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बंदोबस्त के चार अधिकारी सहित विभाग के 31 कर्मियों के विरुद्ध जालसाजी का केस दर्ज, खलबली मची

बलिया: जिले के चकबंदी विभाग के चार बंदोबस्त अधिकारी सहित विभाग के 31 कर्मियों के विरुद्ध जालसाजी के आरोप में मामला दर्ज किया गया है। पुलिस के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि बैरिया क्षेत्र के दलन छपरा गांव में चकबंदी कर्मियों पर फर्जी कार्रवाई और अनियमितता के प्रकरण का जाँच के बाद आरोप लगाया था. राज्य सरकार ने इसे घोर भ्रष्टाचार का मामला मानते हुए चकबंदी विभाग के 31 अधिकारियों और कर्मचारियों पर मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था। इनमें 11 चकबंदी अधिकारी और 9 चकबंदी लेखपाल आरोपी हैं। एक शिकायत की जांच के बाद चकबंदी आयुक्त ने डीएम और जिला उप संचालक चकबंदी को कार्रवाई का निर्देश दिया थी। इसकी जानकारी के बाद से विभाग में खलबली मची हुई थी। अब इस मामले में केस दर्ज हो गया है।

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पुलिस के अनुसार बंदोबस्त अधिकारी आरके सुरेश कुमार की शिकायत पर शुक्रवार को बलिया शहर कोतवाली में चार बंदोबस्त अधिकारी राधेश्याम, दयानंद सिंह चौहान, धनराज यादव व अनिल कुमार सहित विभाग के 31 कर्मियों के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया है।

उन्होंने दर्ज रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि आरके सुरेश कुमार ने शिकायत में बैरिया तहसील क्षेत्र के दलन छपरा गांव में चकबंदी कर्मियों पर फर्जी कार्रवाई और अनियमितता का आरोप लगाया है। चकबंदी आयुक्त की जांच के बाद मामला दर्ज कराया गया है। अपर पुलिस अधीक्षक दुर्गा प्रसाद तिवारी ने शनिवार को बताया कि पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। इस मामले का विवेचना विवेचना कोतवाली के क्राइम सब इंस्पेक्टर राज कपूर सिंह को सौंपी गयी हैं.

शिकायत की जांच के बाद निर्णय

कागजातों के रख-रखाव, अमल दरामद में गड़बड़ी करना चकबंदी विभाग को महंगा पड़ गया। राज्य सरकार ने इसे भ्रष्टाचार मानते हुए चकबंदी विभाग के 31 अधिकारियों और कर्मचारियों पर मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था। इनमें 11 चकबंदी अधिकारी और 9 चकबंदी लेखपाल आरोपी हैं। एक शिकायत की जांच के बाद चकबंदी आयुक्त ने डीएम और जिला उप संचालक चकबंदी को कार्रवाई का निर्देश दिया थी। इसकी जानकारी के बाद से विभाग में खलबली मची हुई थी। अब इस मामले में केस दर्ज हो गया है।

ये हैं पूरा मामला

अधिकारी की जांच में साफ हुआ कि दलन छपरा वर्ष 1987 में चकबंदी के दायरे में आया। वर्ष 1999 में कब्जा परिवर्तन की कार्रवाई की गई। चक के निगरानी की सुनवाई वर्ष 2000 में पूरी हो गई। इसके 23 साल बाद अंतिम अधिकार अभिलेख बनाने में कोई काननूनी बाधा नहीं होने के बाद भी धारा 52 की कार्रवाई नहीं करना आपत्तिजनक है। इसके लिए सभी अधिकारी और लेखपाल दोषी करार दिए गए। इसके बाद तत्कालीन 11 चकबंदी अधिकारी ओंकार नाथ, अवधेश कुमार, राजेश कुमार, कमलेश शर्मा, बरमेश्वर उपाध्याय, अमरेश चंद, विनय श्रीवास्तव, उमाशंकर, प्रभात कुमार पांडेय, शिवशंकर प्रसाद सिंह और वर्तमान में तैनात उमाशंकर के खिलाफ कार्रवाई हुई है।

इनके अलावा बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी राधेश्याम सिंह, दयानंद सिंह चौहान, धनराज यादव व अनिल कुमार, सहायक चकबंदी अधिकारी पुल्ली राम, हरिशंकर यादव, ओमप्रकाश श्रीवास्तव तथा वर्तमान में तैनात जयदेव, चकबंदीकर्ता जुगेश लाल, संतराम, राजेश कुमार व केदारनाथ सिंह तथा चकबंदी लेखपाल राजेश पुत्र रामनिहोरा, राजेश पुत्र रामनाथ, शशिकांत, सुरेंद्र चौहान, अनिल गुप्ता, आयुष सिंह, लल्लन यादव, अवितेश उपाध्याय और कन्हैया लाल पर मामला दर्ज कराया गया है।


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