…तो इस बार आसान नहीं होगी गोरखपुर में सीएम योगी चुनावी प्रतिस्पर्धा!
गोरखपुर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर कयासबाजी का दौर खूब चला। अयोध्या,मथुरा और जाने कहां कहां से उनके चुनाव लड़ने की चर्चाएं होती रही और अब जब गोरखपुर विधानसभा सीट से उनकी उम्मीदवारी तय हो चुकी है तब भी तरह तरह की चर्चाएं जारी है।
इस बीच इस सीट से योगी के चुनाव जीतने में फिलहाल कोई संशय नहीं है, लेकिन एकतरफा है, ऐसा भी नहीं। योगी मुख्यमंत्री हैं या गोरक्षपीठ के महंत हैं इस नाते उनके जीतने में कोई बाधा नहीं है, यह कहना मुश्किल है , क्योंकि 1971 में इसी गोरखपुर जिले के मानीराम विधानसभा सीट से यूपी के एक मुख्यमंत्री टीएन सिंह को चुनाव हार जाना पड़ा था वह भी तब जब गोरक्षपीठ के तत्कालीन महंत और इस सीट से विधायक रहे अवैद्यनाथ नाथ ने मुख्यमंत्री के लिए अपनी सीट खाली की थी।
इस बार योगी के विधानसभा चुनाव के वक्त दो घटनाओं पर गौर करें तो योगी को ब्राम्हण और मारवाड़ी मतदाताओं को अपने पाले में बनाए रखने के लिए कसरत करनी पड़ सकती है। यहां का ब्राम्हण स्व.उपेंद्र शुक्ला की नजर अंदाजी और उनकी असमय मौत से छुब्ध है। उपेन्द्र शुक्ला भाजपा के प्रतिष्ठित नेता थे। 2017 में योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद यहां हुए लोकसभा के उपचुनाव में उपेंद्र शुक्ला लोकसभा उम्मीदवार थे लेकिन योगी के मुख्यमंत्री रहते ही वे मामूली वोटों से चुनाव हार गए थे। उन्हें सपा उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने हराया था जो अब भाजपा में है और खलीलाबाद से सांसद हैं। आज हालात यह है कि प्रवीण निषाद का पूरा परिवार भाजपा में है। प्रवीण के पिता संजय निषाद एमएलसी हैं और होने वाले विधानसभा चुनाव में परिवार और जात बिरादरी के लिए और टिकट की डील फाइनल है। यह परिवार योगी और मंदिर के निकट भी है।
2019 के लोकसभा चुनाव में यहां का ब्राम्हण समाज फिर उपेंद्र शुक्ला की उम्मीदवारी की आश में था लेकिन योगी ने ही जौनपुर से भोजपुरी फिल्म स्टार रविकिशन को चुनाव लड़वा दिया। वे एमपी हो गए लेकिन इसके कुछ दिन बाद ही हार्ट अटैक से उपेंद्र शुक्ला की मौत हो गई। गोरखपुर का ब्राम्हण समाज आज उपेन्द्र शुक्ला को याद कर रहा है। गोरखपुर के ब्राम्हण वोटरों की बात करें तो उसे 2002 का वह विधानसभा चुनाव भी याद है जब गोरक्षनाथ मंदिर ने भाजपा उम्मीदवार शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ हिंदू महासभा से डा.राधा मोहन अग्रवाल को चुनाव लड़वाकर शिव प्रताप शुक्ला को हरवा दिया था। बाद के चुनाव में भाजपा के टिकट पर राधा मोहन अग्रवाल तभी से लगातार विधायक होते रहे हैं।
इस बार राधा मोहन अग्रवाल का भी टिकट कट गया। राधामोहन अग्रवाल फिलहाल योगी के खिलाफ कोई कदम उठाने वाले नहीं हैं लेकिन एक ठाकुर इंजीनियर को लेकर सांसद रविकिशन और एकाध विधायक राधामोहन अग्रवाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिए थे। रविकिशन ने विधायक अग्रवाल को भाजपा छोड़ने तक की नसीहत दे दी थी। रविकिशन के इस व्यवहार से यहां का मारवाड़ी समाज स्वयं को आहत महसूस किया था।
गौरतलब है कि गोरखपुर पूर्वांचल की राजनीति का केंद्र बिंदु है। यहां की हर छोटी बड़ी राजनीतिक घटना पूर्वांचल के कई जिलों को प्रभावित करता है। कभी यह शहर अपराध और राजनीति के मामले में ठाकुर और ब्राह्मणों के बीच बंटा हुआ दिखता था।यहां का तिवारी (हरिशंकर तिवारी)और शाही (स्व.वीरेंदर शाही) उपनाम का गैंग देशभर में चर्चित था।इनके बीच चले खूनी संघर्ष में कई हत्याएं भी हुई है। यह सर्वविदित है कि ब्राम्हणों को प्रश्रय गोरखपुर के”हाता” (पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी का आवास) में मिलता था तो ठाकुरों को गोरक्षनाथ मंदिर में।
यशोदा श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
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