नगर से लेकर गांव के चट्टी चौराहे तक सजी फलों की दुकानें, बाजारों में भीड़
बलिया। भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है, जहां हर धर्म का अपना ही महत्व है। प्रकृति में ऊर्जा के सबसे बड़े स्त्रोत सूर्य देवता हैं। उनका हमारे जीवन में विशेष महत्व है। सूर्य देव की उपासना का पर्व छठपूज आज नहाय खाय के साथ शुरू हो गया।
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लोकआस्था का महापर्व डाला छठ भारत में हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व प्राकृतिक से प्रेम का प्रतीक है। छठ पूजा भारत के मुख्य त्योहारों में से एक है। खासकर बिहार, झारखंड एवं उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में डाला छठ का पर्व घर-घर मनाया जाता है। अब यूपी के साथ दिल्ली, हरियाणा, पंजाब व महाराष्ट्र आदि प्रान्तों में भी लोग मन रहे है।
पूरे पूर्वांचल में व्रती महिलाओं ने सोमवार को घर की साफ-सफाई कर एवं स्नान- ध्यान कर नहाय-खाय के साथ व्रत आरंभ किया। अभी से भगवान भास्कर की आराधना के चार दिवसीय व्रत डाला छठ का उल्लास पूरे वातावरण में छा गया है। व्रती महिलाओं ने पूरे विधि-विधान से व्रत की शुरुआत की। मंगलवार को खरना के बाद व्रती साधक बुधवार की शाम नदियों व सरोवरों के तट पर अस्ताचलगामी भगवान भाष्कर को अर्घ्य देंगी। इसके लिए व्रत के साथ ही समस्त तैयारियां जोरों पर हैं। बाजारों में फलों की अस्थायी दुकानें सज गई हैं। खरीदारी के लिए लोगों की भीड़ लग गई है।
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संतान एवं परिवार कल्याण की कामना को लेकर किए जाने वाले व्रत की शुरुआत सोमवार को नहाय-खाय के साथ हुई। इस चार दिवसीय अति कठिन व्रत का मुख्य एवं सर्वाधिक कठिन व्रत बुधवार को होना है। व्रतियों की तैयारी और सजे बाजार देख ऐसी अनुभूति होने लगी है, मानो हर ओर आस्था का प्रवाह लहरा रहा हो। गांव-गांव, नगर-नगर, हर चट्टी-चौराहे पर छठ पूजनोत्सव की तैयारियों में लोग व्यस्त नजर आ रहे हैं। पवित्र नदियों, सरोवरों के तटों पर वेदियां बनकर तैयार हैं। बाजारों में अनूठे फलों से लगायत सूप-सूपेली, दउरी, दीया, कोसी आदि की रंग-बिरंगे टेंटों में अस्थायी दुकानें सजी हुई हैं। चहुंओर भीड़ व खरीदारी का आलम है।कार्तिक शुक्ल षष्ठी व सप्तमी को प्रमुख रूप से होने वाले इस चार दिवसीय पर्व पर तीन दिनों की उपवास व्रत साधना अत्यंत कठिन है। सोमवार को प्रथम दिन व्रतियों ने स्नानादि से शुद्ध होकर लौकी की सब्जी, चावल और चने की दाल खाकर व्रत शुरू किया। मंगलवार दूसरे दिन पूरे दिन उपवास करने के बाद सायंकाल व्रती खीर-रोटी खाएंगी। इसके बाद बुधवार को 24 घंटे का निराजल मुख्य व्रत आरंभ होगा, जो गुरुवार को उदित होते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही पूर्ण होगा। इसके पूर्व पूरे घर एवं पूजन सामग्री बनाने में लगने वाले अनाजों आदि की साफ-सफाई कर अन्य सारी तैयारियां लगभग पूर्ण कर ली गईं हैं। व्रत के दौरान आहार-विहार व आचार-व्यवहार की शुद्धता का विशेष महत्व है।
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प्रकृति की पूजा का अनोखा संगम का समावेश है ये पर्व।
सबको शुभकामनाएं।