आगे ही नही पीछे भी

आगे ही नहीं पीछे भी… देश भक्ति, राष्ट्रवाद और राज्य निष्ठा का प्रश्न

देश, राष्ट्र और राज्य को साधारणतया एक दूसरे का पर्याय समझकर इन शब्दों का उपयोग करके अपना प्रयोजन सिद्ध कर लिया जाता है। देश को अंग्रेजी भाषा में ‘कन्ट्री’ राष्ट्र को ‘नेशन’ और राज्य को ‘स्टेट’ कहा जाता है। इन शब्दों का महराई से मतलब समझना बहुत जरूरी है क्योंकि इन शब्दों का अपना मतलब सिद्ध करने के लिए प्रयोग करना अनुचित तो है ही, साथ ही सन्देह और श्रम पैदा करने वाला भी है। देश को संस्कृत भाषा में वर्ष कहा गया है। हमारे देश का नाम श्रीमद्भागवत के अनुसार कभी अजनार वर्ष था जो बाद में भारत वर्ष हो गया। पृथ्वी को सात द्वीपों में रेखांकित किया जाता है, उसमें जम्बूद्वीप है जो एशिया महाद्वीप के रूप में है। भारत वर्ष एशिया महाद्वीप का वह भाग है जो दक्षिण में मेखलाकार समुद्र से घिरा हुआ है और उत्तर में हिमालय की श्रृंखलाओं से। यह भारतवर्ष है अर्थात् भारत देश है। राजनैतिक कारणों से अगल-बगल, अलग होकर और भी राज्य बन गये। प्रकृति ने द्वीपों और देशों की सीमायें बनाई किन्तु मानवीय आकांक्षाओं ने राज्यों का निर्माण कर दिया।

राज्य की राजनैतिक सीमा निर्धारित की जाती है जो प्राकृतिक और अन्य देशों की संधियों की आधार पर निर्धारित होती है, यही नहीं, इसकी सीमाएँ प्राकृतिक उथल-पुथल के चलते बदल सकती हैं और इसमें युद्ध से जीते या हारे भू-भाग के चलते भी बदलाव आ सकता है। राज्य के नागरिक होते हैं। राज्य का एक पताका होता है, उसकी पहचान दिलाने वाला और उनके नागरिकों में राज्य के प्रति सम्मान जगाने वाला देश गान भी। जिसे राष्ट्रगान कहा जाता है, इसे अंग्रेजी में ‘नेशनल एन्थम’ कहते हैं और ध्वज को नेशनल फ्लैग। राज्य की एक व्यवस्था होती है और उस व्यवस्था को लागू करने, संचालित करने मर्यादित करने तथा उसे युग के अनुरूप राज्य का नेतृत्व करने के लिए संविधान होता है। संविधान के अन्तर्गत कानून होता है जो निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार संचालित होता है। कानून बनाने के लिए संवैधानिक व्यवस्था होती है जिसे लागू करने के लिए प्रशासन तन्त्र होता है। नागरिकों को अन्याय से मुक्त रखने और न्यायप्राप्त करने के लिए व्यवस्था होती है और उस व्यवस्थ को दुनिया के अन्य राज्यों से सम्पर्क करने, संधि करने, व्यापार करने, अपने राज्य के अनुकूल कुटनीतिक आचरण करने का अधिकार होता है। राज्य संविधान के अनुसार भी चलता है और उस व्यक्ति के द्वारा भी संचालित हो सकता है जिसे संविधान द्वारा, नागरिकों द्वारा, परम्परागत रूप में अथवा वंशानुगत रूप में अधिकार प्राप्त होता है। दुनिया में आज भी ऐसे देश हैं जहाँ राजतंत्र कायम है, जैसे संयुक्त अरब अमीरात, ऐसे भी देश है जहाँ राजा की सत्ता बनी हुई है जैसे जापान, इग्लैण्ड। ऐसे भी देश है जहाँ लोकतन्त्र भी है और राजा भी जैसे इग्लैण्ड। लोकतंत्र की ऐसी व्यवस्था भी चल रही है जहाँ सर्वोच्च पदाधिकारी भी है उसकी संसद और सिनेट भी हैं किन्तु वह उनके प्रस्ताव मानने के लिए बाध्य नहीं है जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका। ऐसे भी देश हैं जहाँ एक ही राजनैतिक दल है और चुनाव दल के भीतर होता है जिसे राज्य व्यवस्था के पदाधिकारियों को मनोनीत करने का अधिकार होता है जैसे चीन, रूस। भारत जैसे देश भी है जहाँ की संवैधानिक व्यवस्था में पंचायती स्तर से लेकर सर्वोच्च स्तर तक न राजतंत्र है और न अधिनायक तंत्र अपितु लोकतंत्र स्पष्ट है कि लोकतंत्र के तीन रूप दुनिया में दखाई दे रहें हैं। एक प्रजातंत्र जहाँ राजा और प्रजा दोनों है जैसे इग्लैण्ड और जापान। दूसरा प्रच्छन्न अधिनायक तंत्र जैसे अमेरिका और लोकतंत्र जैसे भारत। भारत के लोकतंत्र की एक और विशेषता है कि यहाँ बहुदलीय लोकतंत्र है और कई देशों में एक दलीय लोकतंत्र। बहुदलीय लोकतंत्र के चलते नागरिकों को चयन का अधिकार मिला हुआ है जिससे वे अपनी आकांक्षाओं अभिलाषाओं और आशाओं के अनुरूप राजनैतिक दल एवं उनकी व्यवस्था का चयन भी कर सकते है और उनकी नीतियों को जनाकांक्षाओं के साँचे में ढलने के लिए नीतिगत दबाव और आन्दोलन भी कर सकते हैं। यहाँ तक की संविधान को भी परिवर्तित करा सकते हैं। भारतीय लोकतंत्र में वास्तविक सत्ता नागरिकों के हाथ में है। इसीलिए सत्ताकांक्षी नागरिेकों से सम्पर्क बनाये रखने उनकी विचारधराओं, भावनाओं, आस्थाओं एवं विश्वासो के अतिरिक्त उनकी आवश्यकताओं पर बराबर नजर बनाये रखते हैं, आश्वासन देते रहते हैं और अपनी ओर आकर्षित करने के लिए नाना प्रकार के हथकंडे अपनाने में चूक नहीं करते। भारतीय लोकतन्त्र में लोक (समुदाय) और समुदायिक रीति से चुनाव करने की प्रणाली अपनायी जाती है जिसके लिए ये समुदाय अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को लेकर राजनैतिक दलों के रूप में प्रगट होते हैं तथा बहुमत की सरकार बना लेते हैं। बहुमत वाला दल स्वयं में सरकार नहीं होता अपितु वह सरकार का रूप धारण कर लेता है। यही कारण है कि भारत में वास्तविक सत्ता नागरिकों के हाथ में तो है किन्तु सभी नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग या तो करते नहीं या कर नहीं पाते या वे भय और प्रलोभन से ग्रस्त होकर अपनी सोच को अन्य तरीकों से भी प्रकट कर नहीं पाते इसीलिए भारत में लोकतंत्र तो है जिसे जनतंत्र में परिवर्तित होने की आवश्कता समझी जानी चाहिए।

