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नारी शक्ति सम्मेलन : महिला स्वावलंबन के लिए बौद्धिक, प्रेरक प्रदर्शनी

बलिया: महिला समन्वय समिति बलिया विभाग की ओर से रविवार को नागाजी सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय माल्देपुर बलिया में नारी शक्ति सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसके अंतर्गत बलिया विभाग के तीन जिलों बलिया, संघ की दृष्टि से रसड़ा व मऊ की मातृशक्तियाँ सहभाग कीं। सम्मेलन में महिलाओं के स्वावलंबन हेतु प्रेरक प्रदर्शनी, बौद्धिक चर्चा, प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रम, गीत, नाट्य मंचन आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

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भारतीय इतिहास में महिलाओं की भूमिका, भारतीय इतिहास में गृहणी की भूमिका व महिलाओं के स्वावलंबन इन तीन विषयों पर तीन सत्र में वक्ताओं ने अपनी बात रखी।
सर्वप्रथम मुख्य अतिथि बहनें डॉ. अपूर्वा सिंह, पूनम तिवारी, छवि सहगल, मुख्य वक्ता बहनें डॉ. तृप्ति त्रिपाठी, निशा राघव, प्रधान न्यायाधीश श्रद्धा तिवारी द्वारा भारत माता के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।

प्रथम सत्र की वक्ता डॉ. तृप्ति त्रिपाठी ने अपने उदबोधन में कहा कि भारतीय चिंतन में अर्धनारीश्वर की परिकल्पना है। प्राचीन भारत में महिलाओं का सामाजिक स्तर उच्च था और वे उत्कृष्ट जीवन में थीं। वैदिक महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त थी। उन्होंने कहा कि ऋग्वेद में 27 महिला ऋषियों ने ऋचाएं दी हैं। इंद्राणी, अपाला, सूर्या, घोषा, सावित्री, उर्वशी, दक्षिणा, यमी, विश्ववारा जैसी ऋषिकाएँ हुईं हैं।

दूसरे सत्र की चर्चा में मुख्य वक्ता प्रोफेसर निशा राघव ने समाज में गृहणियों की भूमिका के बारे में बताते हुए कहा कि गृहिणियों ने घर का नियंत्रण और देखभाल करते हुए, घरेलू संचालन के प्रबंधक के रूप में काम किया है। गृहणी के रूप में एक नारी विभिन्न दायित्यों का निर्वहन करती है। बहु के रूप में, पत्नी के रूप में माँ के रूप में वो अपने दायित्वों का दृढ़तापूर्वक निर्वहन करतीं है तथा सभी के आवश्यकताओं का ख्याल रखतीं हैं।

तीसरे सत्र में मुख्य वक्ता प्रधान न्यायाधीश श्रद्धा तिवारी ने महिलाओं के स्वावलंबन विषय पर बोलते हुए कहा कि स्वावलंबन नारी सशक्तीकरण की पहली सीढ़ी है। स्वावलंबी होने से महिलाओं का स्वाभिमान और आत्मसम्मान बढ़ता है। साथ ही वह प्रतिकूल परिस्थितियों को नकारने की क्षमता भी हासिल कर लेती हैं। उन्होंने आगे कहा कि महिला स्वावलंबन का अर्थ केवल आर्थिक आत्म निर्भरता नही। बल्कि, जीवन के सभी क्षेत्रों में स्वतंत्रता से है। एक महिला गृहणी होते हुए भी स्वावलंबी होती है। स्वावलंबन का अर्थ मात्र नौकरी, व्यवसाय अथवा किसी प्रोफेशन के माध्यम से धन अर्जित करना नही। एक गृहणी का भी परिवार और समाज की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान होता है। इस योगदान का आर्थिक मूल्य भी बहुत अधिक होता है। परंतु सामान्यतः इसके आर्थिक पक्ष को स्वीकृत और महत्व प्रदान नही किया जाता। महिलाओं के स्वावलंबन में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है।

शिक्षा ही महिलाओं में स्वतंत्र चिन्तन की योग्यता विकसित करती है।
तीनों सत्रों की अलग अलग अध्यक्षता ब्रह्म कुमारी की जागृति दीदी, प्रेमलता राय अनिता सिन्हा ने किया। विषय की प्रस्तावना बालिका विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती उमा सिंह तथा संचालन निधि पाण्डेय ने किया।

अंत मे बलिया विभाग की विभाग संयोजिका श्रीमती शैलजा ने सबका आभार व्यक्त किया।

इस अवसर पर विभाग संयोजिका शैलजा, सह विभाग संयोजिका अनामिका, बलिया जिला संयोजिका नीरू माथुर, बलिया की वरिष्ठ महिला चिकित्सक डॉ. आशु सिंह तथा बलिया विभाग अंतर्गत बलिया, रसड़ा और मऊ जिले से विभिन्न वर्गों जिनमें प्रबुद्ध, कामकाजी, गृहिणी, ग्रामीण, उद्यमी, चिकित्सा, प्राध्यापक,अधिवक्ता शामिल हुईं। अन्य मातृशक्तियाँ उपस्थित थीं। यह जानकारी महिला समन्वय समिति की प्रचार प्रमुख सपना पाठक द्वारा दी गयी।


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