न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) लागू किये जाने से पहले अनाज का सरकारी खरीद मूल्य, प्रोक्योरमेण्ट प्राइस (लेबी) निर्धारित हुआ करता था। देश की आजादी के समय अनाज की बहुत किल्लत थी जिसकी एक वजह दूसरा विश्वयुद्ध भी था। देश में सूखा-बाढ़ बारिश और आगजनी के चलते स्थान स्थान पर अकाल हो जाता था जिससे हजारों लोग भुखमरी के शिकार हो जाया करते थे। इसके लिए देश को बड़ी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती थी। देश के पास कोई ऐसी नीति या व्यवस्था भी नहीं थी जिससे इस मसले पर काबू पाया जा सके। सरकार को राशन व्यवस्था लागू करनी पड़ती थी जिसके मुताबिक विशेष मात्रा निर्धारित की जाती थी और उतना अनाज सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य पर राशन की दुकानों से मिल जाता था। पहली जवाहरलाल नेहरू सरकार के खाघ और कृषि मंत्री रफी अहमद किदवई ने राशन व्यवस्था को कालाबाजारियो की कमाई का साधन समझकर उसे हटा दिया। सामान तो सबको मिलने लगा लेकिन बड़े बड़े व्यापारियों ने पैसे के बल पर अनाज का भारी भंडार रखना शुरू कर दिया जिससे बाज़ार में अनाज का आमद या पूर्ति कम होने लगी जिसका असर यह हुआ कि अनाजो के दाम बढ़ने लगे। पहली पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य अधिक अन्न उपजाओ रखा गया। नियोजित ढंग से पंचवार्षीय योजनाओं से माध्यम से देश का जो विकास माडल बनाया गया उसमें सबसे पहले अनाज को प्राथमिकता दी गई। इसका अच्छा परिणाम हुआ किन्तु देश की आबादी भी बढ़ रही थी और 1948 के पाकिस्तान है युद्ध का असर कृषि क्षेत्र पर से अभी गया नहीं था। सरकार को विवेक संगत ढंग से अनाज वितरण व्यवस्था बनाने की जरूरत पड़ने लगी। देश में बेरोजगारी और गरीबी तो थी ही, देश के औद्योगिक विकास और वैज्ञानिक तकनिको को अपनाना भी चुनौती बन गया । देश ने इन चुनौतियों को भी स्वीकारा और दूसरी पंचवर्षीय योजना अद्यौगिक विकास पर केन्द्रित की गयी।
आर्थिक विकास के क्रम में ऐसी परिस्थितियों भी प्रवेश पाने लगी जिनके चलते अनाज की सरकारी खरीद की नीति को अपनाना पड़ा। बाजार से कृषि को मुक्त कर और कृषि उत्पादन को बिना छेद और भेद के देशवासियो को उपलब्ध कराते रहने के उद्देश्य से देश में सरकारी दायित्व पर अनाज की खरीद शुरू की। यदि नहीं किया गया होता तो बाजार यन्त्र के माध्यम से अनाज की उपलब्धता बाधित हो जाती, देश के करोड़ो लोग अनाज के एक-एक दाने के लिए मोहताज हो जाते और व्यापारिक लोग बाजार की अस्थिरता का लाभ उठाते रहते। उन दिनों जब अनाज की सरकारी खरीद शुरू हुई और उसके लिए सरकारी मूल्य निर्धारित हुआ तो व्यापारी वर्ग की हितैशी राजनीति में इसका विरोध किया और अन्य तर्कों के साथ यह तर्क दिया की सरकार का काम व्यापार करना नहीं है। उनका यह भी कहना था कि सरकार किसानों को कम मूल्य दे रही है, जबकि व्यापारियों से उन्हें अधिक मूल्य मिल सकता है। उन दिनों सरकारी खरीद योजना को राजनैतिक मुद्दा भी बनाया गया जिसका प्रभाव यह हुआ कि व्यापारियों की हितैशी राजनैतिक दलों को कोई लाभ नहीं मिला।
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सरकार की नीति न तो किसानों के विरूद्ध थी न तो आम जनता की। उन दिनों देश की कम्यूनिस्ट पार्टियाँ चाहती थीं कि सरकार सम्पूर्ण कृषि उत्पाद खरीद ले और उसे खुदरा दुकानदारो के माध्यम से निर्धारित मूल्य पर उसे बेचने की व्यवस्था करे । यह सुझाव सरकार को ठीक नहीं लगा किन्तु सरकार ने कृषि उत्पाद को बाजार से आंशिक तौर पर ही सही मुक्त रखने का प्रयास किया। इसके अंतर्गत न्यूनतम समर्थन मूल्य हर फसल के लिए लागत मूल्यों के उतार चढ़ाव के ध्यान में रख कर लागू होने लगा। इस एम०एस०पी० से किसानो को राहत मिलने की उमीद जताई गयी। लेकिन इसके अंतर्गत अनाज बजट के अनुरूप ही खरीदा जाता रहा। लगभग 80% अधिक अनाज किसानों को खुले बाजार में बेंचना पड़ता रहा जिसका मूल्य किसानो की पैसे की जरूरत और खरीदार व्यापारियों को अधिक से अधिक जखीरेबाजी की उम्मीद के सहारे बेंचना और खरीदना पड़ता था। बजार की प्रणाली के अंतर्गत खरीदार कम से कम मूल्य पर खरीदना चाहता है और किसान अधिक से अधिक मूल्य को बेचना चाहता है लेकिन पैसे की तत्काल जरूरत के चलते उसे कम मूल पर भी बेच देने के लिए विवश रहता है। बाजार के इस उतार-चढ़ाव ने किसानो को हानि और व्यापारियों को लाभ होने आवश्यम्भावी है। एम०एस०पी० बाजार की इस उतार चढ़ाव से किसानों को मुक्त रखने का एक कारगर उपाय हो सकता है।
अन्न उगाही योजना से सरकार को अकाल प्रभावित क्षेत्रों को अन्न आपूर्ति करने में सुविधा होने लगी, सूखा बाढ़ आदि से प्रभावित क्षेत्रों में क्रय-शक्ति उत्पन्न करने के लिए जो तात्कालिक कदम उठाये गये उसमें ऐसे अनाजों का उपयोग किया गया | टेस्टवर्क चलाये गये, श्रम के बदले अनाज कार्यक्रम में भी ऐसे अनाजों से सुविधा प्राप्त हुई। MSP कार्यक्रम से प्राप्त अनाज का उपयोग इनके अलावे जन साधारण वितरण प्रणाली के माध्यम से सस्ते मूल्य पर अनाज का वितरण और बाद में चलकर खाद्यान गारण्टी योजना के लिए इसका उपयोग किया गया। व्यपारियो की हितैशी राजनीति ने प्रोक्योरमेण्ट प्राइस एवं एम०एस०पी० दोनों का विरोध किया। खाद्यान गारण्टी योजना २०१३ में लाई गई, उन दिनों भी संसद में इसका विरोध हुआ किन्तु इसी योजना के अन्तर्गत पिछले कई वर्षों से खास तौर पर करोना काल में मुफ़्त खाद्यान वितरण का रूप देकर चलाया जा रहा है और उस पर राजनीति की जा रही है।
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शिव जी पाण्डेय “रसराज”
03 नवंबर 2021
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