आगे ही नही पीछे भी

आगे ही नहीं पीछे भी… सनातन एक नहीं

भारत के आदि धर्म का आधार वेद माना जाता है। वेद के सम्बन्ध में इतिहास वेत्ताओं का मानना है कि ऋग्वेद सबसे पुराना है। मुद्रित पुस्तक के रूप में वेद बहुत बाद में आया, जब लिपि का विकास हुआ और मुद्रण सुविधा उपलब्ध हुई। अभी तक बहुत प्रयास करने पर भी यह ज्ञात नहीं हो […]

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आगे ही नही पीछे भी… विभाजन बेमतलब

अभी-अभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंचालक डॉ. मोहन भागवत ने अपनी नीति और कार्यक्रमों को उद्‌भाषित करते हुए कहा है कि हिन्दू हैं तभी भारत है, और भारत हिन्दुओं से ही है। जब-जब हिन्दू कमजोर हुआ है तब-तब भारत को नुकसान हुआ है। इसलिए अखण्ड भारत का सपना साकार करने के लिए विभाजन का […]

Education

सुनना – “एक खोयी हुई कला”

हमारे बचपन के दिनों में स्कुल में हमें पढना, लिखना, खेलना और बोलना सिखाया जाता था। लेकीन सुनने की सीख मुश्किल से ही मिलती थी, बल्कि ना के बराबर थी। प्रकृति नें हमें दो कान और एक मुहँ दिया है। बोलने से पहले मानव ने सुनना सिख लिया था। मनुष्य आसपास होने वाली घटनाओं को, […]

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आगे ही नहीं पीछे भी… देश भक्ति, राष्ट्रवाद और राज्य निष्ठा का प्रश्न

देश, राष्ट्र और राज्य को साधारणतया एक दूसरे का पर्याय समझकर इन शब्दों का उपयोग करके अपना प्रयोजन सिद्ध कर लिया जाता है। देश को अंग्रेजी भाषा में ‘कन्ट्री’ राष्ट्र को ‘नेशन’ और राज्य को ‘स्टेट’ कहा जाता है। इन शब्दों का महराई से मतलब समझना बहुत जरूरी है क्योंकि इन शब्दों का अपना मतलब […]

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आगे ही नहीं पीछे भी… आगे-आगे देखिए होता है क्या?

कृषि कानूनों को वापस ले लेने की घोषणा पर किसान आन्दोलनकारियों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए फिलहाल आन्दोलन समाप्त करने का मूड नहीं बनाया। ये कानून संसद से पारित होकर बने थे जिसकी संवैधानिक प्रक्रिया पर प्रश्न चिन्ह लगते रहे। प्रधानमंत्री ने घोषणा पहले की और अपनी घोषणा के अनुरूप संसद में उन तीन […]

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आगे ही नहीं पीछे भी… पौराणिक सन्दर्भों में ददरी मेला

पौराणिक मान्यताओं के आधार पर असुर राज विरोचन का साम्राज्य जो वैरोचन साम्राज्य से प्रसिद्ध था, जिसकी राजधानी बलिपुरी थी। विरोचन पुत्र बलि धर्मात्मा स्वभाव का हुआ जिसकी ख्याति तीनों लोको में फैलती जा रही थी। यह जिज्ञासु राजा था इसे पता था कि यज्ञ के द्वारा कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है, इसलिए […]

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आगे ही नहीं पीछे भी… कौन जीता किसान, सरकार या लोकतंत्र?

आज सुबह नौ बजे का समय भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में इसलिए याद किया जाएगा कि दो वर्ष पहले प्रस्तावित अपने ही तीन कृषि कानूनों का अचानक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वापस कर लेने में किसानों उनकी फसलों, बीमा और बाजार को लेकर किये गये प्रयासों का उल्लेख किया और यह कहा कि किसान संगठन […]

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आगे ही नहीं पीछे भी… क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी?

इतिहास पर दृष्टिपात करने से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि भारत कभी भी एक दृष्टिकोण, एकधर्म, एक भाषा, एक भावभूमि अथवा एक व्यवस्था वाला देश नहीं रहा है। भारत में द्रविण संस्कृति सबसे पुरानी मानी जाती है और आर्य लोगों पर विवाद बना रहा है। कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि आर्य मध्य […]

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आगे ही नहीं पीछे भी… कैसे तय होती है एम.एस.पी.?

कृषि उत्पादों का न्यूनतम मूल्य तय करने की आवश्यकता के पीछे किसानों को उनके उत्पाद के लिए कम से कम लागत मूल्य निश्चित करना रहा। इसका उद्देश्य किसानों को किसानी से घाटे को बचाना, सरकार को न्यूनतम मूल्य पर अनाजों की खरीद सुनिश्चित करना अन्न उपभोक्ताओं को बाजारू मूल्य वृद्धि के भार से सुरक्षित करना […]

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आगे ही नहीं पीछे भी… भय और प्रलोभन में फँसी मीडिया

वर्ष 2021 जिन कारणों से अविस्मरणीय वर्ष माना जायेगा उनमें एक यह भी है कि इस वर्ष में दो व्यक्तियों को संयुक्त रूप से पत्रकारिता में नोबेल पुरस्कार की घोषणा की गयी। इन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को लेकर जो मौलिक कार्य किये उन्हें इस पुरस्कार के द्वारा सम्मानित किये जाने का गौरव प्राप्त हुआ। तत्कालीन […]