कोरोना कोरोना कोरोना! गजब का है यह डरावना शब्द…
कोरोना अभी जिंदा है और घात की दांव लगाए बैठा है। पिछले एक माह से उसके कई रूपों में अवतार की चर्चा के बीच हम बेफिक्र रहे। कोरोना के ओमीक्रेन रूपी भयावह अवतार की इंट्री के साथ ताजा खबर है कि इसके तीसरी लहर की जोरदार आमद हो गई है। देश में मरीजों की संख्या में इजाफा के साथ मौतें भी बढ़ रही है। ताजा आंकड़े के अनुसार देश में एक लाख सत्तर हजार नए केस प्रकट हुए हैं। हर रोज इसमें वृद्धि ही होनी है। इसी के साथ एक दिन 300 से ऊपर मौत की भी खबर है। यूपी में भी 3014 ने केस अवतरित हुए और एक की मौत भी हुई। केंद्र सरकार के आंकड़े पर यकीन करें तो कोरोना काल से अब तक 4,83178 मौतें इस बीमारी से हुई है।
इधर, कोरोना के बढ़ते रफ्तार को देख यह बहस भी छिड़ गई है कि क्या राजनीतिक दलों की लाखों हजारों की भीड़ भरी रैलियां होने देनी चाहिए? सत्ता पक्ष और विपक्ष की रैलियों में भीड़ और खुद उनकी ही अपील “दो गज की दूरी मास्क है जरूरी” की धज्जियां उड़ती हुई दिख रही है। ऐसे में कोरोना यदि फिर जानलेवा हुआ तो हम किसे जिम्मेदार ठहराएंगे? खुद को या सरकार को? अब तो मौलाना “साद” भी नहीं है सामने!
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ध्यान रहे,कोरोना के तीसरी लहर से मुकाबले के लिए सरकार के जो दावे हैं न सब हवा हवाई ही हैं। भगवान न करे ऐसा हो, लेकिन यदि हुआ तो फिर घरों से ज्यादा अस्पतालों में ही लोग मरेंगे। सरकार का क्या,फिर कह देगी अस्पतालों की बदइंतजामी और आक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई। सरकार के इस झूठ को हमें सच मानना ही होगा।
याद करिए, गत वर्ष पीजीआई लखनऊ में योगी मंत्रिमंडलके कैबिनेट मंत्री, सलामी बल्लेबाज चेतन चौहान की मौत कोरोना से हुई थी। पीजीआई के कोविड वार्ड में भर्ती चेतन चौहान का इलाज किस गंभीरता से हुआ था, सपा एमएलसी सुनील सिंह साजन ने विधान परिषद में बड़े ही तर्कसंगत ढंग से धरती के भगवान और चेतन चौहान के मध्य चिकित्सकीय व्यवहार का वर्णन किया था।
उनकी बात सरकार के तरफ से हवा में उड़ा दी गई थी और उनके इस खुलासे को सपा द्वारा सरकार को बदनाम करने जैसा प्रायोजित षडयंत्र बताया गया था। सामने स्व.चेतन चौहान की पत्नी को खड़ा कर दिया गया जिन्होंने पीजीआई की व्यवस्था पर हर्ष व्यक्त किया था। पति की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में स्व.चौहान की पत्नी विधायक चुनकर विधानसभा में आ गईं।
सुनील सिंह साजन के आरोपों पर होना यह चाहिए था कि सरकार उनके कथ्य पर यकीन करते हुए ऐसी खामियों और शिकायतों पर ध्यान देती तो कोरोना के दूसरी जानलेवा लहर को लेकर हम कुछ हद तक सतर्क रह पाए होते। लेकिन नहीं। सरकार ने ऐसा इसलिए नहीं करना चाहा क्योंकि उसे पक्का यकीन था कि यहां तो राम राज है, यहां तो कुछ हो ही नहीं सकता।दूसरी लहर में अस्पताल से लेकर श्मशानघाट तक जो मंजर देखे गए उससे सरकार के दावे और व्यवस्था का भंडाफोड़ ही हुआ था।