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राष्ट्रवाद, राज सत्ता को प्राप्त करने के लिए दुनिया में एक प्रयोग के तौर पर आया। पिछली शताब्दि से कुछ पहले इसका प्रयोग यूरोप में किया गया। इसके अन्तर्गत अपनी निष्ठा, भाषा, सभ्यता को अस्मिता पूर्वक अभिमान के साथ प्रस्तुत करने की मुहिम चली। इस मुहिम ने एक ओर अपने को दूसरों से अलग किया। अभिमान के चलते उसका अन्मादी स्वरूप् का बनना स्वभाविक है। इस राष्ट्रवाद ने धार्मिकता को पीछे छोड़ दिया। यूरोप का प्रायः सम्पूर्ण क्षेत्र इसाई धर्मावलम्बी है और आस पास के क्षेत्र यहूदी और इस्लाम धर्मावलम्बी हैं। यूरोपीय राष्ट्रवाद के चलते, यूरोप अन्य बहुत से देशों से अलग-थलग पड़ गया। बाद में चलकर इस राष्ट्रवाद में इटली में तानाशाह मुसोलनी को और जर्मनी में तानाशाह हिटलर को और जापान में उसी से मिलती जुलती नीति पर तोज़ो को पैदा किया। मुसोलनी ने साम्प्रदायिक श्रेष्ठता का राष्ट्रवाद, हिटलर ने नस्ली श्रेष्ठता का राष्ट्रवाद और तोजो ने संघर्षशीलता का राष्ट्रवाद पैदा किया। ये तीनों अपने-अपने राष्ट्रवाद का विस्तार करने का प्रयास किया, जापान ने चीन और रूस के कुछ भाग को अपने कब्जे में ले लिया। यूरोप का राष्ट्रवाद इन दिनों अपना रूप और अधिक संकीर्ण करके भाषायी विभेद का राष्ट्रवाद बन कर रह गया, कहना न होगा कि राष्ट्रवाद एक संर्कीण सोच है और देश को विभाजित करके राज्य व्यवस्था पर कब्जा करने वाले नीति से प्रेरित है। भारत जैसे विविधता वाले देश में राष्ट्रवाद सत्ता लोलुपों का यदि हथकंडा बनता है तो यह देश का दुर्भाग्य ही होगा। भारत में भी स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान जो राष्ट्रवाद उत्पन्न हुआ उसने सम्पूर्ण देश में देशभक्ति की ज्वाला धधका दी और देश के लिए बलिदान होने की शहीदी परम्परा कायम की। उस राष्ट्रवाद में देशभक्ति थी, सत्ता लोलुपता नहीं। देश ने उन दिनों हिन्दुत्ववादी राष्ट्रवाद को पनपने नहीं दिया क्योंकि वे जानते थे कि यह सोच अंग्रेजों की फूट डालो नीति को बढ़ावा देगी और भारत की महान संस्कृति को आघात पहुँचायेगी। अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए मैं महाभारत के तीन पात्रों की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ वे हैं विदुर, धृतराष्ट्र और भीष्मपितामह। इनमें विदुर देशभक्ति के, धृतराष्ट्र वंशवादी राष्ट्रवाद के और भीष्मपितामह राज्य निष्ठा के पात्र है। श्रीकृष्ण की सम्पूर्ण योजना देशभक्ति से परिपूर्ण है इसीलिए वे महानायक बने रहे और आज भी वे महानायक ही हैं।

