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शाइनिंग इंडिया और फीलगुड वाला बजट


डिजिटल सरकार का डिजिटल बजट केवल आंकड़ों की बाजीगरी

भारत सरकार का 2022-23 का बजट कोविड काल में भी टिकाऊ रहने वाली अर्थव्यवस्था को प्रदर्शित करता है और दूसरी ओर गमगीन वर्ग को आश्वासन देने वाला बजट कहा जाता है। पिछले वर्ष गम का माहौल था इस वर्ष सुधरेगा अच्छा महसूस किया जाय। 25 वर्ष बाद भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में नंबर एक तो हो ही जाएगी। अपने देश को सकारात्मक दृष्टि से देखा जाना चाहिए और यह जानना भी जरूरी है कि भारत सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास और सब का प्रयास के मूल मंत्र पर चलते हुए दुनिया में चमक रहा है। इसलिए भारतवासियों को चमकते हुए भारत का दर्शन आस्थापूर्वक हो रहा है। अच्छा देखने से अच्छाई बढ़ती है, और अच्छा अनुभव करने से अच्छाई दिखती है, प्रस्तावित बजट निराशाजनक तो नहीं, किंतु उन लोगों के लिए आशाजनक भी नहीं है। जिन लोगों ने इस बजट से बहुत कुछ आशाएं पाल रखी होंगी। बजट में 39 लाख करोड़ से अधिक का व्यय होना प्रस्तावित है। जो पिछले वर्ष के बजट में चार लाख करोड़ अधिक है। बजट आधारभूत सुविधाओं के विस्तार वाला विकासोन्मुख अधिक रोजगार देने वाला और निम्न वर्ग का हितैषी बताया गया है। सड़कों का 25000 किलोमीटर विस्तार किया जाएगा, रेल की सुविधाएं वंदे भारत नैनो ट्रेन और सुंदरीकरण के माध्यम से होगा। जल मार्ग विस्तृत होंगे और बंदरगाहों की सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी। एयर इंडिया जो अब टाटा को दे दिया गया है। सरकार के बजट से भी निकल गया है। इसी प्रकार अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रम दिन का निजीकरण हो चुका है। वह भी बजट की परिधि से बाहर हो गए हैं। पर्वतमाला और नदी तटीय क्षेत्र भी 5 किमी तक जैविक खेती की योजनाएं लायी गई हैं। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान और गेहूं खरीद किए जाने का बजट में प्रावधान किया गया है। किंतु गारंटी नहीं दी गई है और ना तो उसके पुनर्निर्धारण की बात की कही गई है। जिससे 2022 तक 150% कृषि मूल्य का आश्वासन पूरा होने में संदेह पैदा होना स्वभाविक है। बजट में छोटे किसानों के हित की बात आई है। किंतु उनके लिए कोई प्रावधान नजर नहीं आता। बजटीय प्रभाव से 60 लाख रोजगार सृजन की बात कही गई है जबकि रोजगार के अवसर नोटबंदी जीएसटी और कोविड-19 के चलते तो घटे ही हैं सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में निजी हाथों में चले जाने के फलस्वरूप सरकार पर रोजगार का भार भी घटा है भारत की जनसंख्या 130 करोड़ की हो गई है और 49 करोंड़ लोग शहरी क्षेत्र में रहते हैं, 15 करोड़ किसानक है, 95 करोड़ का कामगर है, 41 करोड़ युवा है, 95 करोड़ मताधिकार प्राप्त कर चुके हैं पिछले 2 वर्षों में 12 करोड़ों बेरोजगार हुए हैं जिनमें से 8 करोड़ अभी बेरोजगार है| इस प्रकार बेरोजगार लोगों की संख्या 33 करोड़ हो गई है जो निम्न मध्यम वर्ग से भी नीचे का जीवन जी रहे है| बजट में इन 33 करोड़ बेरोजगार लोगों को उनके जिंदा रहने के मौलिक अधिकार को सुरक्षित रखने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं किया गया है शायद यह उम्मीद की गई होगी कि पूंजीपतियों व उद्योगपतियों के अतिरिक्त आय के स्राव को चाट कर इनका जीवन चलाया जाता होगा इसे ट्रिकिल डाउन कहा जाता है बड़े बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में तो कुछ हद तक एसे वंचित लोगों को कुछ मिल जाता होगा किंतु देश के ऐसे क्षेत्रों में जहां दूध के फफकने की संभावना को कौन कहे| उसे कभी भी ऐसी नौबत आ ही नहीं सकती देश में किसानों और मजदूरों की आत्महत्याओं और वंचित एवं अभावग्रस्त समुदाय के लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं