Ballia National आगे ही नही पीछे भी

आगे ही नहीं पीछे भी… शंकराचार्य का विज्ञान

जैन धर्म के प्रवर्तक ऋषभ देव थे जो गौतमबुद्ध से लगभग डेढ़ हाजर वर्ष पूर्व पैदा हुए होंगे। महावीर स्वामी इस परम्परा के तेइसवें तीर्थकर रहे। यह धर्म भारत के परम्परागत धर्म से बहुत अलग नहीं था। परम्परागत विचारधारा के अनुसार अपने इन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान प्रत्यक्ष कहा जाता था जैसे कान से शब्द का, त्वचा से स्पर्श का, आँख से रूप का, रसना से स्वाद का और नासिका से गंध का जो ज्ञान प्राप्त होता है वह प्रत्यक्ष ज्ञान कहलाता है। जैन विचारधारा के अनुसार ऐसा ज्ञान परोक्ष होता है। जैन चिंतन के अनुसार आत्मज्ञान प्रत्यक्ष होता है और अन्य सभी प्रकार के ज्ञान परोक्ष होते हैं। इस प्रकार ज्ञान चाहे प्राप्त हो या आप्त हो (शब्द प्रमाण या वेद प्रमाण) दोनों परोक्ष होते हैं। ईश्वर की अवधारणा भी आत्म ज्ञान से अलग नहीं है। वेदों में प्रकृति, सम्पूर्ण नक्षत्र मण्डल विश्व संरचना के घटक, आयुर्वेद, शब्द विज्ञान, आयुध विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान एवं तत्व विज्ञान आदि महत्वपूर्ण हर समय हर देश, और हर परिस्तिथि में वैज्ञानिकों के लिए आज भी शोध के मूल विषय बने हुए हैं। ऐसा नहीं समझना चाहिए कि वैदिक ज्ञान में विज्ञान नहीं है अथवा इसका ज्ञान विज्ञान विरोधी है। दुनिया के कई धर्म यह मानते हैं कि विज्ञान उनका विरोधी है किन्तु वैदिक ज्ञान और विज्ञान एक दूसरे के समर्थक और आधार युक्त हैं। ज्ञान सामान्य बोध प्रदान करता है और विज्ञान विशेष बोध या विश्लिष्ट बोध या कार्य कारण युक्त तर्क संगत ज्ञान माना जाता है कि वैदिक ज्ञान के लिए किसी दूसरे प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती अपितु वैदिक ज्ञान स्वतः प्रमाण होते हैं यदि इस धारणा को मान लिया जाय तो वेदोक्त सम्पूर्ण विज्ञान स्वतः प्रमाण है और जब जहाँ जिस रूप में उसे परखा जाएगा या किसी भी प्रयोगशाला में उसका परीक्षण किया जाएगा, वह स्वतः प्रमाणित ही होगा, स्वमं सिद्ध होगा, तथ्यपरक होगा और उसके निष्कर्षो के आधार पर आगामी अनुसन्धान के लिए समुचित दिशा विज्ञान को मिलती रहेगी और ज्ञान उसका सदैव सहयोगी बना रहेगा। एक उदाहरण पर्याप्त होगा। छांदोग्य उपनिषद् में आया है कि तुम आग्नेय (अग्नितत्व) शक्तियों का उपयोग करके विभिन्न ग्रहों की यात्रायें करो। यह सूक्त वाक्य यह स्पष्ट करता है कि आग्नेय शक्तियों का आज का विज्ञान उपयोग कर रहा है और विभिन्न ग्रहों एवं उपग्रहों  यात्रा की दिशा में प्रयासरत हैं। अभी आधुनिक विज्ञान को ऐसे भी अनुसंधान करने शेष है जिसका उल्लेख महाभारत में हुआ है। अग्नि तत्व के आयुधों को जलतत्व में परिवर्तित कर देना सम्भव था। कृष्ण के क्रिया कलापों में इस प्रकार के संदर्भ आते हैं। जलीय तत्वों को पृथ्वी तत्व में परिवर्तित करने की क्रिया को गोवर्द्धन उठाना कहा गया। जल शोधन वायु शोधन के लिए उनके प्रयोग प्रासंगिक और शोध प्रेरक बने हुए हैं। जैनियों ने विज्ञान के लिए नये अनुसंधान के द्वार खोल दिये और आयुध विज्ञान ने पारमाणविक रहस्यों को जानने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। महाभारत का कर्ण सूर्य रश्मियों से गर्भाधान हो जाने की प्रक्रिया बताता है जो विज्ञान के लिए खोज का नया विषय हो सकता है। जैनियों ने एक-एक मनोविकारों पर बारी बारी से विजय प्राप्त करना संम्भव बताया जो मनोविज्ञान के चिंतन का विषय बन सकता है।

