Ballia UP Bihar

सजग रचनाकार थे लालजी सहाय लोचन

टाउन हॉल के चलता पुस्तकालय सभागार में लोचनजी को दी गई श्रद्धांजलि

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बलिया। बलिया हिंदी प्रचारिणी सभा के चलता पुस्तकालय सभागार में जनपद के प्रख्यात कवि लालजी सहाय लोचन के निधन का समाचार सुनकर एक शोक सभा आयोजित की गई। जिसमें 92 वर्षीय लोचनजी को श्रद्धांजलि दी गई। वक्ताओं ने कहा कि बलिया के साहित्य के एक युग का अंत हो गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ रघुवंशमणि पाठक ने कहा कि लोचनजी एक सजग रचनाकार थे। इन्हें प्रगतिवादी साहित्य सृजन के लिए बलिया हिंदी प्रचारिणी सभा ने दो बार सम्मानित किया था। इनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई। जिसमें दो कुंडलिया और एक सटायर तीसरी आंख। ये अपने पीछे इतना साहित्य छोड़ गए हैं। जिन्हें 10 पुस्तकों में प्रकाशित किया जा सकता है। अशोक ने कहा कि लालजी सहाय का मूल नाम गंगा वीरेंद्र सिंह है। उनकी साहित्यिक प्रतिभा 1974 से निकली। जब इन्होंने बलिया से प्रकाशित दैनिक भृगुक्षेत्र में कुंडलिया, चिकोटियाँ, कभी-कभी चू चू का मुरब्बा लिखते रहें। लोचनजी बलिया में बलिक्षेत्र और सुल्तानपुर से प्रकाशित अमर भारत टाइम्स के संपादक रहे। इनके मृत्यु से साहित्य जगत के साथ साथ पत्रकारिता जगत को भी अपूरणीय क्षति हुई है। शत्रुघ्न पांडेय ने कहा कि लोचनजी कुंडलिया सम्राट थे। इन्होंने कई लोगों को साहित्य में आगे बढ़ाने का काम किया। शिवजी पांडेय रसराज ने कहा कि लोचन जी महामानव थे। निर्भीक थे और साहित्य सीढ़ियों की बहुत आदर करते थे। वरिष्ठ साहित्यकार भोला प्रसाद आग्नेय ने कहा कि लोचनजी अपनी कुंडली हो के माध्यम से समाज को जगाने का काम करते रहे। लोचनजी का पार्थिव शरीर बलिया के गंगा तट पर पंचतत्व में विलीन हो गया। उनके इकलौते पुत्र दुष्यंत सिंह ने मुखाग्नि दी। जिसमें अपने सगे संबंधियों के साथ-साथ उनके कनिष्ठ पुत्र डॉ. अमित कुमार जो सेना में उच्च अधिकारी हैं। वह भी उपस्थित रहे। शोक सभा में डॉ राजेंद्र भारती, डॉ जनार्दन राय, डॉ जनार्दन चतुर्वेदी, हीरा लाल हीरा, कन्हैया पांडेय, विजय मिश्र, फतेह चंद बेचैन, नवचन्द तिवारी, मोहन जी श्रीवास्तव, रमेश चंद्र श्रीवास्तव, अनंत प्रसाद राम भरोसे, शशि प्रेम देव, हरेराम आदि उपस्थित रहे। अंत में गतात्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। उनके परिवार सगे संबंधियों के प्रति भगवान से प्रार्थना की गई कि उन्हें आत्मबल प्रदान करें।


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