भृगुनगरी का सुरहाताल प्रवासी पक्षियों के लिए प्राचीन समय से मशहूर है। यह ताल 34.32 वर्ग किमी में फैला हुआ है। इसे 1991 में सुरहाताल पक्षी बिहार भी घोषित किया जा चुका है। जो गंगा और सरयू के दोआब में स्थित एक गोखुर झील है। कभी इसी सुरहा ताल में सर्दी के मौसम में हजारों की संख्या में सैलानी पक्षी आते थे. लेकिन अब वही सैलानी पक्षी इस सुरहा ताल से विमुख हो गए हैं. सर्दी शुरू होने पर कभी समय था कि इनके कलरव को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते थे. एनजीटी ने इन्हीं पक्षियों के आगमन को देखते हुए जन नायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय में हो रहे हॉस्टल निर्माण पर रोक लगा दिया था. वर्तमान समय में सर्दी भी शुरू हो चुकी है. लेकिन अब पहले की तरह सुरहाताल में साइबेरियन पक्षियों के झुंड नहीं आते है.
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जिला मुख्यालय से लगभग 12 किमी दूर और बांसडीह तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर जाकर सुरहाताल का वास्तविक नजारा रमणीय है।हर साल ठंड शुरू होते ही सुरहा ताल में सैलानी पक्षियों का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है। जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है। जहां पर अक्सर लोग इनका शिकार भी करते हैं जिसकी वजह से धीरे-धीरे इनकी संख्या कम होती जा रही है। सुरहा ताल गंगा और सरयू नदी दोनों के बीच स्थित है। इसे गोखुर झील भी कहा जाता जाता है। इस झील को पंछी बिहार भी कहते हैं। बसंतपुर व मैरीटार इलाके के लोगों के शिकार किये जाने की वजह से पक्षियों का आना कम हुआ है.
बता दें कि सर्दी शुरू होते ही परदेश से हजारों की संख्या में लगभग 14 किमी क्षेत्रफल में फैले सुरहा ताल में सैलानी पक्षियों के आने का क्रम शुरू हो जाता है। यहां आने वाले पक्षी करीब एक-डेढ़ दशक पहले महफूज रहते थे। धीरे-धीरे कुछ लोगों ने इनका शिकार करना अपना व्यवसाय बना लिया है। इस बात का असर इनके आवक पर भी पड़ा और कुछ नस्लों के पक्षियों ने तो यहां का रुख करना ही बंद कर दिया। इस साल सर्दी के साथ हजारों मील की दूरी तय कर प्रवासी पक्षी पहुंच रहे हैं।पक्षियों का शिकार रोकने के लिए प्रशासन ने इसे संरक्षी क्षेत्र घोषित कर दिया। सैलानी पक्षियों के सुरक्षा जिम्मेदारी काशी वन्य जीव प्रभाग रामनगर वाराणसी को सौंपी गयी है. बावजूद, इसके सैलानी पक्षियों के शिकार होने का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा है। सबसे दिलचस्प तो यह है कि सर्दी के मौसम में इनकी आवक कम होने को लेकर शासन के साथ ही काशी वन्य जीव प्रभाग रामनगर वाराणसी भी चुप्पी साध चूका है.
इस सुरहा ताल में हर साल सर्दी कद मौसम में साइबेरियन पक्षियों के आगमन को देखकर प्रभावित हुए पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस सुरहा ताल को पर्यटन केंद्र के रूप विकसित करने की नीयत से शहीद स्मारक का निर्माण कराकर इस थाती को संजोने की दिशा कदम रखा था. लेकिन उनके निधन के बाद उनके सपने को आगे बढ़ाने की दिशा में न तो उनके सांसद बेटे ने कोई मुहिम शुरू की, न तो देश व प्रदेश की शासन सत्ता बैठे उनके अनुयायी ही कुछ करिश्मा दिखा सके. उनके वारिस के रूप वैसे सांसद व विधायक जो वर्तमान सरकार में कद्दावर मंत्री का ओहदा संभाल रहे है. उन्होंने भी सरकार को इस दिशा में झाँकने के लिए प्रयास नहीं कराया. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सपनों को संभालना अब नई पीढ़ी का कार्य बनकर रह गया है.
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