भारतीय चिंतन में श्रद्धा विज्ञान का विषय रहा जिज्ञासा इसका मूल है। जानना और जानते रहना सदा की प्रकृति है, तर्क इसका आधार है और सिद्धि इसकी परिणति। राम कथा में स्त्री का चरित्र श्रद्धा को पुष्ट करता है। सती का शिव के समस्त तर्कपूर्ण रीति से यह जिज्ञासा प्रकट करता है कि वे आदि […]
आगे ही नही पीछे भी
आगे ही नहीं पीछे भी…योग का साम्य
दृष्टिकोण में साम्य, भावनात्मक साम्य और व्यवहार में साम्य सम्भव नहीं है। विचारों में विविधता और हर विचार का आदर नये-नये विचारों का उदित होना, वैचारिक साम्य और असाम्य समर्थन या प्रतिरोध निरन्तर प्रक्रिया है। महान वैज्ञानिक साम्यवादी कार्ल मार्क्स ने अपना विचार व्यक्त करने के पश्चात् स्वयं से प्रश्न पूछा कि क्या मैं मार्क्सवादी […]
आगे ही नहीं पीछे भी: जैसा परिवेश वैसा साहित्य…
बलिया में साहित्य सृजन का इतिहास बहुत पुराना है। संस्कृत में पद्यकाव्य और गद्य काव्य दोनों ही यहाँ लिखे गये। यदि महर्षि बाल्मीकि का आश्रम बलिया में माना जाय तो यह कहना पड़ेगा कि संस्कृत का प्रथम महाकाव्य रामायण की रचना भी बलिया क्षेत्र में हुई। रामकालीन अयोध्या की सीमाएँ बलिया के उत्तर सरयू तटीय […]
आगे ही नहीं पीछे भी : हर युवा बने विवेकानंद
1893 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका के शिकागो नगर में आयोजित धर्म संसद में ईसाई धर्मावलंबियों की प्रभावशाली उपस्थिति के बीच भारतवासी गेरुआ वस्त्रधारी एक युवा सन्यासी का अपने कुछ मित्रों के साथ अचानक सम्मिलित होना एक चमत्कारिक घटना के रूप में चिर स्मरणीय बन गया। प्रयास करने पर जिस युवक सन्यासी को अपना व्याख्यान […]