कोरोना की पहली लहर में भी मरीज अस्पताल में दाखिले और इलाज को लेकर तड़प रहे थे और मर रहे थे।हां पिछली बार हम कोरोना की जानलेवा भयावहता को लेकर बहुत सचेत नहीं थे और न ही मुकम्मल जानकारी थी सो सरकार ने लाकडाउन या अन्य जो भी उपाय किए थे उसकी आलोचना आज की जरूरत नहीं है। आजकी जरूरत यह है कि बीच में जब कोरोना थोड़ा कमजोर हुआ था तब हम इससे बचने के लिए क्या किए? और अब जब तीसरी लहर ने दस्तक दे दी है तब हम क्या कर रहे हैं? दुनिया देख रही है कि भारत की यह पहली सरकार है जिसकी प्राथमिकता चुनाव और सत्ता है। लोग जब कोरोना से मर रहे थे, अस्पताल नहीं थे,दवाएं नहीं यहां तक की श्मशानघाट में अंत समय में भी जगह नहीं थे तब देश के प्रधानमंत्री प.बंगाल में बीस बीस रैली कर लाखों की भीड़ को संबोधित कर रहे थे। आज तेजी से बढ़ रहे कोरोना के तीसरे फेज में भी सबकुछ वैसे ही चल रहा है क्योंकि पांच प्रदेशों में चुनाव होने है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से दनादन रैलियां हो रही हैं। नेता से लेकर जनता तक संक्रमित भी हो रहे हैं। फिर भी सुरक्षा के कोई उपाय नहीं क्योंकि चुनाव और सत्ता ही इनकी प्राथमिकता है।
कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता का आलम यह था कि भाजपा सांसद जनरल बीके सिंह को कोरोना पीड़ित अपने भाई के लिए गाजियाबाद के किसी अस्पताल में बेड के लिए बजरिए ट्विटर गुहार लगानी पड़ी थी। यूपी में आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष की वक्त से डाक्टर व दवा न मिलने से मौत हो गई। बहुत सारे नामचीन लोग बिछड़ गए तो न जाने कितने अनजान लोग दुनिया से असमय विदा हो गए। बहुतों ने अपनों को खोया वहीं तमाम लोगों ने अपने जान पहचान वालों को खोया।
इसी समय धरती के भगवान की असलियत भी देखी गई। कहीं और नहीं! स्वास्थ्य मंत्री के जिला सिद्धार्थनगर नगर में जिला अस्पताल के गेट पर कोरोना पीडित एक मरीज ने दम तोड़ दिया लेकिन उस रास्ते आने जाने वाले डाक्टरों ने उसके तरफ झांका तक नहीं। इसी जिले के कोविड अस्पताल में एक ही दिन में चार चार मरीजों की मौत चिकित्सीय लापरवाही से हुई।
कोरोना मरीजों को आनलाईन चिक्तसकीय सुविधा मिलती रहे इसके लिए तमाम हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए थे। इसकी हकीकत यह है की यूपी के बीजेपी सांसद (अब मंत्री) कौशल किशोर तक को कहना पड़ा था कि हेल्पलाइन का नंबर नहीं उठता। यूपी के मुख्यमंत्री योगी के शहर गोरखपुर में वरिष्ठ भाजपा नेता और पहलवान राकेश सिंह ने तो सरकार से मांग की थी कि कोविड अस्पतालों को सीसीटीवी से लैश किया जाय ताकि कोविड मरीज के परिजनों को पता चल सके कि उसके मरीज का इलाज ठीक से चल रहा है या नहीं। हेल्प लाइन का फोन कभी कभी उठता भी है और जब उठता है तो कोई मोहतरमा पीड़ित को गंवार बताते हुए मर जाने की श्राप देती हैं।आखिर यह कैसे भूला जा सकता है कि व्हीलचेयर पर बैठे एक वयोवृद्ध पत्रकार ने अपनी बेटी को अस्पताल में बेड दिलाने की भागदौड़ में दम तोड़ दिया। कोरोना से पीड़ित लखनऊ के पत्रकार विनय श्रीवास्तव को एंबुलेंस नहीं मिला और वे मर गए। मरने से पहले उन्होंने अपनी हालत बताते हुए सरकार तक से ट्वीट कर गुहार लगाई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। स्वास्थ्य हमारा संवैधानिक अधिकार है और जब सरकार इसे उपलब्ध कराने में फेल होती है, लचर स्वास्थ्य सुविधा के कारण मौत होती है तो यह मेडिकल मर्डर की श्रेणी में आता है। अत: हे सरकार! विनती है, कुछ करिए ताकि नदियों के तट पर जल रही चिंताओं से आसमान फिर लाल न हो।
सुझाव व विचार आमंत्रित
यशोदा श्रीवास्तव
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
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