20वीं शताब्दी में कई महामारियाँ आई थी जिनसे विश्व भी प्रभावित हुआ था और भारत भी। 20वीं शताब्दी में कोरोना वायरस के फैलने के चलते जो रोग उत्पन्न हुआ उसका नाम कोविड-19 रखा गया। तीन वर्ष बीत गया किंतु कोविड-19 की कोई दवा नहीं निकल पाई किंतु भारत सहित कई देशों में कोविड-19 की प्रतिरोधक वैक्सीन विविध नामों से निकाली। अलग-अलग समय पर अलग-अलग आयु वर्ग को कई वैक्सीन भारत में दिये गए और दिये जाते रहेंगे जब तक उसका उद्देश्य पूरा नहीं होगा। वैक्सीन की तीन खुराक इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाना है। 130 लोगों की आबादी वाले भारत में 170 करोड़ खुराक दी जा चुकी है। इसमें लगभग 70 करोड़ लोगों को वैक्सीन की दो खुराक दी जा चुकी है। 15 वर्ष से ऊपर व्यक्तियों को दो खुराक और 60 वर्ष के ऊपर के लोगों को तीन खुराक दी जाना है। आशा की जाती है कि दो माह बाद 15 वर्ष से कम आयु के नवयुवकों को वैक्सीन दिया जाने लगेगा। कोविड का पहला दौर जितना घातक था उससे कहीं अधिक पिछले वर्ष दूसरा दौर रहा। इस वर्ष का तीसरा दौर अपेक्षाकृत कम है। रोगी 90% से अधिक अपना इलाज घर पर ही करा रहे हैं। करोना के दुष्प्रभाव से बचने के लिए मास्क लगाने, दो गज की दूरी पर रहने और हाथ मुंह साफ रखने के परामर्श पर काम हो रहा है इसका उल्लंघन जानलेवा तो है ही, महमारी कानून के अंतर्गत दंडनीय भी है। कोविड उन लोगों को अधिक हुआ जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता रही। कोविड का ईलाज उसके लक्षणों पर किया गया। पिछले वर्ष का इसलिए इसलिए अधिक खतरनाक था क्योंकि वह सीधे श्वसन क्रिया को अवरुद्ध कर देता है। सभी चिकित्सा पद्धतियों के लिए कोविड रोग की सटीक औषधियों की सहायता से उसका प्रतिरक्षण और विकास के लिए औषध विकास के द्वारा प्रस्तावित औषधियाँ कुछ हद तक कारगर सिद्ध हुई है।
आयुर्वेदिक नुस्खों ने लोगों का आत्मविश्वास बढ़ाने में सहयोग किया। यह निश्चित रूप से अभी तक तय नहीं हो पाया कि कोविड का निश्चित कारण, उसका निदान और निवारण क्या है? हजारों लोगों को वैक्सीन की एक या दो खुराक लेने के बाद भी कोविड हुआ है। यह बात और है कि उन्हें कम कष्ट भोगना पड़ा ऐसी स्थिति में हर नौ महीने पर लगता है कि कोविड का वैक्सीन लगाना पड़ेगा जब तक करोना वायरस का प्रभाव बना रहेगा। मैंने 2 वर्ष पूर्व एक कविता लिखिए जिसका मुखड़ा निम्नवत है-
छा गईल सगरो करोना,
बनाई दिहलसि दुनिया के बौना।
लगभग छः महीने ही वर्तमान सरकार का दूसरा कार्यकाल शुरू हुआ था कि कोरोना ने चीन में दस्तक दे दिया। कोरोना अमेरिका, यूरोप,रूस आदि देशों की यात्रा करता हुआ हवाई मार्ग से भारत के विभिन्न हवाई अड्डों पर आ गया जो जो धीरे-धीरे उन क्षेत्रों में अधिक फैला जहां विदेशों से अधिक लोग आये महानगरों में लॉकडाउन के चलते करोड़ों की संख्या में लोग अपने-अपने गृहग्राम पहुंचकर कोविड के संवाहक बनते गये। भारत सरकार ने कई बार पूर्ण और आंशिक लॉकडाउन के माध्यम से कोविड का व्यापक जनसंपर्क रोका और भारतवासियों के धैर्य, संकल्प तथा सामूहिक प्रयास की परीक्षा लेने के लिए पूरे देश में घंटे और थाल बजवाये तथा सामूहिक रोशनी करवायी। इन प्रयासों का नेतृत्व स्वयं प्रधानमंत्री ने किया बहुत से लोगों ने इन आयोजनों को निरर्थक बताया क्योंकि घडीघण्ट बजवाने, थाल पिटवाने तथा रोशनी करवाने से कोरोना समाप्त करने अथवा कोविड से बचाया नही जा सकता क्योंकि यह आयोजन ना तो कोई दवा थी ना तो कोई वैक्सीन। इतना अवश्य था कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व, उनकी प्रभावकारी वाणी और उनके प्रति लोगों का विश्वास राजनैतिक दृष्टि