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अब देश में लोकतंत्र पर भारी पड़ रहा कर्मचारी व नेताओं का लूट तंत्र

संपादक प्रदीप मयंक की कलम से

शासन की मंसा के विपरीत कार्य कर रहे योगी सरकार के आला अफसर

Block Your Lost / Stolen Mobile Phone Visit CEIR
Report Suspected Fraud Communication Visit CHAKSHU
Know Your Mobile Connections Visit TAFCOP

लोकतंत्र की स्थापना यह सोचकर की गयी थी कि संविधान कि मंसा के अनुरूप देश चलेगा. हमारे देश के हर नागरिक को समान अधिकार होगा. लेकिन यहां तो अफसरों को लूट करने कि आजादी दे दी गयी है. कितना भी बोली लगाओ बस सरकार कि छबि ख़राब न हों. अब तो ऐसे अफसरों ने लूट- खसोट का अपने निजी विकास जरिया बना लिया है. अगर यही चलता रहा तो भ्रष्टाचार चरम पर होगा. एक तरफ योगी सरकार भ्रष्टाचार पर नकेल कि बात करती है. लेकिन जिले में तैनात अफसरों की टीम घूस को ही लाइसेंस देने पैमाना मानकर आम लोगों को मुश्किलों में डाल रखा है.

वर्तमान समय में हम आजादी 75 साल बाद जहां पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. वहीं हमारे देश का आम नागरिक आर्थिक शोषण का शिकार हो रहा है. सरकार ने अधिकांश सुविधाएं ऑनलइन कार दिया है. लेकिन उस ऑनलाइन व्यवस्था पर चलने वाले अफसरों की जमात हर जगह लाइसेंस देने के नाम पर मोटी रकम कमाने के लिए गिद्ध दृष्टि लगाए बैठा है. मौका मिला नहीं कि बड़ा शिकार हजम हो गया. सरकार ने लाइसेंस देने के लिए अफसरों कि तैनाती तो कर रखा है लेकिन उनकी जनता से रेटिंग कराने कि व्यवस्था नहीं किया है. ऐसे में मनमानापन करने से ये अफसर बाज़ नहीं आते है.

यूपी में तो इन दिनों रामराज चल रहा है वह भी अफसरों के लिए. चाहे वह केंद्र का अफसर हो या राज्य का. जितना कमाना हो कमा लो. यही सरकार के अफसरों का स्लोगन बन गया है. कोई कार्य बिना सुविधा शुल्क के नहीं होने वाला है. व्यवस्था से पीड़ित लोगों की माने तो चाहे शिक्षा विभाग हो या स्वाथ्य विभाग हर तरह लाइसेंस बाँटने वाला अफसर खूब पैसा कमाने की होड़ में लगा है. अभी कुछ दिनों पहले सीएमओ कार्यालय दफ्तर में जमे अफसरों व बाबूओ की टीम ने जिले के निजी अस्पतालों के पंजीकरण व नवीनीकरण के लिए आयी फाइलों का रोके रखा. जिसके लिए नर्सिंग होम संचालकों की संस्था के सदस्यों का कोपभाजन का शिकार बनना पड़ा. बाद में सीएमओं ने सभी फाइल्स को एक साथ अप्रूव कर मौके की नजाकत समझते हुए किनारा कस लिया. जिले के फ़ूड, ड्रग व अग्निशमन विभाग में भी कामोंवेश यही व्यवस्था है. पहले ऑनलाइन करके विभाग में जाकर आला अफसरों की परिक्रमा करने के बाद मोटा रकम का चढ़ावा दीजिये. तब जाकर इन लोकतंत्र के अफसरों से कृपा रूपी लाइसेंस मिलने की आशा होगी. इस व्यवस्था से हर कोई परेशान है. लेकिन आवाज उठाने की हिम्मत कोई नहीं कर पता है.


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