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भारत में महिला सशक्तिकरण के कानूनी प्रावधान

प्राचीन भारत में महिलाओं को बहुत ही उच्च एवं सम्माननीय दर्जा दिया जाता था.  वेदों में भी इस बात को दर्शाया गया है की महिलाओं का विवाह  परिपक्वहोने के पश्चात ही होता था यहां तक की महिलाओं को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार होता था तथा उन्हें पुरुषों के बराबर ही हक और दर्जा दिया जाता था, लेकिन लगभग 500 ईसा पूर्व से देखा जाए तो महिलाओं के स्थिति  में गिरावट आना शुरू हो गया  और विशेषतया  बाबर और  मुगलशासन और फिर उसके बाद क्रिश्चियनिटी ने महिलाओं के अधिकार और स्वतंत्रता को बुरी तरह प्रभावित किया. हालांकि समय-समय पर महिलाओं को उचित सम्मान देने के लिए कई रिफॉर्म्स और आंदोलन हुए लेकिन ज्यादातर समय यह देखा गया कि भारत में महिलाओं को बहुत सारे अधिकारों से वंचित रखा गया और उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक समझा गया. बाल विवाह की प्रथा जो कि छठवीं शताब्दी में आरंभ हुई, महिलाओं के लिए अत्यंत ही अपमानजनक, दुखद एवं पीड़ादायक था. 

हालांकि आधुनिक भारत में कुछ  प्रथाओंजैसे कि सती प्रथा,  जौहर प्रथा तथा देवदासी प्रथा को  पूरीतरह से प्रतिबंधित कर दिया गया फिर भी कुछ जगहों पर और विशेषकर दूरदराज और ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों में अभी भी यह प्रथा देखने को मिल जाती है.  बाल विवाह अभी भी कई जगहों पर देखने को मिल जाता है जो कि भारतीय कानून के मुताबिक पूरी तरीके से गैरकानूनी है.

Block Your Lost / Stolen Mobile Phone Visit CEIR
Report Suspected Fraud Communication Visit CHAKSHU
Know Your Mobile Connections Visit TAFCOP

ब्रिटिश शासन के दौरान राजा राम मोहन रॉय ईश्वर चंद्र विद्यासागर ज्योति राव फुले आदि लोगों ने महिलाओं के बेहतरी के लिए एवं उनके अधिकार के हैं बहुत कार्य किए . सन 1929 मेंबाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम पारितहुआ जिसमें  लड़कीके विवाह की न्यूनतम आयु 14 साल रखी गई,हालांकि महात्मा गांधी के खुद का विवाह 13 साल की उम्र में हुआ था मगर उन्होंने युवाओं से बाल विधवाओं से विवाह करने का आह्वान किया था.

आज के भारत में महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी पूर्ण भागीदारी दे रही है चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र, खेलकूद, राजनीति, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, कला साहित्य, विज्ञान एवं तकनीक या कोई भी क्षेत्र हो हर क्षेत्र में  उनकी भागीदारी दिख जाती है.

महिलाओं से संबंधित कानूनों को प्रमुख रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है –

1.  इंडियन पेनल कोड (IPC) जिसे हम भारतीय दंड संहिता के नाम  से जानते हैं

इसमें जो प्रमुख धाराएं हैं जिनके माध्यम से महिलाओं के अधिकारों को संरक्षित करना एवं उनके सशक्तिकरण के लिए कानूनी प्रावधान किया गया है वह है-

  • सेक्शन 376 (बलात्कार),  
  • सेक्शन 363 से 373 (अपहरण, व्यपहरण, भीख मंगवाना वैश्यावृत्ति आदि ),  
  • सेक्शन 302 / 304b (दहेज़ हत्या से सम्बंधित),
  • सेक्शन 498a (शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना),   
  • सेक्शन 354 (छेड़छाड़ से सम्बंधित),  
  • सेक्शन 509 (सेक्सुअल हराशमेंट), आदि.

2.  जो दूसरी कैटेगरी के अनुसार कुछ विशेष कानून बनाए गए हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार से है 

जो विशेष कानून बनाए गए उनमें प्रमुख हैं-  

  • दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम  1961,  
  • अनैतिक व्यापर (निवारण) अधिनियम  (SITA) 1956,
  • घरेलु हिंसा अधिनियम 2005,  
  • सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वूमेन ऐट वर्कप्लेस ( प्रीवेंशन प्रोहिबिशन एंड रिड्रेसल) 2005,  
  • फैमिली कोर्ट एक्ट 1954,  स्पेशल मैरिज एक्ट 1954,  
  • मैरिज लॉ अमेंडमेंट बिल 2010,  
  • मेटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961( अमेंडेड 1995),  
  • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 ,  
  • समान पारिश्रमिक अधिमियम  1976, इत्यादि.

इन सभी अधिनियमों का महिलाओं के सशक्तिकरण में उल्लेखनीय योगदान रहा है.

इनके अलावा भारतीय संविधान में वर्णित, नेशनल कमीशन फॉर वूमेन एक्ट  1990 के अनुसार राष्ट्रीयमहिला आयोग का गठन जनवरी 1992 में किया गया, साथ ही साथ संविधान के 73वें संशोधन में महिलाओं के आरक्षण के विषय में भी बात की गई है इसके अलावा नेशनल पॉलिसी फॉर एंपावरमेंट ऑफ वूमेन 2001 में भी महिलाओं एवं बाल विकास के बारे में  बातकी गई है.

निष्कर्ष

महिला सशक्तिकरण एक ऐसा विषय है जिसे सिर्फ कानून बनाकर के अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता. महिला सशक्तिकरण तब होगा जब प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक नागरिक, प्रत्येक पुरुष इस बात की जिम्मेदारी लेगा और समझेगा की वाकई महिला, जीवन रूपी गाड़ी के दो पहियों का एक पहिया है और बिना उसको इज्जत और सम्मान दिए समाज का कल्याण होना असंभव है, इसकी शुरुआत हर व्यक्ति को अपने घर से करनी होगी अपने घर में अपनी मां, अपनी बहन, अपनी बेटी, अपनी पत्नी और अपने साथ काम करने वाली महिला सहकर्मी को सशक्त करना होगा, बात बात पे उनको अपमानित करना और उनको नीचा दिखाने की आदत हमें छोड़ना होगा. अपने सहकर्मी महिला का मजाक बनाना, उस पर छींटा कसी करना दरअसल हमारी संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है. जब इन सभी बातों का समायोजन हम अपनी दिनचर्या में कर लेंगे शायद तभी महिला सशक्तिकरण की बात जायज होगी.

आपकी टिप्पणियों और विचारों का स्वागत है!

Amit

अमित कुमार श्रीवास्तव

पूर्व वायु सैनिक एवं कानूनी विषयों के जानकार

write2amitks@yahoo.com

16 जनवरी 2022


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