Ballia Delhi National Suggestion UP Bihar

भारत का अर्थ संकट – “ग्यारह सूत्री सुझाव”

बलिया के वरिष्ठ पत्रकार ने 20 मई 2020 को केंद्र सरकार को भेजा था सुझाव

भारत को वर्तमान आर्थिक संकट से उबरने के लिए योग की शरण में जाना उचित हो सकता है। योग के

  • दोयम अस्तेय (चोरी न करना)
  • अपरिग्रह (धन संचय से बचना)
  • एक नियम सन्तोष

के आधार पर कुछ योजनाओं को लागू करने से आर्थिक संकट दूर हो सकता है। अघोषित धन को कानूनी शिकंजे की जगह देश के आर्थिक विकास मे लगाने के लिए प्रोत्साहित करना उचित होगा। स्वाधीनता, सुरक्षा, स्वाभिमान और विकास के लिए देशवासी अपना बहुत बलिदान करने के लिए तैयार रहते हैं। जिनकी भावनाओं का भी आदर हो पाएगा।

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Report Suspected Fraud Communication Visit CHAKSHU
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हम निम्नलिखित सुझाव देना चाहते है:

  1. पहले से स्थापित कुटीर, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों को तत्काल वित्तीय सहयोग देकर अल्पकाल में आपूर्ति बढ़ायी जा सकती है। इसके लिए पिछले तीन वर्षों के उत्पादन के मीन (Mean) का 25% (Cash Credit) दे दिया जाय।
  2. उद्योगों और कम्पनियों के बन्द होने से स्थापित श्रमिकों को नकद क्रय शक्ति दी जाय, ताकि वे नई सम्भावनाओं के साथ अपने को एडजस्ट (Adjust) कर सके।
  3. छोटे दुकानदार, पटरी दुकानदार, ठेले वाले रेहड़ी वाले आदि जिनके कारोबार बन्द हो गए हैं उनको वित्तीय सहारा दिया जाय।
  4. जो लोग कानूनी भय से परेशान है और उनके पास अघोषित धन है उनके इस धन को निम्नलिखित योजनाओं में बॉण्ड (Bond) के माध्यम से इन्वेस्ट (Invest) कराया जाय। ये बॉण्ड दस वर्षीय हो जिसकी पेडअप वैल्यू (Paidup Value) पर एडेड वैल्यू (Added Value) का 30% आयकर ले लिये जाने का प्रावधान हो।
    • परिवहन क्षेत्र: वायु रेल, सड़क और जल
    • सिंचाई क्षेत्र: असिंचित भूमि विशेष
    • ऊर्जा क्षेत्र: परम्परागत नवीकरणीय एवं अन्य
    • स्वास्थ्य क्षेत्र: हर जनपद में विविध मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल तथा सुपर स्पेशिलिटी अस्पतालों का विस्तार एवं प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर उन्नत पैथोलॉजी की स्थापना।
    • शिक्षा क्षेत्र: गुणवत्ता, उत्पादकता, दक्षता और शोधपरक शिक्षा के साथ मानकीकृत समरूप शिक्षा।
    • पर्यटन क्षेत्र: पर्यटन क्षेत्र- बौद्ध परिपथ की तरह, राम परिपथ, कृष्ण परिपथ, जैन परिपथ और सिक्ख परिपथ का विकास।
    • रीयल इस्टेट क्षेत्र: लघु और मध्य वर्ग हेतु आवास, आवास कालोनी, चाहे वे ग्रामीण क्षेत्र में हो अथवा शहरी क्षेत्र में।
  5. चिकित्सा के साथ स्वास्थ्य पर और स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास पर ध्यान दिए जाने के क्रम में सभी आयुर्वेदिक यूनानी चिकित्सालयों में पंचकर्म चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा और योग के भी केन्द्र अनिवार्य रूप से स्थापित किए जाए।
  6. कुटीर, लघु और मध्यम उद्योगों के उत्पादों को बड़े उद्योगों की होड़ से मुक्त किया जाय और उसकी अलग से ब्रान्डिंग (Branding) की जाय।
  7. सांस्कृतिक, साहित्यिक और खेल-कूद की गतिविधियाँ बढ़ाई जायें ताकि देश में गौरव, अनुशासन, प्रतिस्पर्द्धा का विकास होता रहे।
  8. नकद लेन-देन पाँच लाख तक मुक्त कर दिया जाय।
  9. गाँवों में वापस लौटे मजदूरों के क्षमता का आकलन करके उनके लिए उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाय।
  10. देश में अधिकतम उत्पादन के लक्ष्य की पूर्ति अधिकतम मानव संसाधन द्वारा दृढता से अपनायी जाय ताकि रोजगार की स्थिति तक पहुँचा जा सके।
  11. पूर्ण नियंत्रण मुक्त व भय मुक्त किन्तु अनुशासन युक्त नियोजित आर्थिक विकास की नीति अपनाई जाय, जिसमें क्षेत्रीय असंतुलन दूर करने के तरीके सम्मिलित हों।

