शाम के वक्त चांद का दीदार होने के साथ खोला व्रत
बलिया। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए की जाने वाली करवा चौथ का यह व्रत इस बार 24 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्रोदय के बाद चंद्र दर्शन करके व्रत खोलती हैं। इस व्रत में शाम के समय विधि विधान से पूजा की जाती है। जिसके बाद व्रत कथा सुनना बेहद अनिवार्य माना जाता है। मान्यता है इस कथा को पढ़ने से अखंड सौभाग्यवती के वर की प्राप्ति होती है। आज के दिन महिलाओं पूरे दिन व्रत रखकर चांद का दीदार किया। इस पर्व के चलते बाजार में काफी चहल पहल बनी रही।
लोगों में मान्यता है कि बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन थी जो सभी की लाडली थी। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी जहां उसने अपनी भाभियों के साथ करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वह भूख से व्याकुल हो उठी। सभी भाई खाना खाने बैठे और उन्होंने अपनी बहन से खाने का आग्रह किया लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जला व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्र दर्शन कर और उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
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सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की ये हालत देखी नहीं गयी और उसने दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया। दूर से देखने पर वह चांद जैसा प्रतीत हो रहा था। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि देखो चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देकर भोजन कर सकती हो। बहन ने खुशी से चांद को देखा और उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ गई।
वह जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालते ही उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही वह तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने को होती है तो उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे भाई द्वारा की गई हरकत की सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद वो निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रही। उसकी देखभाल करती रही। उसके ऊपर उगने वाली घास को वह एकत्रित करती जाती है। ऐसे में इस व्रत से उसे अखंड सौभाग्यशाली होने का वर मिला।
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