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आगे ही नहीं पीछे भी: ‘नेताजी’ और नेताजी!

इस वर्ष नई दिल्ली का गणतंत्र समारोह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 126वें जन्म वर्ष से ही आरंभ हो रहा है। नेताजी को अपने गणतांत्रिक प्रारूप में याद करना अपने में ही एक बड़ी बात है। सुभाष बाबू का जीवन बहुत लंबा नहीं था। किंतु उनका सदा जीवन रहने वाला प्रेरणादायी नाम चिर स्मरणीय बना रहेगा। स्वतंत्रता संग्राम के उन दिनों को दोहराने की आवश्यकता नहीं है। जब पूरा देश स्वाधीनता के लिए उठ खड़ा हुआ था और कांग्रेस उसका मुख्य मंच बना हुआ था। जो जनभावनाओं का प्रतिबिंब हुआ करता था। ऐसे संगठन का अध्यक्ष चुन लिया जाना इस बात को प्रमाणित करता है कि सुभाष बाबू उस छटपटाहट के प्रतीक बन चुके थे। जो पूरा देश चाहता था। अंतराष्ट्रीय पर प्रदृश्य का प्रभाव भी इस आंदोलन पर पड़ना स्वाभाविक था। गांधी के एक संकेत पर नेता जी ने कांग्रेस का अध्यक्ष पद स्वीकार नहीं किया और देश की आजादी के लिए सीधे संघर्ष करने वाले बलिदानियों का संगठन आरंभ कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी इटली और जापान एक साथ और इंग्लैंड अमेरिका के साथ सोवियत संघ भी हो गया था। जो दूसरा पक्ष इस विश्वयुद्ध में एक साथ युद्धरत थे ऐसी विषम परिस्थितियों में गांधीजी की अहिंसा अपना पुनर्मूल्यांकन चाहती थी। जिसके अनुसार दुश्मनी बनाए रखना और नीतियों का विरोध छोड़ देना तथा अन्याय को सहन करना एक विमर्श का विषय बन गया।

सुभाष बाबू चाहते थे कि इस परिस्थिति का लाभ स्वाधीनता प्राप्ति के लिए उठा लेना चाहिए। उन्होंने जर्मनी के नाजीवादी नेता हिटलर से परामर्श किया और जापान के फासिस्ट नेता तोजो से हाथ मिला कर सिंगापुर में पूर्व स्थापित आजाद हिंद फौज के संगठन को नए सिरे से खड़ा किया। जिसके वे स्वयं मुख्य सेनापति बने जय हिंद के नारों के साथ कदम कदम मिलाए जा खुशी के गीत गाए जा… ये जिंदगी है कोम की तू कौम पर मिटाए जा की कदमताल पर नेताजी ने दक्षिणी पूर्वी भूभाग से अंग्रेजी अधिपत्य को चुनौती देते हुए उन्हें बेदखल करना शुरू किया और भारी भूभाग को स्वतंत्र घोषित कराने में सफलता पायी। स्वाधीन भू-भाग को कई पड़ोसी देशों ने मान्यता देकर नेताजी के अभियान पर अपनी मुहर लगाई आजाद हिंद फौज के गठन के लिए आजादी के दीवानों को आमंत्रित करना आवश्यक था। जिसके लिए उन्होंने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा के आश्वासन ने अपना मूर्त रूप दिखा दिया। इस अभियान के चलते आजादी के लिए पहले से चल रही लड़ाई को वैकल्पिक प्रेरणा तो मिली ही उसे नया जीवन भी प्राप्त हुआ। उनका अभियान दिल्ली तक कब्जा करने का था। वे अपने रेडियो से इसका ऐलान भी कर चुके थे। लेकिन नियति को यह मंजूर नहीं रहा सुभाष बाबू का संगठन अंग्रेजी कानून के अंतर्गत प्रतिबंधित भी था उसके छोटे-बड़े कमांडरों के विरुद्ध मुकदमे चलाए गए और उन्हें कठोर दंड भी दिए गये। इंदिरा सरकार ने आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा देकर उन्हें सम्मान और पेंशन भी दिया। सुभाष बाबू युवा पीढ़ी के लिए सदैव प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे। अपने अध्ययन काल में सिर्फ उपलब्धि प्राप्त करके प्रशासनिक योग्यता (ICS) प्रमाणित करते हुए स्वाधीनता और देशभक्ति का जज्बा रखते हुए अपने जीवन के हर पल और हर कार्य को देशहित में समर्पित करने की प्रेरणा और शक्ति प्रदान करते रहे। जिनकी उपलब्धि प्रतिभा और सेवा से युवा पीढ़ी के लिए सदैव मार्गदर्शन पाती रहेगी।

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Shivji Pandey

शिवजी पांडेय रसराज


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