कृपया अपने विचार नीचे कमेंट सेक्शन में साझा करें।

अशोक
(वरिष्ठ पत्रकार एवं अधिवक्ता)

20 मई 2020


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8 Replies to “भारत का अर्थ संकट – “ग्यारह सूत्री सुझाव”

  1. दूरदर्शी सुझाव, कुछ सुझाव तो सरकार ने लागू कर भी दिया है।

  2. सुझाव बहुत ही बढ़िया है, उम्मीद है आगे भी मार्गदर्शन मिलता रहेगा।

  3. मेरा मानना है, उद्योगों को वित्तीय मदद देने से अच्छा, उनको व्यापार का नए विकल्प बताएं, और उनका व्यापारिक क्षेत्र का बढ़ावा करें। इससे व्यापार बढेगा और कर्ज माफी का बोझ सरकार पर नहीं पड़ेगा।

    ठीक वैसे ही, मज़दूरों को सौजन्य अनाज या पैसे के मदद करने से अच्छा (देना बुरा नही है) उनको काम दें। सरकार को सारे रुके हुए परियोजनाओं को शुरू करना चाहिए जिससे रोज़गार एवं आर्थिक मज़बूती मिलेगा। कर्ज़ लोगोंको कमज़ोर ही बनते है और मुफ्त मिलने वाली चीजें आलसी।

    यह मेरा मानना है।

  4. तर्कसंगत सुझाव हैं। लघु उद्योगों पर विशेष ध्यान की आवश्यकता है।

  5. भारत के आर्थिक संकट से उबरने के लिए प्लानिंग कमीशन और जो भी सरकार रही है काफी कुशलता से काम की है और हो भी रहा है एनएचएआई यानी रोड सड़को का जाल और बिजली सप्लाई का अहम योगदान है, रही बात खेती की तो यहां सदियों से खेतो टुकड़ों टुकड़ों में बटा हुआ है, लोग प्रकृति और काम करने वाले खेत मालिको के अधीन है न उनको उन्नति मशीन न खाद और न ही बीज मिल पाते है वो जितना श्रम कर पाते है उसी क्रम में उपज हो पाती है, इसके लिए सरकार द्वारा दिए गया किसान क्रेडिट का बेजा इस्तेमाल ही होता आया है, अगर खेत मालिक खेती को व्यापार की दृष्टि से देखे करे और इन्वेस्टमेंट करे तो निश्चित ही परिणाम दूरगामी और फायदे वाले होंगे

  6. किसान क्रेडिट कार्ड का बेजा इस्तेमाल इसकी उपयोगिता को कमतर कर रहा है। इसके सही इस्तेमाल के लिए गरीब किसान को इसकी उपलब्धता की प्रक्रिया सरल बनानी चाहिए और जो गरीब नहीं हैं उनको क्रेडिट कार्ड नहीं मिलना चाहिए।

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