गतांक से आगे…
80 के दशक में देश की राजनीति में पृथकतावादी तत्व जड़ जमाने लगा। पूर्वी पाकिस्तान के बंगला देश में परिवर्तित हो जाने से भारत का स्थाई विरोधी पाकिस्तान का रुष्ट होना स्वभाविक था। अमेरिका को भारत की राजनीति में पाकिस्तान के रास्ते प्रवेश करने का अवसर मिल गया। सोवियत संघ ने भारत से मैत्री संधि की। इन घटनाओं के बीच भारत में अमेरिकी सह पर लोकतांत्रिक परिवर्तन के लिए मुद्दे तलाश किये गये, जिनका परिणाम देश में आपात काल लगाना माना गया। बलिया के साहित्यकारों में अनुशासन आया किन्तु उत्तरदायित्व पूर्ण अपने कर्तव्यों के निर्वहन में उनका तेवर कमजोर नहीं देखा गया। बलिया के साहित्यकार जानते रहे हैं कि जन आन्दोलनों को सत्ता के लिए दबाना और सत्ता को साहित्यकारों के माध्यम से उनके लिए जन आन्दोलनों के विरुद्ध तैयार करना, साहित्यकार धर्म से च्यूत होना है। बलिया के सहित्यकारों में मंगला प्रसाद मंगल, शिवशंकर चतुर्वेदी ‘गुमनाम’, लल्लन सिंह ‘ललित’, अशोक द्विवेदी, राजेश्वर प्रसाद गुप्त ‘राज गुप्त’, श्रीराम सिंह ‘उदय’, कलिमुल्लाह ‘कलीम’, श्रीमती मालती ‘माला’, सत्यदेव सिंह ‘सत्य’. लालजी सहाय ‘लोचन’, भगवती प्रसाद ‘द्विवेदी’, अखिलेश कुमार श्रीवास्तव ‘चमन, जनार्दन राय, आद्या प्रसाद द्विवेदी, चन्द्रमणि पाठक, रघुवंशमणि पाठक, श्रीमती शैलेश श्रीवास्तव, सुरेन्द्र नाथ मिश्र ‘सुमन’, सुरेन्द्र नाथ लाल ‘नीरव’, सत्यदेव मिश्र, तहरीर बेग ‘अंजुम’ नशीर ‘बलियावी’, हुनर ‘बलियावी’, परवेज रौशन, मुनीर हसन ‘जैदी, किशोरी शरण शर्मा, जख्मी ‘रेवतवी’, रहबर सिकन्दरपुरी, प्रद्युम्न वर्मा, उमाशंकर सिंह ‘बलियावी’, गणेश कुमार पाठक, तारकेश्वर मिश्र ‘राही’, आफताब आलम, आलम बलियावी, एजाज़ बलियावी, अयूब अयाज़, अशोक कंचन जमालपुरी, मुस्ताक ‘मंजर’,अनिल ओझा ‘नीरद’ शिवदत्त श्रीवास्तव ‘सौमित्र’ आदि ने साहित्य सृजन कर समाज को दिशा दिया।
80 के दशक के बाद शताब्दी के अन्त तक देश में संचार एवं सूचना क्रांति के अतिरिक्त संप्रेषण की तकनिकों में व्यापक परिवर्तन हुए। जिसका प्रभाव बलिया के साहित्यकारों पर भी पड़ा। इस अवधि में जातीय उन्माद बढ़ा, साम्प्रदायिकता को फलने-फूलने के कई अवसर आ गये। देश राजनैतिक समीकरणों पर चलेगा अथवा साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पर, ये विमर्श बलिया के साहित्यकारों को प्रभावित करने लगे। जिनमें भोला प्रसाद ‘आग्नेय, कन्हैया पाण्डेय, अनंत प्रसाद रामभरोसे’, ब्रजभूषण श्रीवास्तव, अशोक सिंह, बलराज पाण्डेय, राजेन्द्र भारती, अवध बिहारी तिवारी ‘लहरी, सुदेश्वर “अनाम’, अर्जुन प्रसाद प्रेमी नायाब कोथवी, चन्द्रशेखर, शिवजी पाण्डेय रसराज, श्री कृष्ण बालापुरी, हीरालाल हीरा, विजय मिश्र, शत्रुघ्न पाण्डेय, नरेन्द्र कुमार तिवारी, अमलदार नीहार, बृजमोहन प्रसाद ‘अनारी’, रमेश चन्द्र श्रीवास्तव, जनार्दन चतुर्वेदी, कश्यप, ब्रह्मेश्वर नाथ शर्मा ‘मृदुल’, हैदर अली खाँ, अहमद ‘बलियावी’, कैश तारविद, दयानन्द मिश्र ‘नन्दन’, नन्द जी नन्दा, इन्द्रदत्त पाण्डेय, मुईन हमदम, जगदीश श्रीवास्तव ‘प्रवासी’ श्रीमती अर्चना श्रीवास्तव, हफीज मस्तान, विनय बिहारी सिंह, विनोद सिंह आदि ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जनजागरण का प्रयास किया।
