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भृगुनगरी में हैं पर्यटन के विविध आयाम: विकसित कर बनाया जा सकता है पर्यटन का हब

पर्यटन का बहुत बड़ा हब बन सकता है बागी बलिया

Surha Tal: उत्तर प्रदेश और बिहार का सीमावर्ती जिला बलिया आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. ‘बागी बलिया’ के नाम से मशहूर यह जिला 1857 की क्रांति के महानायक मंगल पांडेय, स्वतंत्रता सेनानी चित्तू पांडेय समेत कई क्रांतिवीरों की जन्मस्थली है. इतना ही नहीं, बलिया का नाम पौराणिक समय से ही है. यहां के संत दर्दर मुनि और भृगु मुनि का नाम बड़े तपस्वियों में लिया जाता है. इसी जिले में स्थित है एक प्राकृतिक झील ‘सुरहा ताल’. चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.

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सुरहा ताल की प्राकृतिक छटा और दूर-दूर से आने वाले देशी-विदेशी पक्षियों की कलरव सैलानियों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखती है. सर्दियों के दिनों में यहां लाखों की संख्या में सैलानी पक्षी आते हैं, जिन्हें देखने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं.    

भृगुनगरी यानी बलिया जनपद विविधताओं एवं विभिन्नताओं से भरा पड़ा है। खनिज संसाधन विहिन इस जिला में कोई बड़ा उद्योग भी स्थापित नहीं है। लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थिति भी बेहतर नहीं है। एकमात्र कृषि ही जनपद की अर्थव्यवस्था का स्रोत है। जिले में कृषि के क्षेत्र में भी समुचित विकास नहीं हो पाया है। यही कारण है कि बलिया ज़िला में बेरोजगारों भरमार है और जिला का विकास भी कुंठित हो गया है। ऐसी स्थिति में पर्यटन ही एकमात्र ऐसा विकल्प दिखाई दे रहा है, जिसको विकसित कर बलिया ज़िला को विकास के पथ पर अग्रसर किया जा सकता है।

बलिया में है पर्यटन विकास की अपार सम्भावनाएं

बलिया ज़िला में पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं विद्यमान हैं। खासतौर से धार्मिक, आध्यत्मिक एवं पौराणिक स्थलों, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थलों, प्राकृतिक स्थलों,जल स्रोतों, साहित्य एवं साहित्यकारों से जुड़े स्थलों, स्वतंत्रता आंदोलन एवं स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़े स्थलों, ग्रामीण परिवेश के जुड़े स्थलों, शैक्षिक स्थानों एवं हॉलिडे होम के रूप में चिन्हित स्थलों को विकसित कर बलिया ज़िला को पर्यटन हब के रूप में विकसित किया जा सकता है।

यदि बलिया ज़िला में विद्यमान विविध आयामों से विभिन्न स्थलों का पर्यटन की दृष्टि से विकास किया जाय तो यह जिला पर्यटन का हब बन सकता है। खासतौर से निम्नांकित आयामों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करना श्रेयस्कर होगा –

धार्मिक-आध्यात्मिक एवं पौराणिक पर्यटन स्थल

बलिया ज़िला धार्मिक – आध्यात्मिक एवं पौराणिक स्थलों की दृष्टि से प्राचीन काल से ही अपना अस्तित्व एवं महत्व स्थापित किए हुए हैं। धार्मिक – आध्यात्मिक दृष्टि से बलिया को विमुक्त क्षेत्र कहा जाता है,जो प्राचीन काल में धर्मारण्य एवं अभयारण्य दो क्षेत्रों में विभक्त था। धर्मारण्य क्षेत्र में ऋषि- मुनि तपस्या करते थे। इसी क्षेत्र में महर्षि भृगु ऋषि का आश्रम था,जिसे भृगु क्षेत्र कहा जाता था,जो आज भी भृगु क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है एवं बलिया ज्ञनगर में भृगु ऋषि का मंदिर स्थापित है। इसके अतिरिक्त भी अनेक ऋषियों का आश्रम इस क्षेत्र में अभी भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं। महाराजा बलि द्वारा स्थापित बालेश्वर नाथ का मंदिर आज भी आस्था का केन्द्र बना हुआ है।इसके अलावा अनेक देवी- देवताओं का प्राचीन मंदिर इस क्षेत्र में स्थापित है। खासतौर से परशुराम ऋषि का मंदिर,पराशर ऋषि का मंदिर,वन देवी का मंदिर, ब्रह्माणी देवी का मंदिर, शंकर भवानी का मंदिर, कपिलेश्वरी माता मंदिर, मंगला भवानी मंदिर,सोनाडीह में मातामंदिर ,जल्पा-कल्पा मंदिर, खरीद में माता का मंदिर, दुर्जनपुर का काली मंदिर ,उचेड़ा का चंडी भवानी मंदिर,संतों में सुदृष्टि बाबा का मंदिर, महराज बाबा का मंदिर,चैनराम बाबा का मंदिर,मिल्की धाम, खपड़िया बाबा का आश्रम, पशुपति नाथ बाबा काआश्रम,नरहरि बाबा काआश्रम,हरेराम ब्रह्मचारीकाआश्रम, कारों धाम, लखनेश्वर डीह,पकड़ी आश्रम,नाथ बाबा (रसड़ा), जंगली बाबा का आश्रम, राम वाला एवं बलिया पोखरा (चितबड़ागांव),छितेश्वरनाथ मंदिर,अवनिनाथ मंदिर, बालखण्डीनाथ मंदिर,शोकहरणनाथ मंदिर ,वनखण्डीनाथ आश्रम,भदेव मंदिर, नारायण देव मंदिर,पचरूखा देवी मंदिर,खैरा डीह का मंदिर आदि ऐसे प्राचीन पौराणिक एवं धार्मिक – आध्यात्मिक स्थान हैं,जिनको विकसित कर पर्यटन का रूप प्रदान किया जा सकता है।

ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक पर्यटन स्थल

ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से भी बलिया ज़िले में अनेक ऐसे स्थान हैं,जिनको विकसित कर पर्यटन का केन्द्र बनाया जा सकता है। जैसे- खैरा डीह में की गयी खुदाई में कुषाणकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। देवकली गांव में भी कुषाणकालीन मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।पक्का कोट में की गयी खुदाई में भी प्राचीन अवशेष मिले हैं। बलिया ज़िला में अनेक बुद्धकालीन स्थलों की भी पहचान की गयी हैं। जैसे- जीराबस्ती,करनई,भदेव आदि स्थानों पर बुद्धकालीन अवशेष मिले हैं। ऐसा दृष्टांत मिलता है कि बोधगया जाते समय सिद्धार्थ(बुद्ध भगवान) बलिया होकर ही गए थे और भृगु आश्रम में दो दिन रूके भी थे। अतः बौद्ध प्राप्त के रूप में भी बलिया को कुशीनगर एवं बोधगया से जोड़कर पर्यटन का विकास किया जा सकता है।

स्वतंत्रता आंदोलन एवं स्वतंत्रता सेनानियों से जुड़े स्थलों एवं शहीद स्मारकों का पर्यटन की दृष्टि से विकास –

स्वतंत्रता आन्दोलन में बलिया ज़िला विशेष रूप से अग्रणी रहा है। सन् 1857 में स्वतंत्रता आंदोलन का बिगुल बजाने वाले प्रथम शहीद मंगल पाण्डेय का गांव नगवां हो या सन् 1942 की स्वतंत्रता आन्दोलन की अगुवाई कर सर्व प्रथम बलिया ज़िला को अंग्रेजों की चंगुल से छुड़ाकर जिले को स्वतंत्र करने वाले चित्तू पाण्डेय का गांव सागरपाली हो, बैरिया में शहीद होने वाले नौजवानों का हुजूम हो या चरौंवा के शहीद स्थल हों। बांसडीह अथवा चितबड़ागांव के शहीद स्थल हों अथवा इसी तरह जिले भर में स्थित सैकड़ों शहीद स्थल एवं शहीदों के गांव हैं,उनको विकसित कर न केवल स्थानीय एवं राज्य स्तर पर , बल्कि देश स्तर पर एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे स्थलों की पहचान पर्यटन केन्द्र के रूप में बनाई जा सकती है।

साहित्यकारों एवं लेखकों से जुड़े स्थलों का विकास-

बलिया ज़िलामें ऐसे साहित्यकार,लेखक, वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ हुए हैं,जिनका न केवल देश स्तर पर, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान है।इनमें पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी, परशुराम चतुर्वेदी, बलदेव उपाध्याय, पद्मश्री कृष्ण बिहारी मिश्र ,केशव देव मिश्र, अमर कांत, गणेशी प्रसाद, जगदीश प्रसाद शुक्ल,उदय नारायण तिवारी, भगवती प्रसाद द्विवेदी सहित अनेक अन्य विद्वान भी हैं,जो अपनी विधा से विश्व स्तर पर अपना परचम् लहरा चुके हैं। ऐसे साहित्यकारों की जन्मस्थली को विकसित कर एवं उनके साहित्य का संकलन कर उसको पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा सकता है।

