JNCU CAMPUS: शिक्षा के क्षेत्र अब तक बलिया की होती रही उपेक्षा
बलिया। आजादी के समय उत्तर प्रदेश में तीन तरह के विश्वविद्यालय थे। केंद्र द्वारा संचालित, राज्य द्वारा संचालित, और स्वशासी। यह विश्वविद्यालय परिसर शिक्षण संस्थान रहे। आगरा विश्वविद्यालय राज्य विश्वविद्यालय था जो प्रदेश के कॉलेजों को संबद्धता प्रदान करता था। नेहरू सरकार ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्थापित किया। जनपद बलिया में एक कालेज था जो आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध रहा है। उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग के चलते संबद्धता के साथ विश्वविद्यालयो की स्थापना हुई, पूर्वांचल में गोरखपुर विश्वविद्यालय 1958 में स्थापित हुआ। जिसका पाठ्यक्रम इलाहाबाद विश्वविद्यालय के समरूप रहा। कॉलेजों की संख्या और छात्रों की बढ़ती संख्या के चलते पूर्वांचल में एक और विश्वविद्यालय की मांग 1965 से ही उठने लगी जिसका प्रभाव यह हुआ कि कालेजों में भी परास्नातक स्तर तक की शिक्षा 1970 से आरंभ हो गई। 1980 तक आते-आते गोरखपुर विश्वविद्यालय की प्रशासनिक क्षमता नियंत्रण से बाहर दिखने लगे जिसका परिणाम यह हुआ कि एक और संबद्धता वाला विश्वविद्यालय की इस क्षेत्र में स्थापित होने की मांग प्रबल होने लगी। बलिया में विश्वविद्यालय की मांग जोरदार ढंग से उठाए गए और गड़वार में 80 एकड़ भूमि का आश्वासन भी प्राप्त हो गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी 23 मई 1984 को गड़वार में विश्वविद्यालय की घोषणा का संकल्प लेकर आई। उन दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र थे जिन्होंने इस संकल्प को समर्थन नहीं दिया। जिसके चलते प्रधानमंत्री को एक उच्च शिक्षण संस्थान की घोषणा से ही संतोष करना पड़ा। वह संस्थान भी आज तक प्रस्तावित नही हो सका और मुख्यमंत्री विश्वविद्यालय को जौनपुर लेकर चले गया और पूर्वांचल विश्वविद्यालय की स्थापना हो गई। बागी कहे जाने वाले बलिया में विश्वविद्यालय को लेकर इस दूसरी उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा, क्योंकि गोरखपुर वाला विश्वविद्यालय भी बलिया के लिए मुरली मनोहर ने नेहरु जी से स्वीकृत कराया था। पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर पर भी कालेजों (सवित्त और वित्तविहीन) का भार उसकी भी प्रशासनिक क्षमता से अधिक होने लगा जिसको ध्यान में रखकर काशी विद्यापीठ के लिए राज्य सरकार ने कानून बनाकर उसे संबद्धता वाला विश्वविद्यालय घोषित किया। सन 2009 में बलिया जनपद के सभी कालेज श्रीकाशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय वाराणसी से संबद्ध हो गए किंतु सभी प्रकार की परास्नातकीय अध्ययन का लाभ ये विश्वविद्यालय नहीं दिला पाया। अखिलेश सरकार के कार्यकाल के पूरा होने के पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बलिया में जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय और स्पोर्ट कॉलेज की स्वयं आकर के नींव रखी। देखते-देखते 10 करोड़ रुपये की प्रतीकात्मक आवंटन के साथ प्रोफेसर योगेंद्र सिंह को प्रथम संस्थापक कुलपति तीन वर्षों के लिए नियुक्त किया उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती विश्वविद्यालय के लिए आवश्यक भूमि अधिग्रहण की थी। किंतु इसे उन्होंने पूरा करने में लगभग सफलता प्राप्त कर ली, उन्हें बलिया के राज्यमंत्री उपेंद्र तिवारी का सहयोग भी प्राप्त हुआ। कुछ महीनों के बाद उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार पदासीन हो गई। प्रोफेसर योगेंद्र सिंह सरकार का विश्वविद्यालय के अनुरूप सहयोग प्राप्त नहीं हुआ और उनके द्वारा प्रस्तावित योजनाओं की स्वीकृति भी नहीं मिली। यह विश्वविद्यालय भी उपेक्षा से बच नहीं सका। करोना काल में लगभग दो वर्ष पूर्व प्रोफेसर कल्पलता पाण्डेय ने कुलपति का पदभार संभाला। योगेंद्र सिंह के कार्यकाल में विश्वविद्यालय वर्षा के चलते पाँच माह तक डूबा रहा और प्रशासनिक कार्य भोजपुरी सांस्कृतिक केंद्र एवं अन्यत्र किराए के मकान से चलाया गया। एक दीक्षांत समारोह भी 2019 के दिसम्बर माह में हुआ। दस करोड़ में से पाँच करोड़ शासन को वापस भी हो गया। प्रो०पाण्डेय ने अपने दो वर्ष के कार्यकाल में पाँच महिनो तक नौका विहार करते हुए प्रशासनिक व्यवस्था, 14 शंकुलो की व्यवस्था, परास्नातक में कई विषयों का अध्यापन, पांच विषयों में डिप्लोमा सहित पिछले वर्ष दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय परिसर की जगह कलेक्ट्रेट स्थित बहुद्देशीय सभागार में कराया गया। इस बार कलेक्ट्रेट स्थित बहुद्देशीय सभागार 24 जनवरी को आयोजित किया गया है। 