तीन सरकारों में चक्कर काटने के बाद एसटीपी अब चौथी सरकार से जोह रहा बाट
बलिया: प्रदेश की तीन सरकारों में चक्कर काटने के बाद सीवरेज प्रोजेक्ट अब चौथी सरकार का अंतिम समय गिन रहा है। आलम यह है कि इस प्रोजेक्ट को मूर्त रूप देने के लिये गुजरात से आयी कंपनी ने एक अरब में से 94 करोड़ खर्च करने के बाद अपना बोरिया विस्तर समेट कर चलती बनी। इस परियोजना को करने के लिए आये करोड़ों रुपये डकारने के बाद नमामि गंगे की चंगुल में फंस गया है। ऐसे में नगर को स्वर्ग बनाने वाला यह सीवरेज प्रोजेक्ट विकास के नाम पर एक बदनुमा दाग की तरह से हो गया है। भले ही इस सरकार के जनप्रतिनिधि अपने आप को इससे अलग कर लें। लेकिन वर्तमान सरकार के कार्यकाल में भी गुजरात की ठेका कंपनी करीब एक अरब डकारने के बाद अपना बोरिया विस्तर बांध लिया है। ऐसे में यह प्रोजेक्ट पूरी तरह से अधर में लटक गया है।
अब और 45 करोड़ रुपये का डिमांड भेजा गया है। जिसे अब नमामि गंगे से पूरा करने के वाराणसी भेज दिया गया है। नमामि गंगे से भी इस प्रोजेक्ट का भला होता नहीं दिख रहा है। ऐसे करोड़ों रुपये खर्च करके नगर को स्वर्ग बनाने का सपना अब और कितना समय पूरा होने में लेगा। यह तो समय के गर्भ में है। लेकिन ऐसा नहीं लग रहा है कि इस प्रोजेक्ट को वर्तमान सरकार के कार्यकाल में पूरा कराया जा सकेगा। विभगीय सूत्रों की माने तो नमामि गंगे में भी यह प्रोजेक्ट अंतिम सांस ही ले रहा है।
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पूर्व मंत्री नारद राय के प्रयास से नगर में सीवेज का कार्य 2005-06 में शुरू कराया गया था। लेकिन प्रदेश में बसपा की सरकार आई तो काम ठप पड़ गया। 2016 सपा सरकार ने फिर से सीवेज लाइन का काम चालू कराया है। पूरे कार्य पर करीब 200 करोड़ रुपये खर्च होने थे जिसमें अब तक करीब 80 फीसदी कार्य हो चुका है। शेष बचे काम जिसमें ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण, वहां तक पाइप लाइन डालने, पावर कनेक्शन, मशीनरी आदि अन्य कार्यों पर करीब करीब 30 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
सीवरेज प्रोजेक्ट में 45 करोड़ और बहाने की तैयारी
बलिया नगर को गंदगी के नारकीय स्थिति से निजात दिलाने के नाम पर 94 करोड़ के सीवरेज घोटाले में अब 45 करोड़ और बहाने की तैयारी कर ली गई है। नेशनल मिशन आफ क्लीन गंगा को 139 करोड़ रुपये का रिवाइज स्टीमेट भेजा गया है। कहने का आशय है कि 94 करोड़ रुपये प्रोजेक्ट के नाम पर पहले ही खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन अब 39 करोड़ और स्वीकृति के लिए फाइल दौड़ा दी गई है।
यहां पर यह बता दें कि कार्यदायी एजेंसी पास पहले से ही छह करोड़ उत्तर प्रदेश जल निगम के बचे हुए हैं इसलिए कुल 145 करोड़ रुपये और खर्च करने की योजना बना ली गई है। 20 एमएलडी क्षमता की एसटीपी को तोड़कर छोड़हर में नए सिरे से एसटीपी बनाने की कवायद हो रही है। राज्यस्तरीय कमेटी ने स्टीमेट को मंजूरी दे दी है, अब गेंद नेशनल मिशन आफ क्लीन गंगा के पाले में डाली जा चुकी है। उधर, प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए जल निगम पुरानी कंपनी की शरण में है। कंपनी के अधिकारियों से बातचीत चल रही है। हालांकि नई कंपनी की भी तलाश की जा रही है। सवाल उठ रहा कि पुरानी परियोजना के तहत जो 30 किलोमीटर लाइनें कागज पर बिछाई गई हैं, वह अब टूट चुकी हैं। जो लाइन ठीक भी है, उसमें जनता अपना सीवर बहा रही है। ऐसे में लाइनें जाम हो चुकी हैं। उसे ठीक कराने के लिए सिल्ट निकालना पड़ेगा।
राज्यस्तरीय कमेटी ने पूछे पांच सवाल, भेजा जवाब
यूं कहें कि यह धनराशि जनता के किसी काम में नहीं आएगी तो शायद गलत नहीं होगा। यही वजह है कि राज्यस्तरीय कमेटी ने जल निगम से पांच गंभीर सवाल पूछ लिए हैं। यह भी पूछा कि पुरानी कंपनी पर क्या कार्रवाई की गई है। सवालों के जवाब भेजे जा रहे हैं। कुल मिलाकर मामला फंसता हुआ दिख रहा है।
घोटाले में आठ लोगों को अभयदान की तैयारी
करीब 94 करोड़ के सीवरेज घोटाले में यूपी जल निगम के छह इंजीनियर समेत आठ लोगों को अभयदान देने की तैयारी चल रही है। शासन ने उनके खिलाफ नए तरीके से आरोप पत्र बनाने के आदेश दिए हैं। अभी तक चार्जशीट शासन को भेजी नहीं गई है। एक दशक पुराने इस मामले में कई जिम्मेदार रिटायर्ड हो चुके हैं, या फिर वह दूसरे जिलों में पदोन्नत किए जा चुके हैं।
रिवाइज स्टीमेट भेजा गया है। निर्माणाधीन स्टीमेट को नए सिरे से बनाने की कवायद चल रही है। कमेटी द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब दे दिया गया है। स्थिति बेहतर करने की कोशिश है। अब नमामि गंगे से ही अधूरे कार्य को पूरा कराया जाएगा।
अंकुर श्रीवास्तव, अधिशासी अभियंता, बलिया, उत्तर प्रदेश जल निगम
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जब तक जबाबदेही तय नही होगी और जनता इन कार्यो का हिसाब नही मांगेगी तब तक हालात नही बदलने वाले। कोई भी सरकार हो जनता को जागरूक होना पड़ेगा।