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बलिया: अफसरों व नेताओं की भेंट चढ़ गया करोड़ों का धन, नहीं सुरक्षित हुए तटवर्ती

रिंगबंधा निर्माण के नाम करोड़ों खर्च, फिर भी तीन रिंगबंधे अधर में


बलिया। गंगा के तटवर्ती गांव व इलाकों को बचाने के लिए शासन व बाढ़ विभाग की ओर से करोड़ों रुपए खर्च किए गए। बावजूद इसके तटवर्ती इलाकों में बाढ़ की विभीषिका हर साल अपना तांडव मचाती रही। अगर इतने धन का वास्तव में सदुपयोग किया गया होता तो शायद इन स्परों के स्थान पर पक्का तटबंध बन गया होता। सबसे दिलचस्प तो यह है कि एक जनसूचना में बाढ़ खंड के अफसरों ने यह माना है कि उसे यह नहीं मालूम है कि करीब 55 साल पूर्व गीता प्रेस द्वारा बनाये गये दूबेछपरा रिंगबंधा से सम्बंधित रिकार्ड कार्यालय में ही उपलब्ध नहीं है।


आलम यह है कि करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी हजारों एकड़ जमीन अब तक गंगा के तेज लहरों में समाहित हो गई। वहीं अरबों रुपये के रिहायशी मकान भी गंगा में समा गये। ऐसे में सरकार द्वारा भेजे गए अब तक करोड़ों रुपए कहां गए यह बता पाना काफी मुश्किल है। लेकिन जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई एक सूचना से स्पष्ट है कि गंगा नदी में बने स्परों को मरम्मत करने व उनसे गंगा में उठने वाली लहरों को रोकने के लिए हर साल बाढ़ के ऐन वक्त पर काम कराया गया है। शासन ने भी जन और धन की हानि को देखते हुए इस कार्य के लिए पानी की तरह पैसा बहाया। लेकिन अरबों रुपए खर्च होने के बाद भी इस जनधन को होने वाली हानि को अब भी नहीं रोक जा सका। जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सिविल कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता व आरटीआई कार्यकर्ता मनोज राय हंस ने अलग-अलग बिंदुओं पर विस्तृत सूचनाएं मांगी थी। जिनमें बाढ़ विभाग की ओर से दी जाने वाली सूचनाएं काफी चौंकाने वाली हैं। गंगा नदी में स्परों के नाम पर 15 स्परों पर कुल 3686.36 लाख यानी 36 करोड़ 86 लाख 36 हजार खर्च किए गए। जिनमें से आज भी तीन स्पर निर्माणाधीन है। जिनके लिए 2602 लाख भेजा गया था। इसी तरह बीएसटी बंधा पर भी चार स्पर हैं। जिन के निर्माण के लिए 977.75 यानी 9 करोड़ 70 लाख 75 हजार खर्च किया गया है। वही हाहानाला पर कुल 5 स्पर हैं। जिन के निर्माण पर 914. 26 लाख यानी 9 करोड़ 14 लाख 26 हजार खर्च किए गए हैं। सरकार की ओर से जारी किए गए धन पर नजर दौड़ाये तो करोड़ों रुपए खर्च के बाद भी रिंगबंधा अब भी सुरक्षित नहीं है।

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वरिष्ठ अधिवक्ता व आरटीआई कार्यकर्ता मनोज राय हंस ने बताया कि प्रदेश से जिले में विकास के नाम पर आए धन का इसी तरह बंदरबांट हो रहा है। अब तक रिंग बंधे के नाम पर जिले में जितना धन आया है उतने धन में पक्का रिंगबंधा तैयार हो गया होता। लेकिन सरकार के प्रतिनिधि हो या जिले के अफसर दोनों ने मिलकर बाढ़ विभाग के करोड़ों रुपए का गोलमाल किये है। हर साल बाढ़ आने का इंतजार करने वाले नेता व अफसर लूट खसोट शुरू कर देते हैं। जिसके लिए आज तक किसी भी संस्था से जांच नहीं कराई गई। उन्होंने बताया कि जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत यह जानकारी इसलिए मांगी गई थी कि सरकार की ओर से बंधा निर्माण के नाम पर पैसा भेज रही है और उसे किस तरह खपत किया जा रहा है। यह बात जनता को बताया जा सके। तीन रिंगबंधा के तीन स्परों को निर्माणाधीन दिखाकर उस धन को भी अफसरों के मिली भगत से हजम कर लिया गया है। जिसकी उच्चस्तरीय जांच कराई जानी चाहिए।


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