33 मेधावी में से 25 छात्राएं स्वर्ण पदक पायेगी।
यह गंभीर चिंता का विषय है कि कुलपति प्रो० पाण्डेय ने 262 करोड़ रुपए का प्रस्ताव विश्वविद्यालय हेतु शासन को भेजी। जिसमें केवल 92 करोड़ रुपये की योजनायें स्वीकृत हुई और उसमे भी केवल छात्रावास हेतु 15 करोड़ रुपये ही आवंटित किया गया। अभी तक यह विश्वविधालय किसी सूचना प्रौद्योगिकी, मेडिकल कॉलेज व चिकित्सालय एवं इंजीनियरिंग कॉलेज का सपना देख रहा है। यह दुर्भाग्य की बात है कि हर जनपद में मेडिकल कॉलेज वाली सरकारी योजनाओ की सूची से बलिया गायब है। एम्स के लिए पिछली सरकार बलिया में सर्वे करा रही थी, जो योगी सरकार के पदासीन होते ही गोरखपुर चली गयी। शिक्षा प्रसार के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के सभी विश्वविद्यालय प्राइवेट परीक्षा की सुविधा प्रदान कर रहे हैं। किंतु जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय द्वारा यह सुविधा प्रदान न किया जाना उच्च शिक्षा प्रसार के लिए चुनौती बन गया है। विश्वविद्यालय का अपना अध्यापन कक्ष, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, स्टेडियम जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रखना कहां तक न्याय संगत माना जा सकता है और शिक्षा के क्षेत्रों में तो बलिया की उपेक्षा होती ही रही है। विश्वविद्यालय स्थापित होने पर भी और प्रख्यात शिक्षाविद एवं ईमानदार छवि वाली कुलपति के रहते बलिया में शिक्षा की उपेक्षा का होना कहाँ तक उचित माना जा सकता है।
शासन और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को यह गंभीरता से देखना चाहिए कि जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय से संबद्ध ऐसे महाविद्यालयो की प्रबंध समितियों के किन नियमों को चुनौती देकर कार्य कर रही हैं। जिन्हें विश्वविद्यालय ने मान्यता देने से इंकार कर दिया है। इस विश्वविद्यालय को उपेक्षा के दो कारण बताये जाते हैं एक यह कि विश्वविद्यालय जननायक चंद्रशेखर के नाम पर अखिलेश सरकार द्वारा स्थापित हुआ हैं। जिसकी आवश्यकताओं की पूर्ति भाजपा सरकार क्यों करें, दूसरा कारण यह बताया जाता है कि कुलपति योगेंद्र सिंह भी मूलतः समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे हैं, और प्रोफेसर कल्पलता पाण्डेय ईमानदार छवि वाली कुलपति है। अभी तक इस विश्वविद्यालय का सिनेट भी नहीं बन पाया। विश्वविद्यालय के पास इस जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी, प्रतिभाशाली, गौरवपूर्ण व्यक्तित्व, मनीषियों, साहित्यकारों, पत्रकारों, संस्कृति व कला के प्रति समर्पित व्यक्तियों की अभी तक पाँच वर्षों में सूची भी नहीं बन पाई तथा विश्वविद्यालय अभी तक प्राध्यापको की नियमित नियुक्ति नहीं कर पाया, सभी संविदा पर चल रहे हैं। सुनने में आता है कि कुछ पुस्तकों और पत्रिकाओं का प्रकाशन कराया है किंतु वे सभी पाठ्यकीयता से वंचित रखे गये हैं। आवश्यकता इस बात की है कि विश्वविद्यालय प्रशासन निःसंकोच विश्वविद्यालय की समस्याएं, जनभावनाएं और सम्भावनाएं शासन के समक्ष रखें और इसके लिए जनमत को अपने पक्ष में होने का माहौल पैदा करें अन्यथा विश्वविद्यालय का भवन वर्षा से तो डूब नहीं पायेगा किंतु डूबने के अन्य कारण यदि मौजूद रहेगे तो उसे कौन बचायेगा ?
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शिवजी पाण्डेय ‘रसराज’
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बहुत शानदार विश्लेषण।