UP Bihar आगे ही नही पीछे भी

आगे ही नहीं पीछे भी… बहँगी छठी माई के जाय

छठ महापर्व व्यवहारिक रूप से एक लोकपर्व है। पृथ्वी सूर्य मण्डल का एक ग्रह है जिस पर सूर्य की बहुमुखी कृपा बनी रहती है। सूर्यमण्डल के अन्य ग्रहों पर यहीं विविधता पूर्ण ईतना विकास नहीं हुआ है जितना की पृथ्वी लोक पर। सूर्य पूजा के इस पर्व को छठी मइया के रूप में लोक मान्यता मिलने का कोई निश्चित कारण नहीं लगता। ऐसा लगता है कि छठी मइया अर्थात पृथ्वी मइया अपने सभी व्रतियों के साथ सूर्य कृपा से अपनी गोद में पले-फले वनस्पतियों व वृक्षों के फलों के साथ कृतज्ञ भाव से उपासना में जुटी हो। यह पर्व छठि मइया का पर्व है जो सूर्य देव के प्रति आभार के साथ सभी मूल्यवान वस्तुओं के प्रति अर्घ्य है। यह पर्व वास्तव में पृथ्वी का पर्व है, पृथ्वी की ओर से मनाये जाने वाला पर्व है जो इस बात का संकेत देता है कि अपने परिवार के प्रति उसके हर सदस्य के प्रति और खास तौर पर उसके केन्द्रीय संरक्षक के प्रति आभारी होना चाहिए। पृथ्वी माता अपने सूर्य परिवार के सदस्य होने के चलते जो कृतज्ञ भाव रखती हैं उसी का यह महापर्व सूर्यषष्ठी का पर्व है जो छठी मइया के पर्व के रूप में मनाया जाता है।

छठी मइया का यह पर्व छठी मइया के लिए अपने समर्पण भाव को दिखाते हुए लोक गीतों के साथ मनाया जाता है। जिनके घर में सन्तान पैदा हुई रहती है उनके घरो में कोसी के साथ अर्थात दीप मालिकाओं की थाल के साथ पूजा की जाती है। पूजा सामग्रियों बॉस से बने दउरा या सूप में सजाकर जलाशय के समीप वेदी बनाकर रखी जाती हैं। छठ व्रती जल द्वारा आचमन कर के पूजा सामग्रियों के साथ अर्ध्य देते हैं। सारा छठी घाट दीपों और पटाखों से जगमगा उठता है। छठि किनारे तक जाता हुआ यह काफिला छठि गीतों को गाता हुआ चलता है और छठी घाट पर भी विशेष रूप से रचित परम्परा से चले आ रहे सुमधुर विशेष सुरो में ये गीत बरबस किसी को भी आकर्षित कर लेते हैं। अपने विशेष सुरों के चलते ये गीत जब गाये जाते हैं तो यह सहज ही पता चल जाता है कि ये गीत छठी मइया के गीत है।

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काँवरि या बहँगी एक ऐसा साधन है जिसके आगे और पीछे परम्परागत तराजू के तरह दउरे रख दिये जाते हैं जिसमें पूजा की सारी सामग्रियों रखी हुई होती हैं। किसी ने पूछा कि यह बहँगी कहां जा रही है तो कावरिये ने उत्तर दिया कि “बहँगी छठी माई के जाय“। हम यहाँ कुछ प्रचलित छठि गीतों की एकआध पंक्तियाँ देने का प्रयास कर रहे हैं –

सदा शिव के फुलवरिया, गौउरा देई फूल लोर्हे जासु।२
फूलवा लोर्हीय-लोर्ही सुतेली अँचरा डसाइ।
पाँच सखी मिल जगावे, चलs सखी छटी माई के घाट।

काँचहि बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकत जाय,
होखिना ए बाबा तइयार, बहँगी घाटे पहुँचाय।२
बाँटवा जे पुछेला बटोहिया, ई बहँगी केकरा के जाय,
ते तs ऑन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाय,
बहँगी सूरुजमल के जाय।

ऐ घाट मोरी छेकेला घटवरवा भइया, बटिया बटवरवा भइया।
गोदी मोर छेकेले गणेश बेटा, कइसे अरघ दियाय।
घाट मोर छोड़ेले घटवरवा भइया, बटिया बटवरवा भइया।
गोदी मोर छोड़ेले गणेश बेटा, अब मोरा अरघ दियाय।

अमवा जे फरेला झोंप के, ओ पर सुग्गा मेडराइ।
केरवा जे फरेला घवद से, ओ पर सुग्गा मेडराइ।
सुग्गवा के मरबो धेनुस से, सुग्गा जईहें मुरुछाय।२
सुग्गिया जे रोवेले वियोग से, छठि मइया दीही ना जियाय।

घोड़वा के लहसिया हो धइले, भोला बाबा खाढ़,
हथवा के सुपलिया हो ले ले, बाड़ी गउरा देई खाढ़।
आरे ऊगी ना सुरुजमल, कि अरघ दियाउ,
आरे ऊगी ना आदित रउवा कि अरघ दियाउ।

ऐसे ही गीतों को गाते हुए एक छठि व्रतियों की टोली द्वारा गाये जा रहे गीतों को सुना गया। इन गीतों की अगुवानी श्रीमती राजलक्ष्मी पाण्डेय कर रहीं थी और साथ के सभी लोग गा रहे थे। मन्नत पूरा करने के लिए छठ उपासना का विशेष आयोजन किया जाता है, साथ ही मन्नत पूरा हो जाने पर भी विशेष उपासना के लिए छठ व्रत किया जाता है।

प्रातः कालीन अर्ध्य ऊगते हुए सूरज को दिया जाता है और जब तक सूरज उदित नहीं हो जाते तब तक सूर्य से ऊगने के लिए प्रार्थना की जाती है जैसे-

घोड़वा के लहसिया हो धईले, भोला बाबा खाढ़।
हथवा के सुपलिया हो ले ले, बाडी गउरा देई खाढ़।
आरे ऊगी ना सूरुज मल, कि अरघ दियाउ ।

सूर्य का घोड़ा श्वेत रंग का और उनका रथ एक पहिये वाला कहा जाता है जिसमें चौबिस तिल्लियाँ होती है उनका लगाम सात रंगो वाला होता है। यह धारणा पूर्णतः विज्ञान सम्मत है क्योंकि सूर्य का चक्र एक ही होता है और उसकी किरणे सात वर्ण वाली बैगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी व लाल रंग की होती है। जिनका चक्रीय प्रभाव अथवा दृश्यता श्वेत हो जाती है। गूढ़ वैज्ञानिक रहस्यों को और सौर्यमंडल को लोकपर्व के रूप में बताने जाने की परम्परा अदभुत है। हम सूर्य, पृथ्वी, जीवन और लोकपर्व सबको एकही साथ प्रणाम करने का सुअवसर प्राप्त कर रहें है।

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Shivji Pandey

शिव जी पाण्डेय “रसराज”

10 नवंबर 2021


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2 Replies to “आगे ही नहीं पीछे भी… बहँगी छठी माई के जाय

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