दिखाई देता है किसानों की आय दोगुनी करने का आश्वासन कृषि की लागतो को कम करने और एमएसपी बढ़ाने का तरीका उपभोक्ता के रूप में किसानों को कम मूल्य पर गैर कृषि वस्तुओं की खरीद पर छूट दिए बिना कैसे संभव है डीजल और पेट्रोल का मूल्य, रसोई गैस का मूल्य का बढ़ना और जीएसटी में छूट का कोई लाभ किसानों को न मिलना उनकी आय दुनी करने में बाधक बनी हुई है इसका समाधान एक दलाल को हटाकर दूसरे दलाल पैदा करके नहीं किया जा सकता वस्तुओं की कीमतें जब बढ़ती है तो इसका बहुमुखी प्रभाव होता है बचते घटती हैं जिससे निवेश घटता है रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव होता है विदेश व्यापार अपने देश के विपरीत हो जाता है किंतु उत्पादन को प्रोत्साहन मिलता है और पूंजी की मांग बढ़ती है जिसका प्रभाव यह होता है कि अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है बढ़ती हुई कीमतों पर अंकुश लगाने और राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण रखते हुए रोजगार मूल्य और उत्पादन के मूल्य में संतुलन बनाए रखना बजट को भौतिक नीति का परिणाम होता है प्रस्तावित बजट में किसानों को दी जा रही सम्मान निधि 6000 रुपये वार्षिक में बढ़ोतरी न करने से भी इसका वास्तविक मूल्य भी घट गया मनरेगा का आवंटन प्रस्तावित बजट में कम कर दिए जाने से कार्य दिवस तो घटे ही उनकी दैनिक मजदूरी को भी बढ़ाने का वास्तविक मजदूरी भी महंगाई के चलते घट जाएगी वेतनभोगी कर्मचारियों को बढ़ी हुई महंगाई के बराबर महंगाई भत्ता दे दिया जाता है किंतु इस पर किसानों एवं मजदूरों के लिए सरकार विचार कर जो इस बजट में भी है विदेशी कर्ज में 36 लाख करोड़ की वृद्धि हुई है जिसके चलते पिछले बजट का 20 फ़ीसदी ब्याज के रूप में भुगतान का प्रावधान था जिसे बजट में 25 फ़ीसदी तक बढ़ जाने में कोई आश्चर्य नहीं है विदेशी कर्ज देश के डॉलर स्टाक में वृद्धि करते हैं जिस विधि को देखकर हम फुले नहीं समाते हैं अर्थशास्त्रियों का ऐसा मानना है कि देश की संपूर्ण संपदा का 99 भाग लोगों के पास है जबकि 1% संपत्ति 92 लोगों के पास पूजी की विषमता घटाने अथवा राष्ट्रीय आय को वितरण में समानता लाने के उद्देश्य से कोई ठोस प्राविधान बजट में नहीं दिखाई देता है संपन्न वर्ग ने बजट की सराहना की है किंतु विपन वर्ग अपनी पीड़ा को अभिव्यक्त करने का की दिशा में उचित माध्यम खोजने में भी सफल नहीं हो पा रहा है सरकार 80 करोड़ लोगों को निशुल्क अनाज देने का ढिंढोरा पीटकर चुनावी मुद्दा बना सकती है जबकि 33 करोड़ लोगों को इस स्थिति में लाने का प्रयास भी नहीं कर पा रही है कि वे ऐसी स्थिति में आ जाए कि जिन्हें मुफ्त राशन और सब्सिडी की आवश्यकता ही न पड़े| रसोई गैस से सब्सिडी हटाकर और अन्य वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य बढ़ाकर बजट क्या संदेश देना चाहता है बजट में एक डिजिटल विश्वविद्यालय स्थापित करने का प्रस्ताव भी किया गया है। डिजिटल करेंसी चलेगी 5G स्पेक्ट्रम की नीलामी के संकेत दिए गए हैं। डिजिटल भारत बनाने के लिए हर प्रकार के प्रयास किए जाएंगे। हर गांव को फाइबर लाइन के सहारे केबल नेटवर्क से जोड़ दिया जाएगा। हर गांव में डिजिटल प्रशिक्षित व्यक्तियों को नया काम मिलेगा। बजट के ये प्राविधान देश के भीतर एक डिजिटल देश बनाने में सफल होंगे। देश की वंचित जनता कुंठा का शिकार होती रहेगी। बजट से आशाएं सबको रहती हैं। किंतु वंचितों को निराशा की स्थिति में ही रखना बजट का उद्देश्य नहीं हो सकता। कुछ होगा जरूर जो समझ में नहीं आ रहा है।

Block Your Lost / Stolen Mobile Phone Visit CEIR
Report Suspected Fraud Communication Visit CHAKSHU
Know Your Mobile Connections Visit TAFCOP


अशोक

वरिष्ठ अधिवक्ता व पत्रकार


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