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मोख्तार से मुक्त हो पाएगा मऊ?

दागियों को टिकट न देने का राजनीतिक दलों का वादा है तो यह पब्लिक को मूर्ख बनाने जैसा

लखनऊ: यूपी में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच एक चर्चा जोरों पर है कि क्या मऊ मोख्तार अंसारी से मुक्त हो पाएगा? मोख्तार यहीं से विधायक है,जो बसपा के टिकट पर जीता था। बेशक मोख्तार अंसारी वर्षों से सलाखों के पीछे है लेकिन बतौर विधायक उसके बादशाहत में कोई कमी नहीं दिखती। तब भी जब योगी सरकार का उस पर लगातार शिकंजा कसा जा रहा है, उसके अवैध भवनों को ध्वस्त किया जा रहा और तमाम कानूनी कार्रवाई की जा रही है।

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मोख्तार के जेल में रहते मऊ के लोग सकून में हैं। अब यहां रोज रोज दहशत और दंगे की छाया नहीं, शांति, तरक्की और समृद्धि दिखने लगी है। ताना बाना का यह शहर तरक्की की ऊंचाइयां छू रहा है फिर भी वे सपा और सुभासपा गठबंधन से इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि कहीं इस गठबंधन का उम्मीदवार मोख्तार न हो जाय? जिसकी संभावना अधिक दिख रही है।

जहां तक दागियों को टिकट न देने का राजनीतिक दलों का वादा है तो यह पब्लिक को मूर्ख बनाने जैसा है। बसपा ने मोख्तार को टिकट देने से मना कर दिया है। सपा ने भी दागियों को न कर दिया है। अब सपा मोख्तार को न दे टिकट लेकिन जब उसकी सहयोगी पार्टी सुभासपा उसे टिकट दे तो इसे क्या माना जाय? जनता की आंख में धूल झोंकना ही तो!

मऊ विधानसभा क्षेत्र का समीकरण यह है कि यहां अल्पसंख्यक वोटर आंख मूंद कर उसके समर्थक थे और राजभर वोटरों पर भी उसकी मजबूत पकड़ है। ऐसे में चाहे जिस पार्टी से मोख्तार मैदान में उतरे,उसकी हार आसान नहीं है क्योंकि यहां का जातीय अंकगणित ही कुछ ऐसा है। बस इसी अंकगणित के आधार पर मऊ के लोग इस बात से मुत्मईन नहीं है कि मऊ मोख्तार से मुक्त हो पाएगा?

मऊ यूं तो कई बार दंगे की गिरफ्त में आया और मुक्त हुआ। लेकिन 2005 में फसादी अपने नापाक मकसद में कामयाब हो गए। उन फसादियों को विधायक मोख्तार अंसारी का खुला संरक्षण मिला। जानकारों के मुताबिक जिस एतिहासिक भरतमिलाप को देखने के लिए जहांआरा ने ही मऊ कस्बे में खीरीबाग के मस्जिद के परिसर का चयन किया था वही जगह लंबे अरसे तक दंगे की आड़ में राजनीति चमकाने वालों का प्रमुख केन्द्र बना हुआ था।


कुछ परंपराएं भी आग में घी जैसी

2005 में भरत मिलाप के अवसर पर भड़काए गए दंगे की आग से यह शहर वर्षों तक झुलसता रहा। इस दंगे की जड़ में यहां के विधायक मोख्तार अंसारी की मौजूदगी की वजह सामने आई थी। पूर्वांचल को दहशतजदा कर देने वाले इस दंगे में सात लोग मारे गए थे।महीनों तक शहर कफ्यू की गिरफ्त में था और कई दिन तक इस रूट से गोरखपुर से बनारस जाने वाली ट्रेनों का संचालन ठप था। रोज कमाने खाने वालों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई थी।

इस दंगे का असर सिर्फ एक वर्ग पर नहीं पड़ा था। व्यापारी, बुनकर ही नही हर किसी को इस दंगे ने कई साल पीछे ढकेल दिया था। बाहुबली विधायक मोख्तार अंसारी समेत 36 लोगों पर केस चला था।कई वर्षों बाद अदालत ने सभी को क्लीन चिट दे दी। इस घटना से यहाँ के जिम्मेदार लोगों ने एक सीख ली कि साप्रदायिक सौहार्द से ही शहर को विकास के रास्ते पर लाया जा सकता हैं।बुनकरों के ताने बाने के इस शहर में वैसे त्योहार की चुनौतियों पर नजर डालें तो यहाँ का अधिकांश त्योहार साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से अति संवेदनशील है। यहां शाही कटरा मस्जिद के मैदान में ठीक अजान के दौरान भरत मिलाप और विमान को मस्जिद की दीवार से टकराने की परंपरा या संस्कृत पाठशाला के सीढ़ियों पर चढ़कर जाने वाला मुस्लिम बंधुओं के ताजिये का जुलूस। इसके अलावा भी कई ऐसे त्योहार हैं जिनकी परंपरा दोनों समुदायों के सौहार्द को आमने सामने होने को विवश करती है। शहर के समाजसेवियों का कहना है कि ऐसी परंपराओं पर रोक लगनी चाहिए जिससे आपसी सौहार्द बिगड़ता हो।

सात लोगों की हुई थी मौत, दर्जनों हुए थे घायल

मऊ के इस दंगे में सात लोगों की मौत हुई थी जबकि 36 लोग घायल हुए थे। अक्टूबर २००५ में हुए मऊ दंगे के दौरान मोख्तार अंसारी पर राम प्रताप यादव की हत्या करने का आरोप था। भरत मिलाप कार्यक्रम के दौरान अराजक तत्वों द्वारा किए गए पथराव के बाद मऊ में दंगा भड़का था। करीब १३ दिन तक चली सांप्रदायिक हिंसा में अनेक लोग घायल हुए

मोख्तार की फ़ोटो ने खड़ा किया था हंगामा
मोख्तार अंसारी की उस समय मीडिया में एक फोटो छपी थी जिसको लेकर हंगामा मचा था। फोटो में मोख्तार अंसारी एक खुली जीप में हाथ में बंदूक लेकर खड़ा था और अपने लोगों को आगे बढऩे की बात कह रहा था। इस फोटो के छपने और वीडियो वायरल के बाद चर्चा तेज हुई कि मोख्तार खुद दंगा भड़का रहा थे जब कि उसकी दलील थी कि वह खुली जीप में घूमकर लोगों को शांत करा रहा था। बाद में हालांकि जिले की सत्र अदालत ने मामले के कुल २८ गवाहों के मुकर जाने के बाद मोख्तार अंसारी सहित ३1 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया।


मऊ में कब कब बढ़ा साम्प्रदायिक तनाव और दंगा
1969 में शहर में कृष्णा टाकीज में टिकट को लेकर दंगा भड़का।
1983 राजरामकपुरा में लक्ष्मी पूजा को लेकर दंगा भड़का।
1984 शाही कटरा राजगद्दी को लेकर हुआ दंगा।
1993 में अयोध्या मामले को लेकर तनाव
2000 में दुर्गापूजा को लेकर दंगा
2005 में शहर के शाही कटरा में भरत मिलाप के दौरान माइक छीनने को लेकर भड़का दंगा।मऊ में दंगे के इतिहास में यह सबसे बड़ा और हिंसक दंगा था जिससे तब की यूपी सरकार हिल गई थी।

Yashoda

यशोदा श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार


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