आज हम एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं जो कि हमारे देश के सैनिकों और पूर्व सैनिकों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. ज्यादातर सैनिक भाइयों को पता होगा कि फौजियों के लिए एक विशेष अदालत (न्यायाधिकरण) जिसे हम सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के नाम से जानते हैं और जिसकी शक्तियां हाईकोर्ट के बराबर होती है, उसकी व्यवस्था की गई है.
आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल एक्ट 2007 लागू होने के बाद से विभिन्न जगहों पर आर्म्ड फोर्सज ट्रिब्यूनल की स्थापना की गई इसका प्रिंसिपल बेंच नई दिल्ली में उपस्थित है, इसके बहुत सारे रीजनल बेन्चेस भी हैं जो कई प्रमुख जगहों पर जैसे की जबलपुर, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, लखनऊ, चंडीगढ़ और कोच्चि आदि जगहों पर भी उपस्थित है. आज हम बात करेंगे कि आखिर इस सैन्य न्यायाधिकरण की स्थापना के पीछे क्या उद्देश्य है, यह किस तरीके से काम करती है और किस तरीके से यह पूर्व सैनिकों और सैनिकों को फायदा पहुंचाती है.
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सशस्त्र बल न्यायाधिकरण है क्या?
एएफटी एक्ट 2007 संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद इस न्यायाधिकरण की स्थापना 2009 में माननीय राष्ट्रपति द्वारा किया गया था. इस न्यायाधिकरण में तीनों सेनाओं आर्मी, एयरफोर्स और नेवी के सैनिकों एवं सैन्य अधिकारियों से संबंधित विषयों का निस्तारण होता है. इसमें तीनों सेनाओं से जुड़े हुए सभी मामले चाहे वह इनरोलमेंट से सम्बंधित हो, अनुशाशन से सम्बंधित हो, प्रमोशन से सम्बंधित हो, या फिर विकलांगता पेंशन से सम्बंधित हो की सुनवाई की जाती है. सम्बंधित विषयों की जानकारी के लिए एक्ट से सहायता ली जा सकती है. सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की स्थापना पूर्व सैनिकों एवं सैनिकों से संबंधित सभी प्रकार के मामलों का शीघ्र निस्तारण करने के लिए किया गया है. सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की स्थापना से पहले सैनिकों से संबंधित सभी प्रकार के मामले सिर्फ हाईकोर्ट में और निचली अदालतों में सुने जाते थे जिस के निस्तारण में काफी समय लगता था इसी को ध्यान में रखते हुए इसकी स्थापना की गई जिसमें की मामलों का निस्तारण बहुत जल्दी 1 साल से डेढ़ साल की अवधि के अंदर कर दिया जाता है. इससे जो पूर्व सैनिक हैं उनको बहुत राहत मिली विशेषकर जो डिसेबिलिटी पेंशन से संबंधित केस थे उनके मामलों में बहुत ही शीघ्र निर्णय हुए. न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ व्यक्ति या सरकार सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है.
2010 में राम अवतार विरुद्ध भारत सरकार के मामले में निर्णय आने के पश्चात जो डिसेबिलिटी (विकलांगता) पेंशन के केस थे जिसमें कि विकलांगता का आकलन 30% से कम था उनको भी पेंशन देने का आदेश पारित किया गया और इसके बाद से तो डिसेबिलिटी पेंशन के केस की बाढ़ सी आ गई और जितने भी पूर्व सैनिक थे जिनको की 30% से कम डिसेबिलिटी मिली हुई थी उन सब की तरफ से मामले दायर हुए और ज्यादातर मामलों में में न्यायाधिकरण ने याचियों के पक्ष में फैसला सुनाया. सैन्य नयायालयों के निर्णयों को भी चुनौती दी गयी और कई मामलों में पूर्व सैनिको को राहत मिली.
सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की स्थापना निश्चित रूप से पूर्व सैनिकों एवं सैनिकों के लिए वरदान साबित हुआ है. इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा पूर्व सैनिकों में जो कि गांव में और देहातों में रहते हैं उन तक पहुंचाने की आवश्यकता है जिससे कि उन्हें न्याय मिल सके, विशेष रूप से जो पूर्व सैनिक विकलांगता पेंशन से महरूम है उन्हें न्याय मिले और उन्हें उनकी पेंशन मिले जिससे कि वह अपने और अपने परिवार की आजीविका अच्छी तरह से चला सके. कई ऐसे पूर्व सैनिक जिन्हें सैन्य न्यायालयों द्वारा दण्डित किया गया ए और उनको लगता है की उन्हें न्याय नहीं मिला या जिनके वेतन और भत्ते में गड़बड़ी की आशंका है वो भी इस न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटा सकते है और न्याय पा सकते है. इस लेख का उद्देश्य यही था कि सभी सैनिकों एवं पूर्व सैनिकों को इस ससस्त्र बल न्यायाधिकरण के विषय में जानकारी मिले और वह अपने मामलों को लेकर के इस न्यायाधिकरण का रुख करें और न्याय पायें.
आपकी टिप्पणियों और विचारों का स्वागत है!
अमित कुमार श्रीवास्तव
पूर्व वायु सैनिक एवं कानूनी विषयों के जानकार
11 जनवरी 2022
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