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तिलिस्म टूटने से भाजपा के दिग्गजों में बेचैनी, क्यों…

कद्दावर मंत्रियों के इस्तीफे से भाजपा में नुकसान को न्यूनतम करने की चाल जुटे गणितज्ञ
लखनऊ। सूबे में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश में बीजेपी को झटके लग रहे हैं। एक के बाद एक कद्दावर मंत्रियों के इस्तीफे हुए हैं। बीजेपी नेता भी मान रहे हैं कि यह पार्टी के व्यापक सामाजिक गठजोड़ को नुकसान पहुंचाने की कोशिश है। पहले श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और दूसरे दिन पर्यावरण मंत्री दारा सिंह चौहान ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे की वजह जो भी बताई जा रही है, उससे बीजेपी को नुकसान की गंभीरता का अंदाजा हो रहा है। यही वजह है कि लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बीजेपी के सियासी गणितज्ञ ऐक्टिव हो गए हैं और बैठकों का दौर शुरू हो गया है। जिससे विस चुनाव के नुकसान को न्यूनतम किया जा सके और जो जा रहे हैं या जाने वाले हैं उन्हें रोका जा सके। ऐसे में कद्दावर नेताओं को पार्टी में रोके रखने के लिये लॉलीपॉप देने की योजना कितना कामयाब होगी यह तो समय ही तय करेगा। भले ही अंदरखाने में कुछ भी चल रहा है, लेकिन बेचैनी तो बढ़ी है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।

पिछड़े और दलितों की उपेक्षा का सिला
दरअसल, दोनों ही मंत्रियों ने साफतौर पर यह आरोप लगाए हैं कि बीजेपी में पिछड़े और दलितों को नजरअंदाज किया जा रहा है। फिलहाल बीजेपी नेतृत्व किसी पैनिक में नहीं है। संभावना जताई जा रही है कि एक और मंत्री धरम सिंह सैनी और कम से कम 5-6 विधायक पार्टी छोड़ सकते हैं और सबके आरोप वही हैं कि भाजपा में पिछड़ों, दलितों की घोर उपेक्षा की जा रही है। स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह बसपा से आए थे और 2017 का चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे।

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शाह का वो प्लान कामयाब रहा लेकिन…
बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि इस्तीफों में ओबीसी/एमबीसी की उपेक्षा करने के एक जैसे आरोप लगाए गए हैं। यह एक गंभीर प्रयास है जिससे बीजेपी के एमबीसी (Most Backward Class), गैर-यादव ओबीसी, गैर-जाटव दलित और अपर कास्ट के ‘विशाल सामाजिक गठजोड़’ को तोड़ा जा सके, जिसे तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने एक साथ लाकर शानदार जीत दिलाई थी। लेकिन वर्तमान परिवेश में पिछड़ों व अति पिछड़े वर्ग के लोगों की अनदेखी इस बार के विस चुनाव में क्या गुल खिलायेगा यह सियासी गणितज्ञ गुणा गणित लगा चुके हैं। वैसे भी मन जाता रहा है कि पिछड़ों व अति पिछड़े वर्ग के लोगों का मत प्रतिशत चुनाव में हर बार निर्णायक भूमिका में रहा है।

हिंदुत्व कार्ड किस हद तक होगा सत्ता दिलाने में कारगर
गैर-यादव ओबीसी और एमबीसी के महत्वपूर्ण वर्ग का जाना स्पष्ट रूप से सपा नेता और पूर्व सीएम अखिलेश यादव की चुनौती को मजबूत करेगा। साफतौर पर सपा यूपी चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने वाली प्रमुख पार्टी के रूप में उभरी है, उसने यादव-मुस्लिम समीकरण वाले परसेप्शन से खुद को बाहर निकालकर खड़ा करने की कोशिश की है। योगी सरकार में पिछड़ों की कथित उपेक्षा के आरोपों के जरिए हिंदुत्व सेंटिमेंट को काउंटर करने की कोशिश समझी जा रही है, जिससे ‘फॉरवर्ड और बैकवर्ड’ को बांटकर फिर से जाति पर फोकस किया जा सके। अब देखना यह है कि हिंदुत्व का येलो कार्ड विधानसभा चुनाव में किस हद तक सत्ता में इंट्री दिल पाता है।


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