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MahaKumbh LIVE Updates: पहला अमृत (शाही) स्नान को मकर संक्रांति पर श्रद्धालुओं का रेला

MahaKumbh LIVE Updates: महाकुम्भ का पहला अमृत (शाही) स्नान मंगलवार को मकर संक्रांति पर शुरू हो गया है। विभिन्न अखाड़ों के साथ श्रद्धालुओं का रेला थमने का नाम नहीं ले रहा है। सुबह से अब तक संगम में स्नान करने वालों की संख्या 2.50 करोड़ हो गई। सोमवार की शाम तक प्रशासन की ओर से बनाए गए सभी रैन बसेरे भर गए थे। लोगों ने इधर-उधर जहां शेड मिला वहीं ठौर की तलाश की। महाकुम्भ मेले में आये लोगों में शाही स्नान के प्रति एक अलग लगाव देखने को मिला. प्रयागराज का पुरानी इलाका खचाखच भरा हुआ था.

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राजनीति में आस्था का प्रवेश

भारतीय चिंतन में श्रद्धा विज्ञान का विषय रहा जिज्ञासा इसका मूल है। जानना और जानते रहना सदा की प्रकृति है, तर्क इसका आधार है और सिद्धि इसकी परिणति। राम कथा में स्त्री का चरित्र श्रद्धा को पुष्ट करता है। सती का शिव के समस्त तर्कपूर्ण रीति से यह जिज्ञासा प्रकट करता है कि वे आदि […]

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आगे ही नहीं पीछे भी…योग का साम्य

दृष्टिकोण में साम्य, भावनात्मक साम्य और व्यवहार में साम्य सम्भव नहीं है। विचारों में विविधता और हर विचार का आदर नये-नये विचारों का उदित होना, वैचारिक साम्य और असाम्य समर्थन या प्रतिरोध निरन्तर प्रक्रिया है। महान वैज्ञानिक साम्यवादी कार्ल मार्क्स ने अपना विचार व्यक्त करने के पश्चात् स्वयं से प्रश्न पूछा कि क्या मैं मार्क्सवादी […]

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आखिर गाँधी की हत्या कितनी बार ?

आज गांधी जी  की पुण्यतिथि है। 30 जनवरी 1948 को महात्मा गाँधी के नाम से विश्वविख्यात मोहनदास करम चन्द गांधी की दिल्ली के बिड़ला भवन प्रार्थना स्थल पर हत्या कर दी गई। भारत के इतिहास का एक अध्याय शेष हो गया। इस अध्याय का आरम्भ अंग्रेजों के नस्लवाद से शुरू हुआ, इंग्लैंड में सांस्कृतिक विरासत […]

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आगे ही नहीं पीछे भी: ‘नेताजी’ और नेताजी!

इस वर्ष नई दिल्ली का गणतंत्र समारोह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 126वें जन्म वर्ष से ही आरंभ हो रहा है। नेताजी को अपने गणतांत्रिक प्रारूप में याद करना अपने में ही एक बड़ी बात है। सुभाष बाबू का जीवन बहुत लंबा नहीं था। किंतु उनका सदा जीवन रहने वाला प्रेरणादायी नाम चिर स्मरणीय बना […]

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साम्यवाद और संतुलन, क्या यह एक है?

बहुत से विचारक, जब साम्यवाद की समीक्षा करते हैं तो यह पाते हैं यह लगभग पूरे विश्व में अपनी जड़े खो चुका है। किंतु आज भी हर शहर, संगठन में साम्यवाद की वकालत करने वाला कोई ना कोई मिल ही जाता है, तथा वह अपने मनगढ़ंत तथ्यों के आधार पर साम्यवाद की बर्बादी के लिए […]

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जैसा परिवेश वैसा साहित्य

गतांक से आगे… 80 के दशक में देश की राजनीति में पृथकतावादी तत्व जड़ जमाने लगा। पूर्वी पाकिस्तान के बंगला देश में परिवर्तित हो जाने से भारत का स्थाई विरोधी पाकिस्तान का रुष्ट होना स्वभाविक था। अमेरिका को भारत की राजनीति में पाकिस्तान के रास्ते प्रवेश करने का अवसर मिल गया। सोवियत संघ ने भारत […]

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आगे ही नहीं पीछे भी… खिचड़ी वाली मकर संक्रान्ति

हम जानते हैं कि हमारी पृथ्वी सूर्य का एक चक्र 365-1/3 दिनों में पूरा करती है। नारँगी के आकार वाली इस पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के मध्य भूमध्य रेखा 0° (शून्म डिग्री) पर मानी जाती है। प्रति वर्ष 14 जुलाई को पृथ्वी चक्कर लगाते हुए ऐसी स्थिति में पहुँच जाती है कि सूर्य […]

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आगे ही नहीं पीछे भी: जैसा परिवेश वैसा साहित्य…

बलिया में साहित्य सृजन का इतिहास बहुत पुराना है। संस्कृत में पद्यकाव्य और गद्य काव्य दोनों ही यहाँ लिखे  गये। यदि महर्षि बाल्मीकि का आश्रम बलिया में माना जाय तो यह कहना पड़ेगा कि संस्कृत का प्रथम महाकाव्य रामायण की रचना भी बलिया क्षेत्र में हुई। रामकालीन अयोध्या की सीमाएँ बलिया के उत्तर सरयू तटीय […]

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आगे ही नहीं पीछे भी : हर युवा बने विवेकानंद

1893 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका के शिकागो नगर में आयोजित धर्म संसद में ईसाई धर्मावलंबियों की प्रभावशाली उपस्थिति के बीच भारतवासी गेरुआ वस्त्रधारी एक युवा सन्यासी का अपने कुछ मित्रों के साथ अचानक सम्मिलित होना एक चमत्कारिक घटना के रूप में चिर स्मरणीय बन गया। प्रयास करने पर जिस युवक सन्यासी को अपना व्याख्यान […]