प्राकृतिक स्थलों का विकास-

बलिया में अनेक ऐसे प्राकृतिक स्थल हैं जिनको विकसित कर सुरम्य एवं मनोरम् पर्यटन स्थल बनाया जा सकता है। बलिया ज़िला तीन तरफ से गंगा, सरयू एवं तमसा(छोटी सरयू) नदियों से घिरा है।इन नदियों के धारा परिवर्तन से जिले में अनेक प्राकृतिक ताल – तलैयों का निर्माण हुआ है। ऐसे ताल-तलैयों की संख्या 80 से अधिक है,जिनमें से 28 तालों की विधिवत पहचान की गयी है,जिनको जल पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है। इनमें खासतौर से सुरहा ताल, दस ताल मुड़ियारी एवं रेवती दह मुख्य हैं, जहां जाड़े के दिनों में रंग – बिरंगी विदेशी पक्षियां आती हैं एवं गर्मी शुरू होने पर यहां से जाती हैं। किंतु इनका अवैध शिकार होने के कारण अब ये कम आ रही हैं। अतः इनके शिकार को रोककर एवं इन तारों का विकास कर इन्हें जल पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है। इनमें से खासतौर से सुरहा ताल को विशेष तौर पर विकसित करना आवश्यक है,क्योंकि यहां पक्षी विहार भी स्थापित है और इस क्षेत् को पारिस्थितिकी दृष्टि से भी संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया संख्या है। इसके बावजूद भी सुरहा ताल का विकास नहीं हो पा रहा है।

सुरहा ताल जैव विविधता की दृष्टि से भी धनी ताल है। इसमें अनेक तरह के औषधीय पौधे एवं अनेक प्रकार की दुर्लभ प्रजाति की मछलियां भी मिलती हैं। सुरहा ताल में एक विशेष प्रकार धान होता है, जिसकी विशेषता है कि अधिक जल हो जाने पर भी धान का यह पौधा डूबता नहीं है , बल्कि बढ़कर जल के ऊपर ही रहता है। यह धान शुगर की बिमारी वालों के लिए विशेष उपयोगी होता है। यह अत्यन्त पौष्टिक एवं स्वादिष्ट होता है। किंतु इसकी खेती अब कम होने लगी है। अतः धान की इस दुर्लभ प्रजाति का संरक्षण आवश्यक है। सुरहा ताल की तलहटी की मिट्टी भी औषधीय होती है। खासतौर से चर्मरोग में इस मिट्टी का लेप लगाना लाभदायक होता है। यही नहीं सुरहा ताल जल प्लावन से भी राहत पहुंचाता है। जब इस ताल में पानी अधिक हो जाता है तो अतिरिक्त जल कटहल नाला(कष्टहर नाला) के माध्यम से गंगा नदी में चला जाता है और गंगा नदी में बाढ़ आती है तो उधर का अतिरिक्त जल कटहल नाला के रास्ते सुरहा ताल में जाता है।

पर्यटन की दृष्टि से कटहल नाला एवं हाहा नाला का विकास भी आवश्यक है। इन दोनों नालों का विकास कर जल पर्यटन के रूप में नौकायन एवं मत्स्य पालन कर उसकी प्रदर्शनी के रूप में विकसित किया जा सकता है।

ग्राम पर्यटन एवं हाली डे पर्यटन का विकास –

बलिया में ग्राम पर्यटन एवं हाली डे पर्यटन के विकास की भी पर्याप्त संभावनाएं विद्यमान हैं। बलिया की गांव संस्कृति अपने- आप में विशेषताओं को समेटे हुई है। अभी बलिया के गांवों में लोक उत्सव ,लोकनृत्य, लोकगीत आदि का अस्तित्व विद्यमान है,जो अन्यत्र नहीं मिलता है। गांवों में ही हाली डे होम के रूप में भी विकास किया जा सकता है,जो सस्ता भी पड़ सकता है। वास्तव में यदि बलिया ज़िला के विकास हेतु कुछ करना है तो इस जिले में आवश्यक अवस्थापनात्मक तत्वों को विकसित कर जिले में विद्यमान विविध आयामों के तहत आने वाले स्थलों को पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित कर ही बलिया जिले में विद्यमान बेरोजगारी को दूर किया ज्ञजा सकता है। कारण की पर्यटन स्थलों का विकास हो जाने पर रोजगार के अनेक अवसर खुल जाते हैं, जिनमें बेरोजगार शिक्षित एवं अशिक्षित युवक भी अपनी क्षमता, सामर्थ्य एवं योग्यता के अनुसार अपने अनुकूल क्षेत्र का चयन कर रोजगार के अवसर ढूंढ़ सकते हैं। ऐसे में उन्हें अपने घर से दूर भी नहीं जाना पड़ेगा, बल्कि अपने परिवार में ही रहकर अपना कार्य करते हुए परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर सकते हैं। इससे न केवल उनका विकास होगा, बल्कि इस क्षेत्र की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी। यही नहीं यदि बलिया ज़िला में पर्यटन का समुचित विकास हो जाता है तो उसके माध्यम से जिले की न केवल आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी, बल्कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी और बलिया ज़िला प्रगति पथ पर अग्रसर हो सकेगा।

डा. गणेश पाठक लोकपाल, पर्यावरणविद

जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया


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