आज ही के दिन पाँच साल पहले भारत सरकार ने शाम को आठ बजे अचानक एक हजार रुपये और पांच सौ रुपये के करेन्सी नोटबंदी की घोषणा कर दिये। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस कदम से यह उम्मीद जताई कि इससे अर्थव्यवस्था में जो काला-धन है, वह पूरी तरह खत्म होगा। रोजगार बढ़ेंगे, वस्तुओं और सेवाओ की कीमते घटेंगे और चलन में जारी नकली नोट खत्म होंगे। जिसका असर देश में पनप रहे आतंकवाद पर भी पड़ेगा। 2014 में देश की अर्थव्यवस्था और 2021 की अवस्था के बीच नोटबन्दी एक बड़ा किन्तु जोखिम भरा कदम था। 2014 को 7.5% विकास दर वाली अर्थव्यवस्था मिली थी। जिसके चलते उन्होंने डंका बजा-बजाकर कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। नोटबन्दीसे पहले प्रधानमंत्री जन-धन योजना लागू हो चुकी थी। नोटबन्दी लागू होने की बाद देश के सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्रीयों ने इस कदम को देश की प्रगति के विपरीत बताया। नोटबन्दी से जो उम्मीदें की गयी थी। उसकी समीक्षा का आज एक दिन है। जहां तक रिज़र्व बैंक द्वारा एक हजार व पांच सौ के नोटों को जारी करने का प्रश्न है। उसे 99% नोट वापस मिल गये और जो नहीं मिले वो विदेशी थे। जहां भारतीय नोट स्वीकार किये जाते थे। जाली नोटो का कोई जो नये दो हजार के नोट जारी किए गए। वे भी फर्जी तौर पर जारी होने लगे।
जहाँ तक काले धन को बाहर लाने का प्रश्न है उसके सम्बंध में यह जरूर है कि आयकर विवरण भरने वालों की संख्या काफी बढ़ी और प्रत्यक्ष कर की वसूली भी बढ़ी लोगों ने अपनी करेंसी को सोना चांदी में बदल लिया और इसका हाल यह हुआ कि सोने का भाव दो गुना हो गया। इसी प्रकार चांदी का भी काला धन जो अंकुश लगना चाहिए। वह लगा नहीं और उसका उपयोग करते प्रतिबंधों के चलते उत्पादन और विकास कार्यों में भी नहीं हो पाया। प्रधानमंत्री को यह सिद्ध करना था कि वह कुछ भी कर सकते हैं। तीन महीने बाद ही पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए जिनमें अधिकांश सीटें उनकी पार्टी को मिली जिसका मतलब यह लगाया गया कि नोटबंदी को जनता का व्यापक समर्थन मिला। इस कदम के चलते लाखों कंपनियां और संकट में आ गई और बेकारी घटने की उम्मीद पर पानी फिर गया। जहां तक वस्तुओं और सेवाओं के कीमतों का प्रश्न है उस में बेतहाशा वृद्धि हुई। जिसका फल यह हुआ कि दिसंबर 2019 मैं विकास की दर 3.9% रह गई इस समय तो वर्षों से कोविड-19 की मार झेलते झेलते विकास की दर -4% पर आ गई। वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें 50 प्रतिशत से 250 प्रतिशत तक बढ़ गई अर्थव्यवस्था में वर्ष 2004 में विषमता एक फ़ीसदी आबादी के हाथों में 74% संपत्ति की 14 तक घटकर 58% पर आ गई और इस समय वह 72% पर चली गई। विदेशी कर्जा जो 52 लाख करोड़ डालर देश पर था। इस समय वह पढ़कर 88 लाख करोड़ डालर से ऊपर चला गया है।
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नोटबंदी के दौरान लगभग सवा सौ लोगों की जान नोटों के बदलने में चली गई। सात लाख से अधिक कंपनियां बंद हो गई। कारण जो भी हो लेकिन बेरोजगारी घटाने में यह कदम सफल नहीं माना जा सकता। भारत में पहले भी कई बार नोटबंदी की गई थी। जिसका उद्देश्य रुपए के मूल्य को अंतरराष्ट्रीय बाजार में व्यापार संतुलन ठीक करने के लिए किया जाता रहा है। अपनी वर्चस्व था प्रमाणित करने के लिए भारत में जो नोटबंदी का कदम उठाया इससे चीन आदि पड़ोसी देशों के साथ व्यापार संतुलन भी ठीक नहीं हो पाया आंतरिक अर्थव्यवस्था काले धन की भूमिका को सकारात्मक ढंग से स्वीकार करते हुए उसे विकास कार्यों में लगाना अधिक लाभकारी हो सकता है। वह 2021 की दिवाली पर्व पर भारत सरकार ने यह दावा किया कि पिछले दो वर्षो की तुलना में बाजार में बिजली दो दिन में 125 करोड़ से भी अधिक की हुई है। किंतु वह आंकड़ा देना भूल गए कि यह मूल्य पिछले दो वर्षों में जो मूल्य वृद्धि हुई है। उस पर है वस्तुओं के तादाद पर नहीं आवश्यक इस बात है कि देश की अर्थव्यवस्था को प्रचार और काल्पनिक का से बचाया जाए और वास्तविक धरातल पर खड़ा करने का प्रयास किया जाएगा। आश्चर्य जनक बना हुआ है कि नोटबंदी का और व्यवस्था को क्या लाभ हुआ है क्या हानि हुई है। इस पर केंद्र सरकार को श्वेत पत्र जारी करना चाहिए था। जो आज तक नहीं किया गया।
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अशोक
(वरिष्ठ पत्रकार एवं अधिवक्ता)
08 नवंबर 2021
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नोटबंदी के दौरान अकूत काला धन गंगा जैसी नदियों में बहा दिया गया। आतंकवाद फैलाने वाले लोगों का अरबों रुपया मिट्टी हो गया। मानव का लिया कोई भी निर्णय परफेक्ट नही होता पर नोटबंदी से जहाँ चोट लगानी थी वहाँ लगी भी। अब नेगेटिव सोच कर हाथ पर हाथ धरकर बैठना भी तो ठीक नहीं।
किसी के विकास के लिए आप व हम क्या कर रहे हैं? यह चिन्तन का विषय है।
क्योंकि तभी आप व हम यह समझ सकते है कि दूसरा क्या कर रहा है।