भारत का संविधान अंग्रेजी साम्राज्यवाद की भारत से विधाई के पश्चात् बनाया गया, जिससे भारतीयों ने बनाया उसे भारतीय संस्कृति के अनुरूप ढाला और 26 नवम्बर 1949 को उसे संविधान सभा में अंतिम रूप देकर 26 जनवरी 1950 से लागू होने की घोषणा की। भारत की संविधान यहाँ के नागरिकों की सहिष्णु और समावेशी तथा सर्वस्वीकार्य संस्कृति पर लोकतांत्रिक पद्धति से गणराज्य बनाने की घोषणा के साथ सर्वकल्याणकारी उद्देश्यों को हासिल करने के संकल्प के साथ भारत के नागरिकों में अंगीकार किया और स्वयं अपने पर लागू भी। एक सम्प्रभुता सम्पन्न देश जिनका नाम भारत घोषित हुआ और अपनी पहचान इन्डस कल्चर मानते हुए इंण्डिया कहा गया है। भारत में विश्वास और पूजा की स्वतन्त्रता नागरिकों को प्राप्त रहेगा किन्तु राज्य न तो उसमें हस्तक्षेप करेगा और न तो राज्य के लिए उस पर निर्भर करेगा। अर्थात् राज्य को धर्म से कुछ भी लेना-देना नहीं रहेंगा, वह धर्मनिरपेक्ष होगा अर्थात् सेक्यूलर होगा। हमारे संविधान निर्माता यह जानते थे कि मनुष्य की कामनाएँ, लोग और मोह, सामाजिक धन का अपने या अपने समुदाय के हितो में एकत्रीकरण करके देश व्यापक तौर पर दुख और दरिद्रता उत्पन्न कर सकते हैं इसलिए उन्होंने देश को व्यक्तिवादी नहीं अपितु सामाजिक दृष्टिकोण से संचालित करने और सबके लिए सुख साधन उपलब्ध कराने का उद्देश्य निर्धारित किया जिसको उन्होंने समाजवाद कहा। सत्ता लोलुपों की विभिन्न विधाओं को संविधान निर्माता जानते थे इसलिए उन्होंने लोकतंत्र, उसमें भी बहुदलीय संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली लागू की। संसद का अधिकार क्षेत्र संविधान वर्णित नहीं किया गया। जिसका यह मतलब है कि संसद (विधायिका) बहुमत प्राप्त दल इन मूल भूत सिद्धांतों के विपरीत भी कानून बना सकता है या संविधान में संशोधन कर सकता है। यह देश का दुर्भाग्य ही होगा जब संख्या बल का दुरुप्रयोग होने लगे और इस प्रकार के परिवर्तन लाये जाने लगें जिससे लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के मूल सांस्कृतिक मूल्यों की धज्जियाँ उड़ने लगें और देश पुनः पराधीन होने राह पर चलने लगे। ऐसा न हो, इसके लिए देश भक्ति का वहीं जज्बा देश के हर नागरिक में बना रहना जरूरी है जो ठाकुर रोशन सिंह, असफाक उल्लाह, चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव, भगत सिंह, रानी लक्ष्मी बाई, बेगम हजरत महल के साथ-साथ बहादुर शाह जफर और मौलाना आजाद आदि देश भक्तो में रहा। ऐसा कोई भी प्रयास जो भारत के संविधान के अन्तर्गत अधिकार प्राप्त करके इसके मूल ढाँचे और उद्देश्यों को खण्डित कर सकता हो उसे देश द्रोह की श्रेणी में पारिभाषित करके लाया जाना चाहिए।

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Shivji Pandey

शिव जी पाण्डेय “रसराज”

25 नवंबर 2021


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