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21 वीं शताब्दी के दूसरे दशक में लोकतांत्रिक व्यवस्था में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का माहौल बनाये जाने, लोकतंत्र में चयन के अधिकार को काल्पनिक उत्प्रेरणा देने और देश की श्रमपूँजी को निराश्रित करने की योजनाओं के बीच बलिया का साहित्यकार सजग दिखाई देने लगा। साहित्य के विषय बदलने लगे हैं और अधिक वास्तविक आधार लेने लगे हैं। अशोक तिवारी, अजय बिहारी पाठक, जैनेन्द्र कुमार पाण्डेय, आशीष त्रिवेदी, रामजी तिवारी, अजय पाण्डेय, यशवंत सिंह, शिवकुमार सिंह ‘कौशिकेय’, अमरनाथ चतुर्वेदी, विवेकानन्द सिंह, श्रीमती साधना संकल्प, शशि कुमार सिंह ‘शशी प्रेमदेव’, रघुनाथ उपाध्याय ‘शलभ’, बद्री विशाल मिश्र, शंकर शरण ‘काफिर’, उत्कर्ष तिवारी, मनजीत सिंह, स्वेतांक, श्रीमती कादम्बिनी सिंह, मोहन जी श्रीवास्तव, रामविचार पाण्डेय, प्रमोद शंकर पाण्डेय, विश्राम यादव, हरिवंश नारायण सिंह, श्रीमती धनपाली सिंह, सुशील कुमार श्रीवास्तव, श्रीमती अमृता, श्रीमती सुमित्रा पाण्डेय, सुश्री कल्पलता पाण्डेय, रामेश्वर सिंह, शिवकुमार पाण्डेय, लक्की पाण्डेय, असीत मिश्र, अतुल कुमार राय, कुमार विनोद, सागर, अलीअहमद ‘संगम’, रमाशंकर शंकर वर्मा ‘मनहर’, सरस जी, शारदा पाण्डेय, सरोज सिंह, किरण सिंह, गुरुबिन्द सिंह, शाश्वत उपाध्याय, श्रीराम सिंह, महेश चन्द्र गुप्त, गोपाल जी गुप्त ‘चितेरा’, अजय विहारी पाठक, श्रीपति यादव, रमाशंकर तिवारी, फतेहचन्द गुप्त ‘बेचैन’, नवचन्द तिचारी, लालसाहब ‘सत्यार्थी’ आदि साहित्यकार अपनी कृतियों द्वारा साहित्य का भण्डार भरने में लगे हैं।
मैंने प्रयास किया है कि बलिया के साहित्यकारों का दशकीय विवरण अपनी स्मृति के आधार पर प्रस्तुत कर सकूँ। प्रत्येक साहित्यकार अपने स्थान पर एक आलोक स्तम्भ है जिसमें आयु अथवा रचना के आधार पर वरिष्ठ अथवा कनिष्ठ नहीं है। मैं समझता हूँ कि अभी इस दिशा में विस्तृत अध्ययन होना चाहिए ताकि प्रत्येक साहित्यकार की भूमिका अपने काल खण्ड में तथा साहित्यिक परम्परा में स्पष्टतः रेखांकित की जा सके। इस विवरण में उन लोगों को आदर पूर्वक सम्मिलित किया गया है जो बलिया में सेवारत रहे और साहित्य का सृजन किया इसके अतिरिक्त अनेक ऐसे बलियावासी साहित्यकार हैं जिन्होंने अन्य स्थानों पर और विदेशों में भी अपनी सृजन शक्ति का परिचय देकर बलिया को गर्वान्वित किया। प्रशिक्षु साहित्यकारों को अभी इसमें सम्मिलित नहीं किया गया है।
आपकी टिप्पणियों और विचारों का स्वागत है!
अशोक
(वरिष्ट पत्रकार व अधिवक्ता)
16 जनवरी 2022
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