14 नवम्बर बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस को महत्व प्रदान करने के लिए मनाया जाता है। उनका जन्म इस तिथि को 1889 ई0 में हुआ था। बच्चे उनको सबसे अधिक प्रिय थे, इसलिए बच्चे उन्हें चाचा नेहरू कहते थे। वे इसके प्रतीक के रूप में अपनी कोट में गुलाब के फूल को ब्रोच में लगाते थे। गुलाब एक ऐसा फूल है जो काँटों के बीच रहता है और अत्यन्त सुगंधित होता है। इस फूल की सुगंध बहुतप्रिय होती है और इसका रंग गुलाबी, इसकी पहचान इसके रंग एवं गंध गुलाब से है। वनस्पति वैज्ञानिकों ने अब बहुत से रंग के गुलाब विकसित कर दिये हैं जिसके चलते गुलाब की पहचान रंग नहीं, गंध और आकृति रह गई है। गुलाब की तरह काँटों में रहकर अपने रूप सौन्दर्य और गंध को निखेरते एवं बिखेरते रहने का ‘चाचा नेहरू,’ का संदेश विश्व के हर एक बालक के लिए शाश्वत संदेश है।
जन्म दिन मनाये जाने के बहुत से तरीके हैं। जन्म दिन को सांस्कृतिक लेन-देन के साथ अपनी रूचि और साधन के अनुरूप मनाया जाता है। कहीं दीप जलाकर, कहीं मोमबत्तियाँ बुझाकर, कभी केक काटकर, गुब्बारें फोड़कर, कभी मिठाइयाँ बाँट कर, कभी खेल और पिकनिक मनाकर, कभी बच्चों को गिफ्ट देकर, कभी उपासना स्थलों पर माथा टेक कर, तो कभी बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेकर और गीत-संगीत एवं नृत्य आदि के साथ। लोकगीतों में ‘सोहर’ की विशेष धुन पर गीत गा कर जन्म दिन मनाया जाता है। यह विडम्बना है कि पुत्र जन्मोत्सव पर ही ‘सोहर’ गाये जाते रहे किन्तु मैंने पुत्रियों के जन्म पर भी ‘सोहर’ गाये जाने की परम्परा अपने गीतों से आरम्भ की। शुभांगना का मंगला चरण मेरे एक भोजपुरी लोकगीत से आरम्भ हुआ जिसे बहुत पसन्द भी किया गया-
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घरवा में जनमेली बिटिया त, हिरिदा उमंग भरे हो, बबुनी, तोहरा प सब कुछ निछावर, सोहरियो-सोहरि परे हो। बाबा, खुशखबरी जे सुनले, धधाइ घरवा अइलन हो बबुनी, पगरी के पाग सोझ कइलन, मोछिया अइठि बोले हो। गुरुजी के अबहीं बोलाइबि, पतरा देखाइबि, ग्रह मिलवाइबि हो, बबुनी, तुहीं मोरा कुल के सिंगार, सृजन मूलाधार हउ हो। सुनि-सुनि अनध बधाव, जुटेले पुर-गाँव, ले-ले के उपहार नू हो, बबुनी, तहके निहारे खातिर धरती, आकास लागे एक भइले हो। तहके पढ़ाइबि-लिखाइबि, आकास ले उठाइबि, दुनिया घुमाइबि हो बबुनी, तहरा हुनर के सहारे, अन्हरिया मिटाइबि हो। कहे ‘रसराज’ आजु बेटी पर, केकरा ना गुमान होई हो, बबुनी, जुग-जुग जीय ई असीस, जगति अभिमान बनऽ हो।
चाचा नेहरू का जन्म दिन भारत के भविष्य का जन्म दिन है और अभिभावकों के साथ-साथ पूरे समाज और देश को बच्चों के समुचित पोषण संवर्द्धन, स्वास्थ्य, शिक्षा के साथ-साथ उनकी प्रतिभा की पहचान और उसके विकास को संकल्पबद्ध होकर निरन्तर चिंतित रहने, इस के लिए समुचित योजनाएँ बनाने और जमीनी धरातल पर लागू करने का दिन है। जवाहर लाल नेहरू जो स्वतन्त्र भारत के नव निर्माण में लगे रहे तथा भारत के विकास के लिए आधारभूत कार्य किये, उसे स्मरण रखने का तो दिन है ही। गुलाम भारत में उनके अविस्मरणीय कार्यों और आजाद भारत में उनकी सोंच को झुठलाकर राजनीति करने वाले ऐसे लोग ही हो सकते हैं जिनका आजादी की लड़ाई से कोई वास्ता नहीं और आजाद भारत की नींव डालते समय सम्पूर्ण देश को एक सर्वकल्याणकारी और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप कार्यनीति को उचित नहीं समझते।
लेकिन चाचा नेहरू के अत्यन्त प्रिय बालकों के वर्तमान और भविष्य को जानने, परखने और उनके लिए ठोस उपक्रम से जाने बिना कैसे रहा जा सकता है। बच्चों के खेलने के चिल्ड्रेन पार्क पर भी राजनीति की गई और बालकों के महत्व देने वाले और बाल महोत्सवों के कार्यक्रम भी राजनीति के भेंट चढ़े हुए हैं। बालकों के मौलिक अधिकारों पर ध्यान देना भी आवश्यक नहीं समझा जा रहा है। बालकों में भी यदि आन्दोलन करने का सामर्थ्य होता तो वे भी आन्दोलन के लिए आन्दोलित हो जाते और अपने मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए सड़कों पर उतर आते। लेकिन वे ऐसे असहाय हैं कि चाचा नेहरू जिन्दाबाद भी नहीं कह सकते।
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शिव जी पाण्डेय “रसराज”
13 नवंबर 2021
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