गलत मंशा से किसी भी तरह से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श करना पॉक्सो एक्ट का मामला
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को गलत ठहराया
नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें कहा गया था कि स्किन टू स्किन के संपर्क के बिना नाबालिग के स्तन को छूना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है।अर्थात गलत मंशा से किसी भी तरह से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श करना पॉक्सो एक्ट का मामला माना जाएगा।
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सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका संख्या Criminal Appeal No 1410 of 2021 को निस्तारित करते हुए 18 नवंबर 2021 को Attorney General of India vs Satish and others पॉक्सो एक्ट के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है। जिसमें कहा गया था कि स्किन टू स्किन के संपर्क के बिना नाबालिग के स्तन को छूना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। जस्टिस यू यू ललित, जस्टिस रवींद्र भट्ट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की तीन-सदस्यीय पीठ ने कहा कि गलत मंशा से किसी भी तरह से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श करना पॉक्सो एक्ट का मामला माना जाएगा। अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है। ऐसी परिभाषा बच्चों को शोषण से बचाने के लिए बने पॉक्सो एक्ट के मकसद ही खत्म कर देगी। इसके अलावा शीर्ष अदालत ने इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी हुए आरोपी को दोषी ठहराया। आरोपी को पॉक्सो एक्ट के तहत तीन साल की सजा दी गई।
दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि नाबालिग के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना छूना या टटोलना पॉक्सो एक्ट के तहत नहीं आता। अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी। वहीं अब उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट के इस फैसले को बदलते हुए बड़ा फैसला सुनाया।
अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान तर्क दिया कि अधिनियम की धारा-आठ के तहत ‘स्किन टू स्किन’ के संपर्क को यौन हमले के अपराध के रूप में व्यक्त नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट जज ने यह देखा कि बच्चे के स्तनों को टटोलने के अपराध के लिए तीन वर्ष की सजा बहुत सख्त है लेकिन यह ध्यान नहीं दिया कि धारा-सात ऐसे सभी प्रकार के कृत्यों से व्यापक तरीके से निपटता है और ऐसे अपराधों के लिए न्यूनतम सजा के रूप में तीन साल निर्धारित करता है।
वेणुगोपाल ने कहा कि आईपीसी की धारा-354 एक महिला से संबंधित है न कि 12 साल के बच्चे के लिए, जैसा कि वर्तमान मामले में है। पॉक्सो एक विशेष कानून है जिसका उद्देश्य उन बच्चों की रक्षा करना है जो अधिक कमजोर है। ऐसे में कोई यह नहीं कह सकता कि आई पी सी की धारा-354 की प्रकृति में समान है। वेणुगोपाल ने तर्क दिया था कि हाईकोर्ट के फैसले का मतलब यह है कि एक व्यक्ति जो एक जोड़ी सर्जिकल दस्ताने पहनने के बाद एक बच्चे का यौन शोषण करता है उसे बरी कर दिया जाएगा। उन्होंने तर्क दिया था कि इस फैसले से असाधारण स्थितियां पैदा होंगी। वेणुगोपाल का कहना था कि कि पॉक्सो के तहत अपराध के लिए ‘स्किन टू स्किन’ आवश्यक नहीं है
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