बौद्ध चिंतन में सृष्टि को शून्य से उत्पन्न बताया। वेदों में कहा गया कि सृष्ठी का आधार ऋत् और सत् है। बाइबिल में इसे अर्थ और हेवेन कहा गया । बौद्धों ने इसे अर्थात् शून्य ऋत् या अभाव तथा जग, सत् या भाव (होना) अर्थात् नहीं था जिससे हो गया कहा गया। वैदिक सिद्धान्त का ऋत् अपनी मूल प्रकृति में शून्य नहीं होता अपितु अव्यक्त स्थिति में रहता है। बुद्ध ने जो चिंतन दिया उससे समाज विज्ञान और मानव विज्ञान को दिशा देने वाले बुद्ध अतिबाद का विरोध करते हैं और मध्यमार्ग का समर्थन। सच को या अच्छाइयों को सच या अच्छा कहना तथा झूठ या खराबियों को झूठ या खराब कहना अनुचित नहीं है। बुद्ध ने जो सामाजिक ज्ञान दिया उसमें किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं है। सभी बराबर हैं,  सबकी समस्या वास्तव में दुःख ही है इसलिए सभी को एकमत होकर विचार करना चाहिए इसे, ‘बुद्धं शरणं गच्छामि’ कहा गया । किसी व्यक्ति की शरण में नहीं जाना है अपितु विचार मंथन की शरण में जाना है, स्थिर और मध्यमार्ग के आठ नियमों को मानना ‘धम्मं शरणं गच्छामि’ है। अपने अनुभव और उपलब्धियों को अन्य व्यक्तियों में बाँटना ताकी सम्पूर्ण समाज को इसका लाभ मिलता रहे ‘संघं शरणं गच्छामि’ है। आज का विज्ञान भी निश्चित रूप से कोई सिद्धान्त नहीं दे पाता। सिद्धान्तों के विपरीत सिद्धान्त अथवा सिद्धान्तों का विलोपन तथा उनका संवर्द्धन निरन्तर प्रक्रिया है। विज्ञान को इस प्रक्रिया से निरन्तर लाभ प्राप्त हो सकता है। इसलिए यह समझना भारी भूल है कि जो सत्य विचारों में प्रकट होते हैं उनका परीक्षण वैज्ञानिक दृष्टि से नहीं किया जा सकता है। यह समझना भी भूल ही है आज के विज्ञान का मूल मूलतः कभी पहले नहीं था। यह समझना भी सर्वथा अनुचित है कि आज का विज्ञान और चिंतन भविष्य में इसी प्रकार यथावत् ही बने रहेंगे।

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शंकराचार्य का आभासित सत्य जिसे उन्होंने विवर्तवाद कहा या मायावाद कहा, आधुनिक विज्ञान के लिए सर्वाधिक दिशा बोधक है। शंकराचार्य ने कहा जो दिखाई दे रहा है वह है नहीं, और जो है वह दिखाई नहीं दे रहा है। सीप में मोती, ताप लहरों को जलधारा समझकर पीछे दौड़ना अर्थात् मृगतृष्णा पृथ्वी और आकाश का मिलन अर्थात् क्षितिज दिखाई देते हैं लेकिन न तो सीप में मोती दिखता है, न ताप लहर में पानी और न तो दिखाई दे रहा क्षितिज वास्तव में कुछ होता है। भारत के प्रथम विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार विजेता चन्द्रशेखर वेंकट रमन को शंकराचार्य का यह सिद्दांत उनके रमण इफेक्ट (रमन प्रभाव ) में बदल गया। होता कुछ और है और दिखाई कुछ और देता हो जिसका खुलासा अगर कोई विचारक करता है तो क्या यह विज्ञान की खोज का विषय नहीं ? कि ऐसा होता क्यों है। सपने का संसार अलग और जगने का संसार अलग, ये दो संसार कैसे दिखाई देते हैं। डॉ सम्पूर्णानंद ने चिद्विलास में स्पष्ट किया है कि सपने में दीखता संसार वस्तु शून्य होता है इसलिए वह जागृत संसार से भिन्न है। क्या यह विषय विज्ञान के खोज का नहीं है। देखने में सूर्य ऊगता है और डूबता भी है। भारत में आर्यभट्ट ने जब कहा कि यह एक आभासित सत्य है, वास्तविकता यह है कि पृथ्वी के गतिमान होने के चलते सूर्य गतिमान दिखता है जिस प्रकार हम गाड़ी में बैठे होते हैं गाड़ी चलती है किन्तु पेड़ चलते हुए दिखाई देते हैं। ऐसी खोज जब यूरोप में गौलीलियों ने की तो उन्हें दण्डित होना पड़ा क्यों कि यह खोज उनके धार्मिक ग्रंथों के प्रतिकूल थी। आर्यभट्ट ने वैदिक ज्योतिष के आधार पर सिद्दांत विकसित किया जिसमें यह जानते हुए कि सभी ग्रह गतिशील होते हैं, किंन्तु मात्र गणना के लिए सूर्य को गतिशील माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य भी ब्रह्माण्ड में गतिशील रहता है, यह बात और है कि उसकी गति लाखों वर्षों में परिलक्षित होती है। शंकराचार्य के मायावादी सिद्धान्त विचारकों के लिए, माया मुक्ति के लिए दिशा देते हैं किन्तु विज्ञान के लिए निरन्तर शोध का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

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शिवजी पाण्डेय “रसराज”

12 November 2021


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