के निर्माण का प्रस्ताव तैयार हुआ। शासन से हरी झंडी मिलने के बाद साल 2014-15 में भवन निर्माण का काम शुरू हो गया। उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद ने करीब 157.43 लाख रुपए की लागत से वर्ष 2016 में भवन को खड़ा कर दिया। 20 दिसंबर 2016 को प्रदेश के तत्कालिन स्वास्थ्य मंत्री शिवाकांत ओझा ने ट्रामा सेंटर का उद्घाटन किया था। इसके बाद लोगों में उम्मीद जगी कि समय पर इलाज मिल सकेगा। लेकिन 6 साल बीत गए, अभी तक लोगों का सपना पूरा नहीं हो पाया। अस्पताल में करीब डेढ़ दशक से ट्रामा सेंटर के लिए ड्रामा चलता रहा। लेकिन जब ट्रामा सेंटर बनकर तैयार हुआ तो सरकार के प्रतिनिधियों ने पिछले छह साल तक ट्रामा सेंटर को चालू कराने की कवायद नहीं की। लेकिन सूबे की सरकार अपने कार्यकाल अंतिम समय में सभी जिलों के बंद पड़े ट्रामा सेंटरों को चालू कराने के लिए एक-दो चिकित्सकों की नियुक्ति कर दी। आलम यह रहा कि बलिया में भी काफी लंबे समय से बनकर तैयार ट्रामा सेंटर में भी एक हड्डी सर्जन चिकित्सक की तैनाती कर दी है। लेकिन उस चिकित्सक को यह नहीं बताया गया कि ट्रामा सेंटर अकेले कैसे चलाएगा। ऐसे में सरकार की यह नीति चुनावी मौसम में वोट बटोरने के लिए कितना कारगर साबित होगी। यह कहना काफी मुश्किल है। भले ही सरकार के मंत्री व विधायक जिले का सर्वागींण विकास करने का दावा कर रहे हो, लेकिन धरातल पर विकास नजर नहीं आ रहा है आलम यह है कि नगर के साथ ही ग्रामीण अंचलों में भी विकास की कोई किरण दूर दूर तक नजर नहीं आ रही। अपने जिले में न तो विश्वविद्यालय ही वास्तव में मूर्त रूप ले सका, न ही मेडिकल कॉलेज बन पाया। पांच साल के कार्यकाल में सिर्फ कागजों में ही विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेज बनता रहा। इसके लिए भले ही कोई भी जिम्मेदार हो लेकिन जनता की नजर में सरकार के नुमाइंदे ही अधिक जिम्मेदार माने जा रहे हैं। हालांकि पिछले बार कोरोना काल में आये सीएम ने तत्कालीन डीएम अदिति सिंह से अपने स्तर से ट्रामा सेंटर चालू कराने का निर्देश तो दे दिया। लेकिन इस ट्रामा के लिए न तो डीएम ने कुछ किया और न तो सीएम ने कुछ किया।
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