से प्रमाणित होते दिखने लगा। कुछ लोगों का यह विचार भी आया कि जब कोई बड़ा आयोजन कराना होता है तो प्रधानमंत्री जी का संगठन शंखनाद करता है और जब उस पर गतिशील होता है तो दीपोत्सव करता है इसलिए ये आयोजन उद्देश्यानुसार रहे। श्री नरेंद्र मोदी जी जो 2014 के चुनाव से ही सत्तारूढ़ दल का प्रतीक नेतृत्व बने हुए थे, एक बार फिर जनमत के विश्वास के प्रतीक बन गये। किंतु बिहार और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में उनके प्रतीक जादू का वांछित प्रभाव नहीं रहा। पिछले वर्ष कोरोना की दूसरी लहर में चुनाव संपन्न हुआ किंतु इसका राजनैतिक लाभ उन्हें नहीं मिल पाया। इस वर्ष उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं किंतु कोविड फिर भी राजनीतिक लाभ दिलाने में बहुत कारगर नहीं दिखता। वैक्सीन और पिछली सरकारों की नाकामियाबियों और अपनी सरकारों की उपलब्धियों को छिपाकर महँगाई और बेरोजगारी जैसे आमजन की पीड़ा को मुद्दा से बाहर करके राजनीति का दांव खेला जा रहा है जिसका लाभ बिखरे हुए विपक्षी दल उठाने का प्रयास कर रहे हैं और दो इंजन वाले प्रचार को निरर्थक बता रहे हैं।
विगत दो वर्षों से कोविड एक ऐसा अवसर लेकर भारत सहित दुनिया में आया जिसने चिकित्सा सुविधाओं की पोल खोलकर रख दी। अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस और इटली जैसे विकसित देश और भारत चीन जैसे विकासशील देश इस मामले में बहुत पीछे साबित हुए। कोविड की जाँच का केवल एक केंद्र भारत में था अब हर जनपद में हो गया है। बेड, चिकित्सा उपकरण, ऑक्सीजन के साथ साथ दवा, डॉक्टर एवं उनके सहयोगियों के अभाव के बीच को फिर से लड़ना आसान नहीं था। नोटबंदी और जीएसटी की मार से घायल देश कोरोनाग्रस्त होकर अपनी चिकित्सा के लिए परेशान हो गया। देश ने हर संभव प्रयास करके चिकित्सा सुविधाओं का इंफ्रास्ट्रक्चर व्यापक तौर पर खड़ा करने का प्रयास किया। देश का चिकित्सा के क्षेत्र में पहली बार कोरोना महामारी ने आत्मनिर्भर होने का मार्ग प्रशस्त किया।
बहती गंगा में हाथ धोने की कहावत निहित स्वार्थी तत्वों ने खूब उठाया और देश की दरिद्रता अपनी लूट प्रवृत्ति का दलालों के माध्यम से ऐसा अवसर बना लिया कि आमजन की आय का प्रवाह दलालों से होता हुआ पूंजीपतियों के सदा अतृप्त रहने वाले थैलों में समाता गया।
राजनीतिक दलों, सरकार, प्रशासन और यहां तक की न्याय व्यवस्था भी पिछले दो वर्षों से कोरोना के झूले पर झूलने के लिए बाध्य पाये गये। राजनैतिक दलों की घोषणा पत्रों में किये गए वादे कोविड के चलते पूरा कैसे होते ? सरकार अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में कोविड का बहाना यदि नहीं ले तो महंगाई, बेरोजगारी जैसे आवश्यक कार्यो को वांछित उद्देश्यों के अनुरूप कैसे खड़ा करते। सरकारी तंत्र कोरोना का बहाना लेने के लिए बाध्य है क्योंकि उसे लॉकडाउन, महंगाई भत्ते से वंचित रहने, पारिवारिक और सामाजिक दायित्व को निभाने में परेशानियों का सामना करने और शासन तथा जनता के बीच अपनी सक्रिय भूमिका को कैसे सिद्ध करते हैं। न्याय व्यवस्था जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों की गारंटी देने की सर्वोच्च संस्था है किंतु अभी कोरोना वायरस के संक्रमण से भयभीत है तथा उसे भी कार्य करने में कोरोना का बहाना बनाना सहायक प्रतीत होता है, चाय अपराधी और गैर जमानती वारंट होने पर भी कपड़े ना जा सकते हैं मीडिया में हमारी कानून लागू होने के चलते निष्पक्ष भूमिका निभाने का बहाना बना रहा है चुनावो में ये बहाने कहा तक किसको लाभ पहुंचा पाएंगे?
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